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पितृपक्ष एवं श्राद्ध - भाग - छ:

22 सितम्बर 2021

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अपने पितरों को तृप्त करने के लिए *श्राद्ध*  कैसे किया जाय ? यह विचार मन में उठता है ! सनातन धर्म में *श्राद्ध* की दो प्रक्रिया बताई गई :- *१ - पिंडदान और २ - ब्राह्मण भोजन !* मृत्यु के बाद जो लोग देवलोक या पितृलोक में पहुंचते हैं वह मंत्रों के द्वारा बुलाए जाने पर उन - उन लोकों से तत्क्षण *श्राद्धदेश* में आ जाते हैं और निमंत्रित ब्राह्मणों के माध्यम से भोजन कर लेते हैं | सूक्ष्मग्राही होने से भोजन के सूक्ष्म कणों के आघ्राण से उनका भोजन हो जाता है | वे तृप्त हो जाते हैं | ब्राह्मण को भोजन कराने से पितरों को प्राप्त हो जाता है इसका प्रमाण वेदों में मिलता है :--


*"इममोदनं नि दधे ब्राह्मणेषु विष्टारिणं लोकजितं स्वर्गम्"*


                 *-: अथर्ववेद :-*


*(इमम् ओदनम्)* अर्थात् इस ओदनोपलक्षित भोजन को *(ब्राह्मणेषु नि दधे)* ब्राह्मणों में स्थापित कर रहा हूँ ! *भोजन के लिए ब्रह्माण ही क्यों ?* इसकी पुष्टि करते हुए हमारे शास्त्र बताते हैं :-


*यस्यास्येन् सदाश्नन्ति हव्यानि त्रिदिवौकस: !*

*कव्यानि चैव पितर: किं भूतमधिकं तत: !!*


                  *-: मनु स्मृति :-*


*अर्थात:-* ब्राम्हण के मुख से देवता हव्य और पितर कव्य को खाते हैं | पितरों के लिए लिखा है कि यह अपने कर्मवश अंतरिक्ष में वायवीय शरीर धारण करके रहते और :--


*तस्य ते पितर: श्रुत्वा श्राद्धकालमुपस्थितम् !*

*अन्योन्यं मनसा ध्यात्वा सम्पतन्ति मनोजवा: !!*

*ब्राह्मणैस्ते सहाश्नन्ति पितरो ह्यान्तरिक्षगा: !*

*वायुभूतास्तु तिष्ठन्ति भुक्त्वा यान्ति परां गतिम् !!*


                  *-: कूर्मपुराण :-*


*अर्थात् :-* अन्तरिक्ष में रहने वाले इन पितरों को *श्राद्धकाल आ गया है* यह सुनकर ही तृप्ति हो जाती है ! ये *मनोजव* होते हैं अर्थात् इन पितरों की गति मन की गति तरह होती है ! ये स्मरण से ही *श्राद्धदेश* में आ जाते हैं और ब्राह्मणों के साथ भोजन कर तृप्त हो जाते हैं ! इनको सब लोग इसलिए नहीं देख पाते हैं कि इनका शरीर वायवीय है |


ब्राह्मण को इस धरती का देवता कहा गया है :-


*दैवाधीना जगत्सर्व: मन्त्राधीना च देवता !*

*ते मन्त्रा ब्राह्मणाधीना तस्माद्ब्राह्मण देवता !"*


सभी देवता एवं पितर गुप्तरूप से ब्राह्मण में निवास करते हैं ! प्राणवायु की भाँति उनके चलते समय चलते हैं और बैठते समय बैठते हैं :---


*निमन्त्रितान् हि पितर उपतिष्ठन्ति तान् द्विजान् !*

*वायुवच्चानुगच्छन्ति तथासीनानुपासते !!*


               *-: मनुस्मृति :-*


*अर्थात्:-* *श्राद्धकाल* में निमन्त्रित ब्राह्मणों के साथ ही प्राणरूप में या वायुरूप में पितर आते हैं और उन ब्राह्मणों के साथ ही बैठकर भोजन करते हैं ! मृत्यु के पश्चात् पितर सूक्ष्म शरीरधारी होते हैं , इसलिए उनको कोई देख नहीं पाता !


*"तिर इव वै पितरो मनुष्येभ्य:"*


       *-: शतपथ ब्राह्मण :-*


*अर्थात्:-* सूक्ष्म शरीरधारी होने के कारण पितर मनुष्यों में छिपे होते हैं ! अतएव सूक्ष्म शरीरधारी होने के कारण ये जल , अग्नि तथा वायुप्रधान होते हैं , इसीलिए इनको कोई देख भी देख नहीं पाता और इन्हें लोक लोकान्तरों में आने - जाने में कोई रुकावट नहीं होती !


अपने पितरों के लिए किये गये *श्राद्ध* को सफल बनाने एवं पितरों तक पहुँचाने का माध्यम ब्राह्मण ही है अत: ब्राह्मणों के प्रति श्रद्धा रखते हुए *श्राद्धकर्म* करना चाहिए !

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Jyoti

Jyoti

👌👌👌👌

8 दिसम्बर 2021

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रचनाएँ
पितृपक्ष एवं श्राद्ध
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श्राद्ध हिन्दू एवं अन्य भारतीय धर्मों में किया जाने वाला एक कर्म है जो पितरों के प्रति श्रद्धा और कृतज्ञता अभिव्यक्त करने तथा उन्हें याद करने के निमित्त किया जाता है। इसके पीछे मान्यता है कि जिन पूर्वजों के कारण हम आज अस्तित्व में हैं, जिनसे गुण व कौशल, आदि हमें विरासत में मिलें हैं, उनका हम पर न चुकाये जा सकने वाला ऋण हैं। इस पुस्तक के माध्यम से हम श्राद्ध के सूक्ष्म तथ्यों पर चर्चा करेंगे
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पितृपक्ष एवं श्राद्ध - भाग - एक

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पितृपक्ष एवं श्राद्ध - भाग - दो

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पितृपक्ष एवं श्राद्ध - भाग - तीन

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पितृपक्ष एवं श्राद्ध - भाग - चार

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पितृपक्ष एवं श्राद्ध - भाग - पाँच

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पितृपक्ष एवं श्राद्ध - भाग - आठ

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पितृपक्ष एवं श्राद्ध - भाग - नौ

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