*श्राद्ध* में कुछ ऐसी बातें भी हैं जो वर्जित हैं ! *श्राद्ध* करते समय इनका विशेष ध्यान रखना चाहिए | सबसे बहले तो यह आवश्यक है कि जिस दिन *श्राद्ध* करना हो उस दिन *श्राद्धकर्ता* को क्या नहीं करना चाहिए ! यह जानना चाहिए :--
*दन्तधावनताम्बूलं तैलाभ्यंगमभोजनम् !*
*रत्यौषधं परान्नं च श्राद्धकृत सप्त वर्जयेत् !!*
*-: श्राद्धकल्पलता :-*
*अर्थात् :-* जिस दिन *श्राद्ध* करना हो उस दिन *श्राद्धकर्ता* :- दन्तधावन (दतुअन आदि न करे ) , ताम्बूल (पान , मसाला , गुटखा , बीड़ी , सिगरेट आदि का सेवन न करे) , तैलमर्दन (तेल न लगाये) उपवास , स्त्रीसम्भोग , औषधि (दवाई आदि) और परान्नभक्षण (दूसरे का भोजन ) आदि ! इन सात कर्मों से दूर रहे | *श्राद्ध* में ब्राह्मण भोजन का बड़ा महत्व है ! जो ब्राह्मण *श्राद्ध* का भोजन करने आयें वे भी इस बात का ध्यान रखें कि उन्हें किससे बचना चाहिए :--
*पुनर्भोजनमध्वानं भारमायासमैथुनम् !*
*दानं प्रतिग्रहो होम: श्राद्धभुक् त्वष्ट वर्जयेत् !!*
*-: विष्णु रहस्य/यमस्मृति/श्राद्धकल्प :-*
*अर्थात् :-* पुनर्भोजन (दुबारा भोजन न करे) , यात्रा , भार ढोना , परिश्रम , मैथुन , दान , प्रतिग्रह तथा होम | *श्राद्ध* का अन्न खाने वाले ब्रह्मणों को इन ८ बातों से बचना चाहिए | पात्र के विषय में पहले ही बताया जा चुका है कि *श्राद्ध* में लोह् के बर्तनों का प्रयोग नहीं करना चाहिए ! क्योंकि:--
*अयसो दर्शनादेव पितरो विद्रवन्ति हि*
*अर्थात्:-* लोहे के दर्शनमात्र से पितर वापस चले जाते हैं !
बिना कुशा के *श्राद्ध* सम्पन्न नहीं होता परंतु ऐसा भी नहीं है कि कहीं से भी कैसा भी कुशा हो उसे *श्राद्ध* में प्रयोग करना चाहिए ! यह बात सदैव ध्यान रखा जाय कि :--
*चितौ दर्भा: पथिदर्भा ये दर्भा यज्ञभूमिषु !*
*स्तरणासनपिण्डेषु षट् कुशान् परिवर्जयेत् !!*
*ब्रह्मयज्ञे च ये दर्भा ये दर्भा: पितृतर्पणे !*
*हता मूत्रपुरीषाभ्यां तेषां त्यागो विधीयते !!*
*-: श्राद्धकल्पलता :-*
*अर्थात्:-* चिता में बिछाये हुए , रास्ते में पड़े हुए , पितृतर्पण एवं ब्रह्मयज्ञ में उपयोग किये गये , बिछौने , गन्दगी से और आसन में से निकाले गुए , पिण्डों के नीचे रखे हुए तथा अपवित्र कुश वर्जित एवं निषिद्ध माने गये हैं | कुशा के साथ ही *श्राद्ध* का महत्वपूर्ण अंग है चन्दन , परंतु सभी प्रकार के चन्दनों का उपयोग *श्राद्ध* में कदापि नहीं करना चाहिए ! *श्राद्ध* के लिए:--
*श्राद्धेषु विनियोक्तव्या न गन्धा जीर्णदारुजा: !*
*कल्कीभावं समासाद्य न च पर्युषिता: क्वचित् !!*
*पूतीका मृगनाभिं च रोचनां रक्तचन्दनम् !*
*कालीयकं जोंगकं च तुरुष्कं चापि वर्जयेत् !!*
*-: मारीचिस्मृति :-*
