गुरु रविदास सबका भला चाहनेवाले महापुरुष थे। उनके हृदय में सबके लिए प्यार था। व्यक्ति चाहे किसी भी जाति का क्यों न हो, वे सबको सत्य का उपदेश देते थे। बुराइयों से हटाकर सत्य मार्ग पर जीवों को लगाना ही रविदास के जीवन का लक्ष्य था। उनके विचारों से प्रभावित होकर सभी वर्णों के लोग उनके पास श्रद्धापूर्वक आने लगे।
पीरां दित्ता मगासी को यह अच्छा न लगा और वह गुरु रविदास से ईर्ष्या करने लगा। उसने एक दिन नगर के बाहर एकांत में एक सभा बुलाई, समाज के कई गणमान्य लोग वहाँ आए, सबने पीरां दित्ता की बात सुनकर गुरु रविदास को मारने का विचार किया और इस विचार से सभा में उपस्थित सभी लोग सहमत हो गए। गुरु रविदास ज्यों ही उस सभा में पहुँचे तो कुछ लोग कटु वचन कहने लगे। गुरु रविदास ने उन लोगों से कहा कि आप बुरे वचन क्यों बोल रहे हैं? मुँह से पवित्र वचन बोलना चाहिए, जिनको सुनकर दूसरों का भला हो और अपना कल्याण हो। कटु वचन बोलने से क्या लाभ है? इसके अलावा मेरा आप लोगों से कोई विरोध नहीं है। मेरे लिए कोई धर्म अच्छा या बुरा नहीं है। अच्छे कर्म करने से पुरुष अच्छा कहा जाता है और बुरा करनेवाला और बुरा सोचनेवाला बुरा माना जाता है। विवेकी श्रोता तो गुरु रविदास के अमृत वचन सुनकर प्रभावित हो गए मगर जो दुष्ट प्रवृत्ति के थे, वे आक्रमण पर उतारू हो गए। ऐसा देखकर गुरु रविदास ने प्रभु को पुकारते हुए कहा--
राम गुसंईया जीअ के जीवना।
मोहि न बिसारहु में जनु तेरा।
मेरी हरहु विपति जन करहु सुभाई।
चरन न छाड़ओ सरीर कल जाई।
कहु रविदास परउ तेरी सांभा।
बेगि मिलहु जन करि न बिलंबा।
जब गुरु रविदास ने ऐसा कहा तो एक तेज प्रकाश निकला और सभी आश्चर्यचकित रह गए। वहाँ उपस्थित सभी लोग उनके चरणों में गिर पड़े।
संत रविदास की अन्य किताबें
संत शिरोमणि कवि रविदास का जन्म माघ पूर्णिमा को 1376 ईस्वी को उत्तर प्रदेश के वाराणसी शहर के गोबर्धनपुर गांव में हुआ था। उनकी माता का नाम कर्मा देवी (कलसा) तथा पिता का नाम संतोख दास (रग्घु) था। उनके दादा का नाम श्री कालूराम जी, दादी का नाम श्रीमती लखपती जी, पत्नी का नाम श्रीमती लोनाजी और पुत्र का नाम श्रीविजय दास जी है। गुरु संत रविदास 15 वीं शताब्दी के एक महान संत, दार्शनिक, कवि और समाज सुधारक थे. वह निर्गुण भक्ति धारा के सबसे प्रसिद्ध और प्रमुख संत में से एक थे और उत्तर भारतीय भक्ति आंदोलन का नेतृत्व करते थे. उन्होंने अपने प्रेमियों, अनुयायियों, समुदाय के लोगों, समाज के लोगों को कविता लेखन के माध्यम से आध्यात्मिक और सामाजिक संदेश दिए हैं. लोगों की दृष्टि में वह सामाजिक और आध्यात्मिक ज़रूरतों को पूरा कराने वाले एक मसीहा के रूप थे. वह आध्यात्मिक रूप से समृद्ध व्यक्ति थे. उन्हें दुनियाभर में प्यार और सम्मान दिया जाता है लेकिन इनकी सबसे ज्यादा प्रसिद्धि उत्तरप्रदेश, पंजाब और महाराष्ट्र राज्यों में हैं. इन राज्यों में उनके भक्ति आंदोलन और भक्ति गीत प्रचलित हैं. विदास बचपन से ही बुद्धिमान, बहादुर, होनहार और भगवान के प्रति चाह रखने वाले थे। रविदास जी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अपने गुरू पंडित शारदा नन्द की पाठशाला से शुरू की थी। लेकिन कुछ समय पश्चात उच्च कुल के छात्रों ने रविदास जी को पाठशाला में आने का विरोध किया। हालाँकि उनके गुरू को पहले से ही आभास हो गया था कि रविदास को भगवान ने भेजा है। रविदास जी के गुरू इन उंच-नीच में विश्वास नहीं रखते थे। इसलिए उन्होंने रविदास को अपनी एक अलग पाठशाला में शिक्षा के लिए बुलाना शुरू कर दिया और वहीं पर ही शिक्षा देने लगे। गुरू रविदास जी पढ़ने में और समझने में बहुत ही तेज थे, उन्हें उनके गुरू जो भी पढ़ाते थे वो उन्हें एक बार में ही याद हो जाता था। इससे रविदास के गुरू बहुत प्रभावित थे। रविदास जी के व्यवहार, आचरण और प्रतिभा को देखते हुए गुरूजी को बहुत पहले ही यह पता चल गया था कि यह लड़का एक महान समाज सुधारक और आध्यात्मिक गुरू बनेगा। रविदास जी ने धर्म के नाम पर जाति, छुआछूत, रंगभेद जैसे सामाजिक दूषणों को नाबूद करने की कोशिश की। उन्होंने लोगों को ईश्वर के प्रति प्रेम की सच्ची परिभाषा समझाई। लोगों को अपने कर्मों का महत्व समझाया। रविदास जी ने मूर्ति पूजा से ज्यादा अपने कर्मों में विश्वास रखना चाहिए यह बात लोगों को बताई। रैदास कबीर के समकालीन थे। रामानंद गुरु के बारह शिष्यों में से रैदास और कबीर प्रमुख शिष्य थे। संत कबीर जी और गुरु रविदास जी में गहन मित्रता थी। उन दोनों महापुरुषों ने हिंदू और मुसलमानों को एक साथ लाने की कोशिश की। कबीर की तरह रैदास भी कवियों में विशिष्ट स्थान रखते हैं। कबीर ने रैदास को ‘संतन में रविदास’ कहकर मान दिया था।
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