सुनो,
कल तुम भी आना,
मैं भी आऊंगा,
उसी पेड़ के नीचे,
हरी घास पर,
बैठेंगे कुछ बाते करेंगे,
सोचेंगे कल के बारे में,
जब तुम और मैं मिलकर,
हम हो जाएंगे,
पर हाँ.......
तुम जो डरती हो,
समाजिक ताने-बाने से,
उसे वहीं छोड़ आना,
छोड़ आना लज्जा,
हया, मान अपमान,
क्योंकि ये तुम्हारे,
पीछे- पीछे आयंगी,
लिपटेंगी तुमसे,
गलबहींयां करेंगी,
छोड़ देना उसे वहीं,
और चली आना,
हां चली आना,
पर हाँ....
लेकर आना,
मेरा प्यार ,
कुछ आंखों में भर लेना,
कुछ हृदय में,
और कुछ समेट लेना आँचल में,
और गिरह लगा देना,
ताकी छूटे ना,
और हाँ....
दिन ढले आना.....
...राकेश,,