*अर्थात्:-* यह विशेष ध्यान रखा जाय कि *श्राद्ध* में श्रीखण्ड , चन्दन , खस , कर्पूरसहित सफेद चन्दन ही पितृकार्य के लिए प्रशस्त हैं ! अन्य पुरानी लकड़ियों के चन्दन तथा निर्गन्ध काष्ठों का चन्दन के लिए उपयोग नहीं करना चाहिए ! कस्तूरी , रक्तचन्दन , गोरोचन , सल्लक तथा पूतिक आदि चन्दन निषिद्ध माने गये हैं ! उसी प्रकार *श्राद्ध* में *कदम्ब , केवड़ा , मौलसिरी , बेलपत्र , करवीर , लाल तथा काले रंग के सभी फूल तथा तीव्र गन्ध वाले या गन्धरहित पुष्प भी वर्जित हैं !* प्रत्येक मनुष्य जब अपने पितरों का *श्राद्ध* करता है तो धूप भी करता है ! धूप के लिए बताया गया है कि :---
*घृतं न केवलं दद्याद् दुष्टं वा तृणगुग्गुलुम*
*-: मदनरत्न :-*
*अर्थात् :-* अग्नि पर दूषित गुग्गुल या गुग्गुल का बुरादा , गोंद अथवा केवल घी डालकर धूप करना भी वर्जित है | *श्राद्ध* का महत्वपूर्ण अंग है - *ब्राह्मण भोजन* जब भी *श्राद्ध* करना हो तो ब्राह्मणों को निमन्त्रण देते समय यह अवश्य ध्यान रखा जाय कि कैसे ब्राह्मणों को निमन्त्रण दिया जाय और किसका त्याग किया जाय ! प्रशस्त ब्राह्मण हम पहले बता चुके हैं ! अब *श्राद्ध में निषिद्ध ब्राह्मण* के विषय में शास्त्रानुसार बताने का प्रयास है :-- *श्राद्ध में चोर , पतित , नास्तिक , मूर्ख , धूर्त , मांसविक्रयी , व्यापारी , नौकर, कुनखी , काले दांत वाले , गुरुद्वेषी , शूद्रापति , भृतकाध्यापक , भृतकाध्यापित ( शुल्क से पढ़ने या पढ़ाने वाला ) काना , जुआरी , अंधा , कुश्ती सिखाने वाला , नपुंसक इत्यादि अधम ब्राह्मणों को त्याग देना चाहिए |* इस प्रकार ध्यान देते हुए वर्जित ब्राह्मणों का त्याग करके प्रशस्त ब्राह्मणों को निमन्त्रित करके प्रेम से *श्राद्ध* पूर्ण करे | एक विषय प्रायं चर्चा का विषय बनते हुए देखा जाता है कि *श्राद्ध* में कौन सा अन्न या सब्जी खिलाना चाहिए कौन सा नहीं ? यहाँ हम यह बताने का प्रयास कर रहे हैं कि *श्राद्ध* में कौन सा अन्न या शाक वर्जित है :--
*केशकीटावपन्नं च तथा श्वभिरवेक्षितम् !*
*पूति पर्युषितं चैव वार्ताक्याभिषवांस्तथा !*
*वर्जनीयानि वै श्राद्धे यच्च वस्त्रानिलाहतम् !!*
*-: मार्कण्डेयपुराण :-*
*अर्थात् :-* जिस अन्न में बाल और कीड़े पड़ गए हों , जिसे कुत्तों ने देख लिया हो , जो बासी एवं दुर्गंधित हो ऐसी वस्तु का *श्राद्ध में उपयोग न करें* | बैंगन और शराब का भी त्याग करें | जिस अन्न पर पहने हुए वस्त्र की हवा लग जाय ऐसा अन्न भी *श्राद्ध* में वर्जित है | वर्जित अन्वों के विषय में कई ग्रन्थों में वर्णन मिलता है :--
*(क)*
*मसूरशणनिष्पावाराजमाषा: कुलुत्थका: !*
*पद्मबिल्वार्कधत्तूरपारिभद्राटरूषका: !*
*न देया: पितृकार्येषु पयश्चाजाविकं तथा !!*
*कोद्रवोदारवरटकपित्थं मधुकातसी !*
*एतान्यपि न देयानि पितृभ्य: श्रियमिच्छता !!*
*-: पद्मपुराण :-*
*(ख)*
*पिप्पली क्रमुकं चैव तथा चैव मसूरकम् !*
*कूष्माण्डालाबुवार्ताकान् भूस्तृणं सुरसं तथा !!*
*कुसुम्भपिण्डमूलं वै तन्दुलीयकमेव च !*
*राजमांषास्तथा क्षीरं माहिषं च विवर्जयेत् !!*
*-: कूर्मपुराण :-*
*(ग)*
*राजमाषानणूंश्चैव मसूरांश्च विसर्जयेत् !*
*अलाबुं गृञ्जनं चैन पलाण्डु पिण्डमूलकम् !!*
*-: विष्णुपुराण :-*
