अवर कहो इतिहास को भगवनजस सुख दानि।
हरिद्वार यात्री मिल आए, तिन दर्शन जन केरे पाए।
तिनको पूछा लखि रविदासा, जाहु कहाँ तुमहीं सुख रासा।
ब्रह्मकुंड गंगा इस्नाना। नहावन चल तहाँ हम जाना।
तब रविदास बचन अस भाखे। कीजै काज हठी मन राखे।
ऐक छिसाय हमारा लीजै। मेरा गंगा की पहि दीजै।
हमरे नाम नलेहि पसारी। नहि दीजै तुम ऐसे गरी।
गुरु रविदास का नाम बनारस शहर और आसपास के इलाकों में बहुत प्रसिद्ध हो चुका था। एक बार कुछ यात्री पंडित गंगाराम के साथ हरिद्वार में कुंभ के पर्व पर ब्रह्मकुंड में स्नान करने जा रहे थे। जब वे बनारस पहुँचे तो उनके मन में प्रेम उमड़ आया कि गुरु रविदास से भेंट करके फिर आगे को चलेंगे। वे गुरु रविदास का निवास स्थान पूछकर सीर गोवर्धनपुर में पहुँच गए। सभी यात्री गुरु रविदास के दर्शन करके बहुत प्रसन्न हुए। गुरु रविदास ने पूछा कि कहिए, आप कहाँ जा रहे हैं? पंडित गंगाराम ने बताया कि हम हरिद्वार में कुंभ स्नान के लिए जा रहे हैं।
गुरु रविदास ने यात्रियों से कहा कि गंगाजी के लिए मेरी ओर से यह कसीरा ले जाओ और यह भेंट गंगाजी को तब देना जब वे हाथ निकालकर लें, नहीं तो इसे वैसे ही मत देना। गुरु रविदास की भेंट लेकर यात्रीगण हरिद्वार की तरफ रवाना हो गए।
कुछ दिनों में यात्रीगण हरिद्वार पहुँच गए। उन्होंने गंगाजी के तट पर यात्रियों की भारी भीड़ देखी। गंगा में स्नान करने के बाद पंडित गंगाराम ने कहा, “हे माता गंगाजी, आपके लिए एक कसीरा भेंट के रूप में रविदास ने भेजी है। माता, अपना हाथ बाहर निकालें और इस भेंट को स्वीकार करें।” यह सुनते ही गंगाजी प्रकट हो गई और हाथ बढ़ाकर उन्होंने कसीरा ले लिया। गंगाजी ने अपने हाथ का एक हीरे जड़ित कंगन गुरु रविदास के लिए भेंट किया और गंगाराम से कहा कि मेरी यह भेंट गुरु रविदास को पहुँचा देना।
ले कंगन अति हर्ष युत, देखत सब विसमाद।
ऐसे न कबहुं भयो, गंगा को प्रसादि॥
गंगाराम सहित सभी यात्री बहुत हैरान हुए कि इस प्रकार आज तक किसी को गंगाजी ने भेंट नहीं दी थी। गंगाजी के दर्शन करके और स्नान करके पंडित गंगाराम वापस अपने घर पहुँच गया। गंगाराम ने अपनी पत्नी को प्रत्यक्ष दर्शन की सारी कथा सुनाई और गंगाजी का दिया हुआ कंगन अपनी पत्नी को रखने के लिए दे दिया। कुछ दिनों के बाद पंडित गंगाराम की पत्नी ने कहा कि इस कंगन को बाजार में बेच दिया जाए। यह बड़ी कीमत में बिक जाएगा। पैसे लेकर अपना जीवन मजे से गुजारेंगे। हमें किसी प्रकार की कोई कमी नहीं रहेगी।
जब पंडित गंगाराम वह कंगन बाजार में बेचने के लिए गया तो कंगन की जितनी कीमत थी, उसकी कीमत के बराबर किसी के पास धन नहीं था। जो भी सर्राफ कंगन को देखता था, वह हैरान हो जाता था और कहता था कि ऐसा कंगन हमने पहले कभी नहीं देखा।
तब कुटवारै सुध दई वाकै हाट बिकाए।
भुखन कंगन हाथ को बेचत जन इक आए॥
इस बात की खबर सिपाही के पास पहुँच गई कि एक आदमी बहुमूल्य कंगन बेचने की कोशिश कर रहा है। सिपाही गंगाराम को पकड़कर राजा के पास ले गए। राजा के पूछने पर गंगाराम ने सारी कथा कह सुनाई कि यह कंगन गंगा माता के हाथ का है, जिसे गंगा माता ने गुरु रविदास को पहुँचाने के लिए दिया था। सारी बातें सुनकर राजा चकित रह गया। राजा ने कहा कि गुरु रविदास को यहाँ बुलाया जाए और उनकी राय ली जाए, तब गुरु रविदास को सादर सभा में बुलाकर कंगन के बारे में पूछा गया।
गुरु रविदास ने कहा कि यह कोई बड़ी बात नहीं है। अभी एक बरतन में गंगा जल डालकर और कंगन उसमें डालकर ऊपर से कपड़ा देकर ढक दें। मन चंगा तो कठौती में गंगा। गंगाजी इस बात का फैसला कर देंगी। जैसा उन्होंने कहा, सारी सामग्री उसी ढंग से तैयार कर दी गई। तब गुरु रविदास ने गंगाजी को यह निर्णय करने के लिए कहा। जब कपड़ा बरतन से हटाया गया तो दो कंगन नजर आए। राजा और बाकी लोग यह देखकर बहुत प्रसन्न हुए। गुरु रविदास ने दोनों कंगन गंगाराम को दे दिए।