अगले दिन राज दरबार लगा। जैसा की सभी को विदित ही था कि वीरप्पा को आज स
मनुष्य के जीवन में तीन प्रकार के ताप होते हैं दैहिक , दैविक एवं भौतिक इन तीनों तापों से एक साथ बच
*पितृपक्ष में तर्पण* हिन्द की संस्कृति की सम्पन्नता
वीरप्पा की जीत से वैभवराज खुश थे। उन्होंने दूसरे दिन राजदरबार में वीर
*श्रीराम का नाम* इतना अलौकिक है कि तराजू के एक पलड़े पर सारे साधन रख दिये जायं और दूसरे पलड़े पर
*भगवान का नाम* बहुत ही मधुर एवं सबल है कि *राम राम* लिखने मात्र से पत्थर भी पानी पर तैरने लगते है
अपने पितरों को तृप्त करने के लिए *श्राद्ध* कैसे किया जाय ? यह विचार मन में उठता है ! सनातन
प्राय: लोग कहा करते हैं कि *श्राद्ध* करने से , *पिंडदान* करने से हमारे पितरों को भला कैसे कुछ प्र
*नाम महिमा* का विलक्षण उदाहरण हमारे शास्त्रों में देखने को मिलता है ! एक संत ने बहुत सुंदर भाव दे
दोपहर के समय जब सभी भोजन ले रहे थे। और राजा भी अपने महल में चले गए थे
*श्राद्ध कर्म* करते हुए मन को बहुत ही पवित्र एवं पितरों के प्रति समर्पित होना चाहिए ! कोई भार समझ