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पितृपक्ष एवं श्राद्ध - भाग - चार

21 सितम्बर 2021

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सनातन ग्रन्थों में *श्राद्ध* न करने से होने वाली जो हानि बताई गई है उसे सुनकर या जानकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं | अत: *श्राद्धतत्व* से परिचित होना तथा उसके अनुष्ठान के लिए तत्पर रहना प्रत्येक मनुष्य का कर्तव्य बन जाता है |  यह सर्वविदित है कि मृत व्यक्ति इस महायात्रा में अपना स्थूल शरीर भी साथ में नहीं ले जा सकता ! तब वह पाथेय (अन्न जल) कैसे ले जा सकता है ? उस समय उसके सगे संबंधी *श्राद्ध विधि* से उसे जो कुछ देते हैं वही उसे मिलता है | शास्त्र ने मरणोपरांत पिंडदान की व्यवस्था की है ! सर्वप्रथम शव यात्रा के अंतर्गत ६ पिण्ड दिए जाते हैं जिनसे भूमि की अधिष्ठातृ देवताओं की प्रसन्नता तथा भूत पिसाचों द्वारा होने वाली बाधाओं का निराकरण आदि प्रयोजन सिद्ध होते हैं | इसके साथ ही *दसगात्र* में दिए जाने वाले १० पिण्डों के द्वारा जीव को आतिवाहिक सूक्ष्म शरीर की प्राप्ति होती है ! यह मृत व्यक्ति की महायात्रा के प्रारंभ की बातें हुई ! अब आगे उसके रास्ते के भोजन अन्न जल की आवश्यकता पड़ती है जो उत्तमषोडशी में दिए जाने वाले पिंडदान से उसे प्राप्त होता है | यदि परिजनों के द्वारा उपरोक्त *श्राद्धक्रिया* नहीं की जाती है तो :---

*लोकान्तरेषु ये तोयं लभन्ते नान्नमेव च !*

*दत्तं न वंशजैर्येषां ते व्यथां यान्ति दारुणम् !!*

*-: कूर्मपुराण :-*

*अर्थात्:-* यदि सगे - संबंधी पुत्र - पौत्र आदि उपरोक्त कर्म नहीं करते हैं , मृतक का पिंडदान अन्न - जल से नहीं करते हैं तो आत्मा को भूख प्यास से बहुत दारुण दुख होता है |

*यह तो रही मृत आत्मा की बात कि उसे कितना कष्ट होता है और अब यह जान लिया जाए कि मृतक के परिजन यदि मृत आत्मा का श्राद्ध नहीं करते हैं तो परिजनों को क्या कष्ट होता है |*

*श्राद्ध* न करने वाले को भी पग पग पर कष्ट का सामना करना पड़ता है | मृत प्राणी बाध्य होकर *श्राद्ध* न करने वाले अपने सगे संबंधियों का रक्त चूसने लगता है ! यथा :--

*"श्राद्धं न कुरुते मोहात् तस्य रक्तं पिबन्ति ते"*

*-: ब्रह्मपुराण :-*

इतना ही नहीं पितर अपने ही परिजनों को श्राप भी देते हैं ! यथा:--

*"पितरस्तस्य शापं दत्वा प्रयान्ति च"*

*-: नागरखण्ड :-*

पितरों के श्राप से श्रापित होकर अभिशप्त परिवार को जीवन भर कष्ट ही कष्ट झेलना पड़ता है :-

*न तत्र वीरा जायन्ते नारोग्यं न शतायुष: !*

*न च श्रेयो$धिगच्छन्ति यत्र श्राद्धं विवर्जितम् !!*

*-: हारीतस्मृति :-*

*अर्थात्:- उस परिवार में पुत्र नहीं उत्पन्न होते , कोई निरोग नहीं रहता , किसी की लंबी आयु नहीं होती ! कहने का तात्पर्य है कि किसी भी प्रकार से उस परिवार का कल्याण नहीं होता ! सिर्फ इतना ही नहीं :--

*"श्राद्धमेतन्न कुर्वाणो नरकं प्रतिपद्यते"*

*-: विष्णुस्मृति :-*

*अर्थात्:-* पितरों का *श्राद्ध* न करने वाले परिजनों को नरक भी जाना पड़ता है ! इसलिए सभी को समयानुसार अपने पितरों के लिए *श्राद्घकर्म* करते रहना चाहिए ! *उपनिषद* में कहा गया है :---

*देवपितृकार्याभ्यां न प्रमादितव्यम्"*

*-: तैत्तरीय उपनिषद :-*

*अर्थात:-* किसी भी मनुष्य को देवता तथा पितरों के कार्यों में प्रमाद कदापि नहीं करना चाहिए क्योंकि प्रमाद से प्रत्यवाय होता है | इसलिए यह सब का कर्तव्य बनता है कि हम जिन पूर्वजों की संपत्तियों पर ऐश्वर्य भोग रहे हैं उनके लिए *पितृयज्ञ* अर्थात *श्राद्ध कर्म* अवश्य करें |

*क्रमश: :--*

Jyoti

Jyoti

बहुत बढ़िया

8 दिसम्बर 2021

16
रचनाएँ
पितृपक्ष एवं श्राद्ध
5.0
श्राद्ध हिन्दू एवं अन्य भारतीय धर्मों में किया जाने वाला एक कर्म है जो पितरों के प्रति श्रद्धा और कृतज्ञता अभिव्यक्त करने तथा उन्हें याद करने के निमित्त किया जाता है। इसके पीछे मान्यता है कि जिन पूर्वजों के कारण हम आज अस्तित्व में हैं, जिनसे गुण व कौशल, आदि हमें विरासत में मिलें हैं, उनका हम पर न चुकाये जा सकने वाला ऋण हैं। इस पुस्तक के माध्यम से हम श्राद्ध के सूक्ष्म तथ्यों पर चर्चा करेंगे
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