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पितृपक्ष एवं श्राद्ध - भाग - तीन

21 सितम्बर 2021

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*श्राद्ध कर्म* करते हुए मन को बहुत ही पवित्र एवं पितरों के प्रति समर्पित होना चाहिए ! कोई भार समझकर *श्राद्ध कर्म* कदापि न किया जाय क्योंकि *श्राद्ध* करते समय मन का शांत होना बहुत आवश्यक है ! यदि मन में कोई हलचल हुई तो *श्राद्ध* करने का फल नहीं प्राप्त होता ! जैसा कि कहा गया है:- 


*यो$नेन् विधिना श्राद्धं कुर्याद् वै शान्तमानस: !*

*व्यपेतकल्मषो नित्यं याति नावर्तते पुन: !!*


                  *-: यमस्मृति :-*


*अर्थात:-* जो प्राणी विधिपूर्वक शांत मन होकर *श्राद्ध* करता है वह सभी पापों से रहित होकर मुक्ति को प्राप्त होता है , तथा फिर संसार चक्र में नहीं आता ! अत: प्राणी को पितृगण की संतुष्टि तथा अपने कल्याण के लिए भी शांत मन से *श्राद्ध* अवश्य करना चाहिए ! इस संसार में *श्राद्ध* करने वाले के लिए *श्राद्ध* से श्रेष्ठ अन्य कोई कल्याणकारी उपाय नहीं है ! इस तथ्य की पुष्टि करते हुए कहा गया है:- 


*श्राद्धात् परतरं नान्यच्छ्रेयस्करमुदाहृतम् !*

*तस्मात् सर्वप्रयत्नेन् श्राद्धं कुर्याद्विचक्षण: !!*


                  *-: कूर्मपुराण :-*


*अर्थात् :-* इस संसार में *श्राद्ध* से श्रेष्ठ अन्य कोई कल्याणप्रद उपाय नहीं है ! अत: बुद्धिमान मनुष्य को यत्नपूर्वक *श्राद्ध* अवश्य करना चाहिए ! *श्राद्धकर्म* सिर्फ पितरों के लिए किया गया कर्म नहीं मानना चाहिए ! यह स्वयं के कल्याण के लिए भी करना चाहिए ! किये गये *श्राद्धकर्म* से जब पितर संतुष्ट होते हैं तो उनके आशीर्वाद से परिजन सुखी तो होते ही हैं साथ ही उनको आयु , बल , ऐश्वर्य भी प्राप्त होता है ! यथा:---


*आयु: पुत्रान् यश: स्वर्गं कीर्तिं पुष्टिं बलं श्रियम् !*

*पशून सौख्यं धनं धान्यं प्राप्नुयात् पितृपूजनात् !!*


                  *-: गरुड़ पुराण :-*


*अर्थात्:- श्राद्ध* अपने अनुष्ठाता अर्थात *श्राद्ध करने वालों* की आयु को बढ़ा देता है , पुत्र प्रदान कर कुल परंपरा को अक्षुण्ण बनाए रखता है ,  धन - धान्य का अंबार लगा देता है , शरीर में बल - पौरुष का संचार करता है , पुष्टि प्रदान करता है और यश का विस्तार करते हुए सभी प्रकार के सुख प्रदान करता है | इन सभी शुभ अवसरों को प्राप्त करने के लिए प्रत्येक मनुष्य को अपने *पितरों का श्राद्ध अवश्य करना चाहिए !* इतना ही नहीं बल्कि *श्राद्ध* सांसारिक जीवन को तो सुखमय बनाता ही है इसके साथ ही परलोक को भी सुधार देता है और अंत में *श्राद्ध* करने वाले को मुक्ति भी प्रदान करता है ! जैसा कि कहा गया है:--


*आयु: प्रजां धनं विद्यां स्वर्गं मोक्षं सुखानि च !*

*प्रयच्छन्ति तथा राज्यं पितर: श्राद्धतर्पिता: !"*


                 *-: मार्कण्डेय पुराण :-*


*अर्थात :- श्राद्ध* से संतुष्ट होकर पितृगण *श्राद्धकर्ता* को दीर्घायु , संतति , धन , विद्या , राज्य , सुख , स्वर्ग एवं मोक्ष प्रदान करते हैं ! इतना ही नहीं यदि सच्चे मन से अपने पितरों का *श्राद्ध* किया जाय तो पितरों की कृपा से मनुष्य मोक्ष से भी आगे बढ़कर *परमगति* को भी प्राप्त किया जा सकता है


*पुत्रो व भ्रातरो वापि दौहित्र: पौत्रकस्तथा !*

*पितृकार्ये प्रसक्ता ये ते यान्ति परमां गतिम् !!*


                 *-: अत्रिसंहिता :-*


*अर्थात :-* जो पुत्र , भ्राता , पौत्र अथवा दौहित्र आदि पितृकार्य *(श्राद्ध अनुष्ठान )* में संलग्न रहते हैं वे निश्चय ही परम गति को प्राप्त होते हैं ! मात्र *श्राद्ध* करने ही वाले ही नहीं बल्कि और किसे *श्राद्ध* का फल मिलता है यह बताते हुए कहा गया है


*"उपदेष्टानुमन्ता च लोके तुल्यफलौ स्मृतौ"*


                *-: बृहस्पति संहिता :-*


*अर्थात :-* जो *श्राद्ध* करता है , जो उसके विधि-विधान को जानता है , जो *श्राद्ध* करने की सलाह देता है और जो *श्राद्ध* का अनुमोदन करता है इन सभी को *श्राद्ध* का पुण्य फल मिल जाता है ! 


*श्राद्ध* करने से क्या फल मिलता है यह आपने पढ़ा ! *अगले भाग में श्राद्ध न करने वालों की क्या गति होती है यह बताने का प्रयास अवश्य किया जाएगा !*


*क्रमश: :--*

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Jyoti

Jyoti

बहुत अच्छा ज्ञान मिल रहा है।

8 दिसम्बर 2021

16
रचनाएँ
पितृपक्ष एवं श्राद्ध
5.0
श्राद्ध हिन्दू एवं अन्य भारतीय धर्मों में किया जाने वाला एक कर्म है जो पितरों के प्रति श्रद्धा और कृतज्ञता अभिव्यक्त करने तथा उन्हें याद करने के निमित्त किया जाता है। इसके पीछे मान्यता है कि जिन पूर्वजों के कारण हम आज अस्तित्व में हैं, जिनसे गुण व कौशल, आदि हमें विरासत में मिलें हैं, उनका हम पर न चुकाये जा सकने वाला ऋण हैं। इस पुस्तक के माध्यम से हम श्राद्ध के सूक्ष्म तथ्यों पर चर्चा करेंगे
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