अपने पितरों के लिए *श्राद्ध* करते समय कुछ विशेष बातों का ध्यान अवश्य रखना चाहिए | कुछ विशेष वस्तुएं जो *श्राद्ध* में प्रशस्त एवं निषिद्ध उनकी जानकारी प्रस्तुत है | इन वस्तुओं के विषय में ज्ञान के बिना *श्राद्ध* सफल नहीं होता | इनका ज्ञान प्रत्येक *श्राद्धकर्ता* को अवश्य होना चाहिए | यहां कुछ विशेष बातें बताने का प्रयास कर रहा हूं जिनका *श्राद्ध कर्म* में बहुत महत्व है | जैसे :- *कुतप बेला* अर्थात दिन का आठवां मुहूर्त (दिन में ११:३६ से १२:२४ तक का समय) *श्राद्ध* के लिए मुख्य रूप से प्रशस्त है | इसे ही *कुतप बेला* कहा जाता है :--
*पापं कुत्सितमित्याहुस्तस्य संतापकारिण: !*
*अष्टावेते यतस्तस्मात् कुतपा इति विश्रुता: !!*
*-: मत्स्यपुराण :-*
कुत्सित अर्थात पाप को संतप्त करने के कारण इसे *कुतप* कहा गया है इसके अतिरिक्त :--
*मध्याह्न: खड्गपात्रं च तथा नेपालकम्बल: !*
*रूप्यं दर्भास्तिला गावो दौहित्रश्चाष्टम: स्मृत: !!*
*-: मत्स्यपुराण :-*
*अर्थात्:-* मध्याह्नकाल , खड्गपात्र ( गैंडे के सींग से बना पात्र ) नेपालकंबल , चांदी , कुशा , तिल , गौ , और दौहित्र (कन्या का पुत्र) यह आठों भी *कुतप* के सामान की फलदायी होने के कारण *कुतप* कहलाते हैं | *श्राद्ध* के लिए बड़े ही दुर्लभ प्रयोजनीय हैं |
बिना कुशा और तिल के *श्राद्ध* की पूर्णता नहीं होती | क्योंकि :---
*विष्णोर्देहसमुद्भूता कुशा: कृष्णास्तिलास्तथा !*
*श्राद्धस्य रक्षणायालमेतत् पिराहुर्दिवौकस: !!*
*-: मत्स्यपुराण :-*
*अर्थात्:-* कुशा तथा काला तिल भगवान विष्णु (वाराह) के शरीर से प्रादुर्भूत हुए हैं अतः ये *श्राद्ध* की रक्षा करने में सर्वसमर्थ हैं ऐसा देवताओं ने कहा है | समूलाग्र हरित (जड़ से अंत तक हरे ) तथा गोकर्णमात्र परिमाण के कुश *श्राद्ध* में उत्तम कहे गए हैं |
*श्राद्धकर्म* में बर्तनों की आवश्यकता भी पड़ती है | पितरों के निमित्त पात्र के रूप में पलाश तथा महुआ आदि के वृक्षों के पत्तों के दोने तथा काष्ठ एवं हाथ से बनाये मिट्टी आदि के पात्रों का प्रयोग किया जा सकता है | परंतु इसके साथ ही सुवर्णमय एवं रजतमय पात्रों के प्रयोग की विधि है :--
*पात्रं वनस्पतिमयं तथा पर्णमयं पुन: !*
*सौवर्णं राजतं वापि पितृणां पात्रमुच्यते !!*
*रजतस्य कथा वापि दर्शनं दानमेव वा !*
*राजतैर्भाजनैरेषामथवा रजतान्वितै: !!*
*वार्यपि श्रद्धया दत्तमक्षयायोपकल्पते !*
*तथार्घ्यपिण्डभोज्यादौ पितृणां रीजतं मतम् !!*
*शिवनेत्रोद्भवं यस्मात् तस्मात् पितृवल्लभम् !!*
*-: मत्स्यपुराण :-*
*अर्थात्:-* मुख्य रूप से *श्राद्ध* में रजत (चांदी) का विशेष महत्व बताया गया है | पितरों के निमित्त यदि चांदी से बने हुए , चांदी से मढ़े हुए पात्रों द्वारा श्रद्धा पूर्वक जलमात्र भी प्रदान कर दिया जाय तो वह अक्षय तृप्तिकारक होता है | इसी प्रकार पितरों के लिए और अर्घ्य , पिण्ड और भोजन के पात्र भी चांदी के ही प्रशस्त माने गए हैं | चूँकि चांदी शिव जी के नेतृत्व उद्भूत हुई है इसलिए वह पितरों को परम प्रिय है | यहां तक कहा गया है कि यदि चांदी का पात्र देने की सामर्थ्य ना हो तो चांदी के विषय में चर्चा कर लेने , दर्शन कर लेने या दान करने से *श्राद्ध कार्य* संपन्न हो सकता है |
*श्राद्ध* में अत्यन्त पवित्र क्या है यह बताते हुए कहा गया है कि:--
*त्रीणि श्राद्धे पवित्राणि दौहित्र: कुतपस्तिला: !*
*रजतस्य तथा दानं कथासंकीर्तनादिकम् !!*
*-: विष्णुपुराण :-*
*अर्थात्:-* दौहित्र (कन्या का पुत्र) कुतप (दिन का आठवां मुहूर्त) और तिल यह तीन इसके अतिरिक्त चांदी का दान और भगवत्स्मरण -- यह सब *श्राद्ध* में अत्यंत पवित्र माने गए हैं |