*श्राद्ध* में दूध , दही , घी एवं अन्न का भी प्रयोग होता है ! यह किस प्रकार का होना चाहिए :--
*पशून्विसृजता तेन पूर्वं गावो विनिर्मिता: !*
*तेन तासां पय: शस्तं श्राद्धे सर्पिर्विशेषत: !!*
*-: स्कन्दपुराण :-*
*अर्थात्:-* ब्रह्माजी ने पशुओं की सृष्टि करते समय सबसे पहले गौओं को रचा ; गाय में सभी देवताओं का वास है , अत: *श्राद्ध* में गाय का ही दूध , दही और घी काम में लेना चाहिए | अन्न के विषय में भी विचार किया गया है कि :--
*यवैर्व्रीहितिलैर्माषैर्गोधूमश्चणकैस्तथा !*
*सन्तर्पयेत्पितृन्मुद्गै: श्यामाकै: सर्षपद्रवै: !!*
*आम्रमाम्रातकं बिल्वं दाडिमं बीजपूरकम् !*
*प्राचीनामलकं क्षीरं नारिकेलं परूषकम् !!*
*नारंग च सखर्जूरं द्राक्षानीलकपित्थतम् !*
*पटोलं च प्रियालं च कर्कन्धूबदराणि च !!*
*विकंकतं वत्सकं च कस्त्वारुर्वारकानपि !*
*एतानि फलजातानि श्राद्धे देयानि यत्नत: !!*
*-: ब्रह्मपुराण :-*
*अर्थात्:- अन्नों में* जौ , धान , गेहूँ , मूँग , साँवाँ , सरसों का तेल , चिन्नी का चावल , कंगनी , आदि से पितरों को तृप्त करना चाहिए | *फलों मे* आम , अमड़ा , बेल , अनार , बिंजौरा , पुराना आँवला , खीर , नारियल , फालसा , नारंगी , खजूर , अंगूर , नीलकैथ , परवल , चिरौंजी , बेर , जंगली बेर , इन्द्र जौ , और भतुआ आदि को *श्राद्ध* में लेना चाहिए |
*श्राद्ध* का महत्वपूर्ण अंग है ब्राह्मण | बिना ब्राह्मण भोजन के *श्राद्ध* सम्पन्न नहीं हो सकता | *श्राद्ध* के लिए ब्राह्मण कैसे होने चाहिए ! इस पर भी विचार किया जाय:--
*गायत्रीजाप्यनिरतं हव्यकव्येषु योजयेत् !!*
*तपो धर्मो दया दानं सत्यं ज्ञानं श्रुतिर्घृणा !*
*विद्याविनयमस्तेयमेतद् ब्राह्मणलक्षणम् !!*
*-: श्राद्धप्रकाश/वीरमित्रोदय :-*
*अर्थात्:-* किसी भी नाम एवं जाति से ब्राह्मण को *श्राद्ध* में भोजन नहीं कराना चाहिए | शील , शौच , एवं प्रज्ञा से युक्त सदाचारी तथा सन्ध्या वन्दन एवं गायत्रानिष्ठ श्रोत्रिय ब्राह्मण को *श्राद्ध* में निमन्त्रण देना चाहिए | तप , धर्म , दया , दान , सत्य , ज्ञान , वेदज्ञान , कारुण्य , विद्या , विनय तथा अस्तेय (अचौर्य) आदि गुणों से युक्त ब्राह्मण ही *श्राद्ध* का अधिकारी है | *श्राद्ध* का अधिकारी ब्राह्मण को निमन्त्रण देने के बाद उसके लिए *आसन* की व्यवस्था करनी पड़ती है ! *श्राद्ध* में आसन कैसा होना चाहिए :--
*क्षौमं दुकूलं नेपालमाविकं दारुजं तथा !*
*तार्णं पार्णं वृसी चैव विष्टरादि प्रविन्यसेत् !!*
*शमी च काश्मरी शल्ल: कदम्बो वरुणस्तथा !*
*पञ्चासनानि शस्तानि श्राद्धे देवार्चने तथा !!*
*अय: शंकुमयं पीठं प्रदेयं नोपवेशनम् !!*
*:- श्राद्धकल्पलता :-*