*अर्थात् :-* यदि इन सभी पुराणों के कथनों का सार निकाला जाय तो *श्राद्ध* में राजमाष , मसूर , अरहर , गाजर , कुम्हड़ा , गोल लौंकी , बैंगन , शलजम , हींग , प्याज , लहसुन , काला नमक , काला जीरा , सिंघाड़ा , जामुन , पिपली , कुलथी , कैथ , महुआ , अलसी , चना एवं भैंस के दूध का प्रयोग नहीं करना चाहिए | इनका प्रयोग करने से *श्राद्ध* पूर्ण नहीं होता | *इसलिए श्राद्ध का भोजन बनवाते समय विशेष ध्यान रखा जाय* कि हमारे द्वारा किए गए कर्म से हमारे पितरों को संतुष्टि मिल रही है या नहीं |
इस श्रृंखला का पटाक्षेप करते हुए यही कहना चाहूँगा कि :- प्रत्येक मनुष्य को अपनी पितरों की संतुष्टि तथा अपने कल्याण के लिए *श्राद्ध* अवश्य करना चाहिए | *श्राद्धकर्ता* केवल अपने पितरों को ही तृप्त नहीं करता बल्कि अपने *श्राद्धकर्म* से संपूर्ण जगत को संतुष्ट कर देता है जैसा कि हमारे पुराणों में लिखा है:--
*यो वा विधानत: श्राद्धं कुर्यात् स्वविभवोचितम् !*
*आब्रह्मस्तम्बपर्यन्तं जगत प्रीणाति मानव: !!*
*ब्रह्मेन्द्ररुद्रनासत्यसूर्यानलसुमारुतान् !*
*विश्वेदेवान् पितृगणान् पर्यग्निमनुजान् पशून् !!*
*सरीसृपान् पितृगणान् यच्चान्यद्भूतसंज्ञितान् !*
*श्राद्धं श्रद्धान्वित: कुर्वन् प्रीणत्यखिलं जगत् !!*
*-: ब्रह्मपुराण :-*
*अर्थात् :-* जो मनुष्य अपने वैभव के अनुसार अपने पितरों के लिए विधिपूर्वक *श्राद्ध* करता है वह साक्षात ब्रह्मा से लेकर तृणपर्यंत समस्त प्राणियों को तृप्त करता है | *श्रद्धा पूर्वक विधि विधान से श्राद्ध करने वाला* मनुष्य ब्रह्मा , इंद्र , रूद्र , नासत्य (अश्वनी कुमार ) सूर्य , अनल (अग्नि) , वायु , विश्वदेव , पितृगण , मनुष्यगण , पशुगण , समस्त भूतगण तथा सर्पगण को भी संतुष्ट करता हुआ संपूर्ण जगत को संतुष्ट करता है |
मनुष्य के एक कर्म *तर्पण एवं श्राद्ध* से संपूर्ण जगत तृप्त हो जाते हैं ! *इसलिए प्रत्येक गृहस्थ को चाहिए कि वह हव्य से देवताओं का और कव्य से पितृगणों का तथा अन्न से अपने बंधुओं का सत्कार तथा पूजन करें |* श्रद्धा पूर्वक देव , पितृ और बांधवों के पूजन से मनुष्य परलोक में पुष्टि , विपुल यश तथा उत्तम लोकों को प्राप्त करता है | सबसे अंत में यही कहना है की पितरों की पूजा भगवान विष्णु की पूजा के बराबर है क्योंकि:-
*ये यजन्ति पितृन देवान् ब्राह्मणांश्च हुताशनान् !*
*सर्वभूतान्तरात्मानं विष्णुमेव यजन्ति ते !!*
*-: यमस्मृति :-*
*अर्थात्:-* जो लोग देवता , ब्राह्मण , अग्नि और पितृगण की पूजा करते हैं वह सबके अंतरात्मा में रहने वाले भगवान विष्णु की ही पूजा करते हैं | *इसलिए प्रत्येक मनुष्य को अपने पितरों के प्रति तर्पण एवं श्राद्ध कर्म अवश्य करते रहना चाहिए !*
*!! हरि ॐ शान्ति: , शान्ति: शान्ति: !!*
*!! सर्वारिष्टासुशान्तिर्भवतु !!*
आचार्य अर्जुन तिवारी
प्रवक्ता
श्रीमद्भागवत/श्रीरामकथा
संरक्षक
संकटमोचन हनुमानमंदिर
बड़ागाँव श्रीअयोध्याजी
(उत्तर-प्रदेश)
9935328830