प्रत्येक व्यक्ति को अपनी पितरों का *श्राद्ध* अवश्य करना चाहिए परंतु यदि किसी कारणवश पिंडदान सहित *एकोद्दिष्ट तथा पार्वण श्राद्ध* कोई न कर सके तो कम से कम संकल्प करके केवल ब्राम्हण भोजन करा देने से भी *श्राद्ध* हो जाता है | इसलिए कई जगह मृत व्यक्तियों की तिथियों पर केवल ब्राह्मण भोजन कराने की ही परंपरा है | वार्षिक तिथि *(एकोद्दिष्ट)*अथवा पितृपक्ष में *श्राद्ध* की तिथि आने पर *पिंडदानात्मक श्राद्ध* संभव न होने की स्थिति में अथवा पिंडदान निषिद्ध होने की स्थिति में *सांकल्पिक श्राद्ध* करने की व्यवस्था शास्त्रों में दी गई है | इन तिथियों पर जो *पिंडदानात्मक श्राद्ध* न कर सके उन्हें *श्राद्ध* का संकल्प कर ब्राह्मण भोजन करा देना चाहिए | किसी कारण बस ब्राह्मण भोजन न कर सके या न करा सके तो केवल *सोपस्कर आमान्न* ( कच्चे अन्न ) से भी *श्राद्ध* की पूर्णता हो जाती है | यदि ब्राह्मण भोजन कराना है तो ब्राह्मण भोजन का संकल्प करें | संकल्प करने के बाद भोजन कराने के पहले *पंचवलि करनी चाहिए | *गोबलि , श्वान बलि , काक बलि , देवादि बलि और पिपीलिका बलि* करने के बाद ब्राह्मण भोजन के लिए थाली परोसे और अन्नपात्र का स्पर्श करते हुए उसका संकल्प करके तब ब्राह्मण को भोजन कराये | ब्राह्मण भोजन कराने के बाद ब्राह्मण को तिलक करके तांबूल एवं दक्षिणा प्रदान करें | दक्षिणा देने के पहले संकल्प करे:--;
*कृतैतच्छ्राद्धप्पतिष्ठार्थं दक्षिणाद्रव्यं यथानाम गोत्राय ब्राह्मणाय दातुमहमुत्सृज्ये !*
उसके पश्चात ब्राह्मण को दक्षिणा देकप ब्राह्मण की चार परिक्रमा करके प्रणाम करें | और फिर ब्राम्हण से पूछें :---
*शेषान्नं किं कर्तव्यम्* अर्थात बचे हुए अन्न का क्या किया जाय ??
तब ब्राह्मण उसके उत्तर में कहता है
*इष्टै: सह भोक्तव्यम्* अर्थात अपने इष्ट जनों के साथ भोजन कर लीजिए |
*यह तो वह ब्राह्मण भोजन कराने का विधान था ! यदि ब्राह्मण भोजन नहीं कराना है तो :--*
*आमान्न (कच्चे अन्न)* , घी , चीनी , नमक आदि षडरस वस्तुओं को दक्षिणा सहित *श्राद्ध भोजन के निमित्त* किसी ब्राह्मण को संकल्प करके दे देना चाहिए |
पितृपक्ष में प्रतिदिन *पार्वण श्राद्ध* करने की विधि है अतः जो लोग पितृपक्ष में पिता की तिथि पर अथवा अन्य पूर्वजों की तिथि पर *श्राद्ध* करते हैं इसके अतिरिक्त पर्वों पर तीर्थ आदि में *श्राद्ध* करते हैं उन्हें *पार्वणविधि से श्राद्ध करना चाहिए* पिंडदानात्मक *पार्वण श्राद्ध* संभव न होने पर उसके स्थान पर अपने समस्त पितरों का संकल्प द्वारा *श्राद्ध* कर ब्राह्मण भोजन कराने का भी विधान है | भोजन कराने की स्थिति ना हो तो आमान्न दान का संकल्प कर दिया जाय | *यदि आमान्नदान भी संभव ना हो या कोई सुपात्र ब्राम्हण न प्राप्त हो तो कम से कम गो ग्रास निकालकर गाय को पितरों के निमित्त खिला देना चाहिए इससे भी श्राद्ध का फल मिल जाता है |*
कैसे भी करके पितरों के निमित्त श्रद्धा पूर्वक *श्राद्ध* अवश्य करना चाहिए |