*अर्थात्:-* रेशमी , नेपाली कंबल , ऊन , काष्ठ , तृण , पर्ण , कुश आदि के आसन श्रेष्ठ है | लकड़ी के आसनों में शमी , काश्मरी , शल्ल , कदंब , जामुन , आम , मौलश्री एवं वरुण के आसन श्रेष्ठ है , परंतु लकड़ी के आसनों में लोहे की कील नहीं लगी होनी चाहिए | इसका विशेष ध्यान रखें | *श्राद्ध* करते समय *पिण्डदान* किया जाता है | अन्न , तिल , जल , दूध , घी , मधु , धूप और दीप *ये पिण्ड के आठ अंग होते हैं |* पिण्डदान करते समय पिण्ड कैसा होना चाहिए यह इस बात पर निर्भर करता है कि आप पिण्ड कब और किस प्रयोजन से कर रहे हैं | भिन्न भिन्न स्थानों पर पिण्ड पर प्रमाण भी भिन्न ही होता है | जैसे :--
*एकोद्दिष्टे सपिण्डे च कपित्थं तु विधीयते !*
*नारिकेलप्रमाणं तु प्रत्यब्दे मासिके तथा !!*
*तीर्थे दर्शे च संप्राप्ते कुक्कुटाण्डप्रमाणत: !*
*महालये गयाश्राद्धे कुर्यादामलकोपमम् !!*
*-: श्राद्धसंग्रह :-*
*अर्थात्:-* एकोद्दिष्ट तथा सपिण्डन में कैथ (कपित्थ) के फल के बराबर , मासिक तथा वार्षिक *श्राद्ध* में नारियल के बराबर , तीर्थ में तथा दर्शश्राद्ध में मुर्गी के अण्डे के बराबर , तथा गया एवं पितृपक्ष में आँवले के बराबर पिण्डनिर्माण करना चाहिए | पिण्डदान के बाद ब्राह्मणभोजन के निमित्त *श्राद्धकर्ता* सपत्नीक ब्राह्मण का पैर धोये | पैर धोते समय एक बात विशेष ध्यान रखें कि :--
*पादप्रक्षालनं प्रोक्तमुपवेश्यासने द्विजान् !*
*तिष्ठतां क्षालनं कुर्यान्निराशा: पितरो गता !!*
*श्राद्धकाले यदा पत्नी वामे नीरं प्रदापयेत् !*
*आसुरं तद् भवेच्छ्राद्धं पितृणां नोपतिष्ठते !!*
*-: श्राद्धकल्प :-*
*अर्थात्:-* *श्राद्ध* में ब्राह्मणों को बैठाकर पर होना चाहिए | खड़े होकर पैर धोने पर पितर निराश होकर चले जाते हैं | पैर धोते समय *श्राद्धकर्ता* अपनी पत्नी के साथ हो , और पत्नी को दाहिनी और खड़ा करना चाहिए , क्योंकि पत्नी को बाएं रखकर जल नहीं गिराना चाहिए अन्यथा वह *श्राद्ध* आसुरी हो जाता है और पितरों को प्राप्त नहीं होता | पादप्रक्षालन के बाद ब्राह्मण के लिए भोजन परोसें ! परंतु यह ध्यान रहे कि पात्र लोहे (स्टील) का नहीं होना चाहिए ! भोजन पात्र सोने , चाँदी , काँसे और ताँबे के होने चाहिए यदि ये उपलब्ध न हों तो पलाश आदि अन्य वृक्षों के पत्ते से निर्मित पत्तल में भोजन कराये | एक बात सदैव ध्यान रखे कि :- *"कदलीपत्रं नैव ग्राह्यंं यतो हि"* अर्थात भूलकर भी केले के पत्ते में *श्राद्ध भोजन* नहीं कपाना चाहिए | साथ ही *श्राद्ध* में पितरों के भोजन के लिए मिट्टी के पात्रों का भी निषेध है | जब ब्राह्मण भोजन करने बैठे तो मौन हो जाय :--
*याचनं प्रतिषेधो वा कर्तव्यो हस्तसंज्ञया !*
*न वदेन्न च हुंकुर्यादतृप्तौ विरमेन्न च !!*
*-: श्राद्धदीपिका :-*
*अर्थात्:- श्राद्ध* में भोजन के समय मौन रहना चाहिए | मांगने या मना करने का संकेत हाथों से ही करना चाहिए | भोजन करते समय ब्राह्मण से यह कदापि ना पूछे कि अन्न कैसा है ? तथा भोजनकर्ता को भी *श्राद्ध के अन्न* की प्रशंसा या निंदा नहीं करनी चाहिए नहीं तो *श्राद्ध* पूर्ण नहीं माना जाता |