प्राय: लोग कहा करते हैं कि *श्राद्ध* करने से , *पिंडदान* करने से हमारे पितरों को भला कैसे कुछ प्राप्त हो सकता है ? *यह जिज्ञासा स्वाभाविक भी है कि श्राद्ध में दी गई सामग्रियां पितरों को कैसे मिलती है ?* क्योंकि सनातन धर्म की मान्यता के अनुसार जीव अपने कर्मानुसार मृत्यु के बाद भिन्न-भिन्न गति को प्राप्त होता है ! कोई देवता , कोई पितर , कोई प्रेत , कोई हाथी , कोई चींटी , कोई चिनार का वृक्ष और कोई तृण आदि योनियों को प्राप्त करता है | तो मन में एक भ्रांति उत्पन्न होती है कि *श्राद्ध* में दिए गए छोटे से *पिंड* से हाथी की योनि में उत्पन्न हुए हमारे पितर का पेट कैसे भरेगा ? या यदि हमारे पितर चींटी बन गए हैं तो इतने बड़े पिंड को कैसे खा पाएंगे ? यदि देव योनि को प्राप्त हो गए हैं तो देवताओं को तो अमृत चाहिए उन्हें पिंड से तृप्ति कैसे मिलेगी ? इस प्रकार के अनेकानेक प्रश्न मनुष्य के मन मस्तिष्क में घूमा करते हैं *इन सभी प्रश्नों का उत्तर हमारे ग्रंथों में है जिन्हें अध्ययन करने की आवश्यकता है*
देखें :--
*नाममन्त्रास्तथा देशा भवान्तरगतानपि !*
*प्राणिन: प्रीणयन्त्येते तदाहारत्वमागतान् !!*
*-: मार्कण्डेय पुराण :-*
*अर्थात:-* नाम , गोत्र आदि के साथ किए गए संकल्प के सहारे विश्वदेव एवं अग्निष्वात्त आदि दिव्य पितर हव्य - कव्य को पितरों को प्राप्त करा देते हैं |
*देवो यदि पिता जात: शुभकर्मानुयोगत: !*
*तस्यान्नममृतं भूत्वा देवत्वे$प्यनुगच्छति !!*
*मर्त्यत्वे ह्यन्नरूपेण पशुत्वे च तृणं भवेत् !*
*श्राद्धान्नं वायुरूपेण नागत्वे$प्युपतिष्ठति !!*
*-: वायु पुराण :-*
*अर्थात :-* यदि हमारे पितर देव योनि को प्राप्त हो गए हैं तो दिया गया अन्न उन्हें अमृत होकर प्राप्त हो जाता है ! मनुष्य योनि में अन्न रूप में तथा पशु योनि में तृण रूप में उन्हें उसकी प्राप्ति हो जाती है | नागादि योनियों में वायु रूप से *श्राद्ध* में दी गई वस्तुएं प्राप्त हो जाती है |
*"पानं भवति यक्षत्वे नानाभोगकरं तथा"*
*-: श्राद्धकल्पलता :-*
*अर्थात :-* पान रूप से यक्ष योनि में तथा अन्य योनियों में भी *श्राद्धीय वस्तु* भोगजनक तृप्तिकर पदार्थों के रूप में प्राप्त होकर अवश्य तृप्त करती है | फिर भी यदि किसी को संदेह हो तो ऐसे व्यक्तियों को चाहिए कि हमारे ग्रंथों का अध्ययन करें | और पूर्ण विश्वास के साथ श्रद्धा पूर्वक *श्राद्ध कर्म* का आयोजन करें | पितरों को हमारे द्वारा किया गया *श्राद्ध / पिंडदान* कैसे प्राप्त होता है यह बताते हुए आगे लिखा गया है:--
*यथा गोष्ठे प्रणष्टां वै वत्सो विन्देत मातरम् !*
*तथा तं नयते मन्त्रो जन्तुर्यत्रावतिष्ठति !!*
*नाम गोत्रं च मन्त्रश्च दत्तमन्नं नयन्ति तम् !*
*अपि योनिशतं प्राप्तांस्तृप्तिस्ताननुगच्छति !!*
*-: वायुपुराण :-*
और भी देखें:--
*नाम गोत्रं पितृणां तु प्रापकं हवियकव्ययो: !*
*श्राद्धस्य मन्त्रतस्तत्त्वमुपलभ्येत् भक्तित: !!*
*अग्निष्वात्तादयस्तेषामाधिपत्ये व्यवस्थिता: !*
*नामगोत्रस्तथा देशा भवन्त्युद्भवतामपि !!*
*प्राणिन: प्रीणयन्त्येतदर्हणं समुपागतम् !!*
*-: पद्मपुराण :-*
*अर्थात :-* जैसे गौशाला में भूली माता को बछड़ा किसी न किसी प्रकार से ढूंढ ही लेता है उसी प्रकार मंत्र तत्तद् वस्तु जातको प्राणी के पास किसी न किसी प्रकार पहुंचा ही देता है | नाम , गोत्र , हृदय की श्रद्धा एवं उचित संकल्प पूर्वक दिए हुए पदार्थों को भक्ति पूर्वक उच्चारित मंत्र उनके पास पहुंचा देता है | जीव चाहे सैकड़ों योनियों को भी पार क्यों न कर गया हो तो उसके पास पहुंच ही जाती है |
ऐसा विश्वास मन में करके प्रत्येक मनुष्य को श्रद्धा पूर्वक अपने पितरों के लिए *श्राद्ध कर्म* करना ही चाहिए जिससे कि उनका परिवार सुखी और संपन्न बना रहे |
*क्रमश: :--*