*श्राद्ध कर्म* करते हुए मन को बहुत ही पवित्र एवं पितरों के प्रति समर्पित होना चाहिए ! कोई भार समझकर *श्राद्ध कर्म* कदापि न किया जाय क्योंकि *श्राद्ध* करते समय मन का शांत होना बहुत आवश्यक है ! यदि मन में कोई हलचल हुई तो *श्राद्ध* करने का फल नहीं प्राप्त होता ! जैसा कि कहा गया है:-
*यो$नेन् विधिना श्राद्धं कुर्याद् वै शान्तमानस: !*
*व्यपेतकल्मषो नित्यं याति नावर्तते पुन: !!*
*-: यमस्मृति :-*
*अर्थात:-* जो प्राणी विधिपूर्वक शांत मन होकर *श्राद्ध* करता है वह सभी पापों से रहित होकर मुक्ति को प्राप्त होता है , तथा फिर संसार चक्र में नहीं आता ! अत: प्राणी को पितृगण की संतुष्टि तथा अपने कल्याण के लिए भी शांत मन से *श्राद्ध* अवश्य करना चाहिए ! इस संसार में *श्राद्ध* करने वाले के लिए *श्राद्ध* से श्रेष्ठ अन्य कोई कल्याणकारी उपाय नहीं है ! इस तथ्य की पुष्टि करते हुए कहा गया है:-
*श्राद्धात् परतरं नान्यच्छ्रेयस्करमुदाहृतम् !*
*तस्मात् सर्वप्रयत्नेन् श्राद्धं कुर्याद्विचक्षण: !!*
*-: कूर्मपुराण :-*
*अर्थात् :-* इस संसार में *श्राद्ध* से श्रेष्ठ अन्य कोई कल्याणप्रद उपाय नहीं है ! अत: बुद्धिमान मनुष्य को यत्नपूर्वक *श्राद्ध* अवश्य करना चाहिए ! *श्राद्धकर्म* सिर्फ पितरों के लिए किया गया कर्म नहीं मानना चाहिए ! यह स्वयं के कल्याण के लिए भी करना चाहिए ! किये गये *श्राद्धकर्म* से जब पितर संतुष्ट होते हैं तो उनके आशीर्वाद से परिजन सुखी तो होते ही हैं साथ ही उनको आयु , बल , ऐश्वर्य भी प्राप्त होता है ! यथा:---
*आयु: पुत्रान् यश: स्वर्गं कीर्तिं पुष्टिं बलं श्रियम् !*
*पशून सौख्यं धनं धान्यं प्राप्नुयात् पितृपूजनात् !!*
*-: गरुड़ पुराण :-*
*अर्थात्:- श्राद्ध* अपने अनुष्ठाता अर्थात *श्राद्ध करने वालों* की आयु को बढ़ा देता है , पुत्र प्रदान कर कुल परंपरा को अक्षुण्ण बनाए रखता है , धन - धान्य का अंबार लगा देता है , शरीर में बल - पौरुष का संचार करता है , पुष्टि प्रदान करता है और यश का विस्तार करते हुए सभी प्रकार के सुख प्रदान करता है | इन सभी शुभ अवसरों को प्राप्त करने के लिए प्रत्येक मनुष्य को अपने *पितरों का श्राद्ध अवश्य करना चाहिए !* इतना ही नहीं बल्कि *श्राद्ध* सांसारिक जीवन को तो सुखमय बनाता ही है इसके साथ ही परलोक को भी सुधार देता है और अंत में *श्राद्ध* करने वाले को मुक्ति भी प्रदान करता है ! जैसा कि कहा गया है:--
*आयु: प्रजां धनं विद्यां स्वर्गं मोक्षं सुखानि च !*
*प्रयच्छन्ति तथा राज्यं पितर: श्राद्धतर्पिता: !"*
*-: मार्कण्डेय पुराण :-*
*अर्थात :- श्राद्ध* से संतुष्ट होकर पितृगण *श्राद्धकर्ता* को दीर्घायु , संतति , धन , विद्या , राज्य , सुख , स्वर्ग एवं मोक्ष प्रदान करते हैं ! इतना ही नहीं यदि सच्चे मन से अपने पितरों का *श्राद्ध* किया जाय तो पितरों की कृपा से मनुष्य मोक्ष से भी आगे बढ़कर *परमगति* को भी प्राप्त किया जा सकता है
*पुत्रो व भ्रातरो वापि दौहित्र: पौत्रकस्तथा !*
*पितृकार्ये प्रसक्ता ये ते यान्ति परमां गतिम् !!*
*-: अत्रिसंहिता :-*
*अर्थात :-* जो पुत्र , भ्राता , पौत्र अथवा दौहित्र आदि पितृकार्य *(श्राद्ध अनुष्ठान )* में संलग्न रहते हैं वे निश्चय ही परम गति को प्राप्त होते हैं ! मात्र *श्राद्ध* करने ही वाले ही नहीं बल्कि और किसे *श्राद्ध* का फल मिलता है यह बताते हुए कहा गया है
*"उपदेष्टानुमन्ता च लोके तुल्यफलौ स्मृतौ"*
*-: बृहस्पति संहिता :-*
*अर्थात :-* जो *श्राद्ध* करता है , जो उसके विधि-विधान को जानता है , जो *श्राद्ध* करने की सलाह देता है और जो *श्राद्ध* का अनुमोदन करता है इन सभी को *श्राद्ध* का पुण्य फल मिल जाता है !
*श्राद्ध* करने से क्या फल मिलता है यह आपने पढ़ा ! *अगले भाग में श्राद्ध न करने वालों की क्या गति होती है यह बताने का प्रयास अवश्य किया जाएगा !*
*क्रमश: :--*