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पितृपक्ष एवं श्राद्ध - भाग - ग्यारह

29 सितम्बर 2021

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प्रत्येक व्यक्ति को अपनी पितरों का *श्राद्ध* अवश्य करना चाहिए परंतु यदि किसी कारणवश पिंडदान सहित *एकोद्दिष्ट तथा पार्वण श्राद्ध* कोई न कर सके तो कम से कम संकल्प करके केवल ब्राम्हण भोजन करा देने से भी *श्राद्ध* हो जाता है | इसलिए कई जगह मृत व्यक्तियों की तिथियों पर केवल ब्राह्मण भोजन कराने की ही परंपरा है |  वार्षिक तिथि *(एकोद्दिष्ट)*अथवा पितृपक्ष में *श्राद्ध* की तिथि आने पर *पिंडदानात्मक श्राद्ध* संभव न होने की स्थिति में अथवा पिंडदान निषिद्ध होने की स्थिति में *सांकल्पिक श्राद्ध* करने की व्यवस्था शास्त्रों में दी गई है | इन तिथियों पर जो *पिंडदानात्मक श्राद्ध* न कर सके उन्हें *श्राद्ध* का संकल्प कर ब्राह्मण भोजन करा देना चाहिए | किसी कारण बस ब्राह्मण भोजन न कर सके या न करा सके तो केवल *सोपस्कर आमान्न* ( कच्चे अन्न ) से भी *श्राद्ध* की पूर्णता हो जाती है | यदि ब्राह्मण भोजन कराना है तो ब्राह्मण भोजन का संकल्प करें |  संकल्प करने के बाद भोजन कराने के पहले *पंचवलि करनी चाहिए | *गोबलि , श्वान बलि , काक बलि , देवादि बलि और पिपीलिका बलि* करने के बाद ब्राह्मण भोजन के लिए थाली परोसे और अन्नपात्र का स्पर्श करते हुए उसका संकल्प करके तब ब्राह्मण को भोजन कराये | ब्राह्मण भोजन कराने के बाद ब्राह्मण को तिलक करके तांबूल एवं दक्षिणा प्रदान करें | दक्षिणा देने के पहले संकल्प करे:--;


*कृतैतच्छ्राद्धप्पतिष्ठार्थं दक्षिणाद्रव्यं यथानाम गोत्राय ब्राह्मणाय दातुमहमुत्सृज्ये !*


 उसके पश्चात ब्राह्मण को दक्षिणा देकप ब्राह्मण की चार परिक्रमा करके प्रणाम करें | और फिर ब्राम्हण से पूछें :---


*शेषान्नं किं कर्तव्यम्*  अर्थात बचे हुए अन्न का क्या किया जाय ??


तब ब्राह्मण उसके उत्तर में कहता है 

*इष्टै: सह भोक्तव्यम्* अर्थात अपने इष्ट जनों के साथ भोजन कर लीजिए | 


*यह तो वह ब्राह्मण भोजन कराने का विधान था ! यदि ब्राह्मण भोजन नहीं कराना है तो :--*


*आमान्न (कच्चे अन्न)* , घी , चीनी ,  नमक आदि षडरस वस्तुओं को दक्षिणा सहित *श्राद्ध भोजन के निमित्त* किसी ब्राह्मण को संकल्प करके दे देना चाहिए |


पितृपक्ष में प्रतिदिन *पार्वण श्राद्ध* करने की विधि है अतः जो लोग पितृपक्ष में पिता की तिथि पर अथवा अन्य पूर्वजों की तिथि पर *श्राद्ध* करते हैं इसके अतिरिक्त पर्वों पर तीर्थ आदि में *श्राद्ध* करते हैं उन्हें *पार्वणविधि से श्राद्ध करना चाहिए* पिंडदानात्मक *पार्वण श्राद्ध* संभव न होने पर उसके स्थान पर अपने समस्त पितरों का संकल्प द्वारा *श्राद्ध* कर ब्राह्मण भोजन कराने का भी विधान है | भोजन कराने की स्थिति ना हो तो आमान्न दान का संकल्प कर दिया जाय | *यदि आमान्नदान भी संभव ना हो या कोई सुपात्र ब्राम्हण न प्राप्त हो तो कम से कम गो ग्रास निकालकर गाय को पितरों के निमित्त खिला देना चाहिए इससे भी श्राद्ध का फल मिल जाता है |*


कैसे भी करके पितरों के निमित्त श्रद्धा पूर्वक *श्राद्ध* अवश्य करना चाहिए |

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Jyoti

Jyoti

👌👌👌

8 दिसम्बर 2021

16
रचनाएँ
पितृपक्ष एवं श्राद्ध
5.0
श्राद्ध हिन्दू एवं अन्य भारतीय धर्मों में किया जाने वाला एक कर्म है जो पितरों के प्रति श्रद्धा और कृतज्ञता अभिव्यक्त करने तथा उन्हें याद करने के निमित्त किया जाता है। इसके पीछे मान्यता है कि जिन पूर्वजों के कारण हम आज अस्तित्व में हैं, जिनसे गुण व कौशल, आदि हमें विरासत में मिलें हैं, उनका हम पर न चुकाये जा सकने वाला ऋण हैं। इस पुस्तक के माध्यम से हम श्राद्ध के सूक्ष्म तथ्यों पर चर्चा करेंगे
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