सूर्य के शहर (श्रीनगर) की शंकराचार्य पहाड़ी पे स्थित शंकराचार्य शिव मंदिर प्राचीन काल से घाटी एवं जम्मू क्षेत्र के हिंदुओ के लिए असीम श्रद्धा का केंद्र रहा है।प्राकृतिक सुषमा से परिपूर्ण गुप्कार क्षेत्
पौराणिक कथाओं के अनुसार कश्मीर, सप्त ऋषियों में से एक ऋषि कश्यप की तपोभूमि थी, जीनके नाम पर ही कालांतर में इस प्रदेश को इस नाम से ख्याति मिलीमान्यता है कि कश्मीर घाटी पहले बहुत बड़ी झील हुआ करती थी, जि
यह इस बात पर निर्भर करता है की आत्मा कहाँ से सिमटना शुरू करती है। अगर आत्मा पेहेले से ही आँख के केंद्र पर पोहोंच चुकी है तो वह शरीर को छोड़ने में कुछ भी वक्त नहीं लगाती। जो सत्संगी है वो जीते जी मृत्यु
भारत ऋषि-मुनियों की धरती कहलाता है। भगवान के अधिकतर अवतार भी इसी पवित्र व पावन भूमि पर हुए हैं। भारत की सनातन संस्कृति में नैमिषारण्य को तीर्थ अथवा पावन धाम के नाम से जाना जाता है। इस तीर्थ का वर्णन ब
◆ तिब्बत स्थित कैलाश पर्वत पर उनका निवास है। जहां पर शिव विराजमान हैं उस पर्वत के ठीक नीचे पाताल लोक है जो भगवान विष्णु का स्थान है। शिव के आसन के ऊपर वायुमंडल के पार क्रमश: स्वर्ग लोक और फिर ब्रह्माज
पीतांबरधारी चक्रधर भगवान कृष्ण महाभारत युद्ध में सारथी की भूमिका में थे। उन्होंने अपनी यह भूमिका स्वयं चयन की थी। अपने सुदर्शन चक्र से समस्त सृष्टि को क्षण भर में मुट्ठी भर राख बनाकर उड़ा देने व
भगवान राम जी और अनुज लक्ष्मण जी को मेघनाथ ने नाग पाश में बाँध दिया ! नारद जी ने गरूड़ जी को बुलाने को कहाँ! ऐसा ही किया भी गया ! गरूड़ जी आए और प्रभू को भ्राता सहित नाग पाश से मुक्त किया !
भगवान श्री राम ने सीता जी के स्वयंवर में गुरु विश्वामित्र जी की आज्ञा से शिवजी का कठोर धनुष तोड़ कर सीता जी से विवाह किया था। लेकिन शिवजी का वह धनुष किसने और किससे बना
ब्रह्माजी जब सृष्टि की रचना कर रहे थे उस दौरान उनसे असुर कुल में गया नामक असुर की रचना हो गई. गया असुरों के संतान रूप में पैदा नहीं हुआ था इसलिए उसमें आसुरी प्रवृति
1.गोवर्धन परिक्रमा करने से पहले मानसी गंगा में स्नान अवश्य करना चाहिए। यदि ऐसा संभव न हो सके तो अच्छी तरह से हाथ मुंह धोकर आप परिक्रमा प्रारंभ कर सकते हैं और जहां से आप परिक्रमा प्रारंभ करें वहीं पर प
इस बात को समझने से पहले हमें श्री यमुनाजी के दो नामो को समझना पडेगा ।जब महाप्रभु वल्लभाचार्य जी के पुत्र श्री विट्ठलनाथ जी जिन्हें हम गुसांई जी के नाम से जानते है । उन्होंने जब यमुनाष्टक का अर्थ लिखना
को दिखायी देता है; परन्तु कठपुतलियों को नचाने वाला सूत्रधार पर्दे के पीछे रहता है, जिसे दर्शक देख नहीं पाते हैं । उसी प्रकार यह संसार तो दिखता है; किन्तु इस संसार का सृष्टिकर्ता, पालनकर्ता और सं
लंका विज़यके बाद श्रीराम का राज्याभिषेक हो गया था। इस अवसर पर इनके अभिनन्दन के लिये सभी ऋषि मुनि राजदरबार में, उपस्थित हए। उन्होंने एक स्वर से कहा – रावण के मारे जाने से अब विश्व में शान्ति स्थाप
पाण्डव द्रौपदी सहित वन में पर्णकुटि बनाकर रहने लगे। वे कुछ दिनों तक काम्यकवन में रहने के पश्चात द्वैतवन में चले गये। वहाँ एक बार जब पाँचों भाई भ्रमण कर रहे थे तो उन्हें प्यास सताने लगी। युधिष्ठिर ने
1. जो केवल अपने लिए ही भोजन बनाता है, जो केवल काम सुख के लिए ही मैथुन करता है,जो केवल आजीविका प्राप्ति के लिए ही पढाई करता है,उसका जीवन निष्फल है। (लघुव्यास संहिता)2. जिस कुल में स्त्री से पति और पति
पञ्च नदी - गङ्गा, यमुना, सरस्वती, गोदावरी और नर्मदा - यह पॉंच मुख्य नदियॉं हैं।पञ्चपल्लव - पीपल, गूलर, अशोक, आम और वट - इनके पत्ते पञ्च पल्लव हैं।पञ्चपुष्प- चमेली, आम, शमी (खेजड़ा), पद्म (कमल) और करवी
1. लंका में राम जी = 111 दिन रहे।2. लंका में सीताजी = 435 दिन रहीं।3.मानस में श्लोक संख्या = 27 है।4 .मानस में चोपाई संख्या = 4608 है।5. मानस में दोहा संख्या = 1074 है।6. मानस में सोरठा संख्या = 207 ह
मृत्युलोक में प्राणी अकेला ही पैदा होता है, अकेले ही मरता है। प्राणी का धन-वैभव घर में ही छूट जाता है। मित्र और स्वजन श्मशान में छूट जाते हैं। शरीर को अग्नि ले लेती है। पाप-पुण्य ही उस जीव के साथ जाते
यह कथा बहुत पुरानी है। एक बार शीतला माता ने सोचा कि चलो आज देखु कि धरती पर मेरी पूजा कौन करता है, कौन मुझे मानता है। यही सोचकर शीतला माता धरती पर राजस्थान के डुंगरी गाँव में आई और देखा कि इस गाँव में
*हिंदी दोहा बिषय- दृष्टि**1*दिव्य दृष्टि से देखिए, दिखे दिव्य दरबार।दवा, दुआ औ दान से,देव करे उद्धार।।****2*सहनशक्ति बिल्कुल नहीं,कैसे हो उद्धार।।थोड़ा सा भी दुख हुआ,पंहुते देवी द्वार।।****3*प्रक