शास्त्रों ने *श्राद्ध* के अनेक भेद बताये हैं ! किन्तु मैं यहाँ उन्हीं श्राद्धों का उल्लेख कर रहा हूँ अत्यन्त आवश्यक एवं अनुष्ठेय हैं !
*नित्यं नैमित्तिकं काम्यं त्रिविधं श्राद्धमुच्यते"*
*-: मत्स्यपुराण :-*
*अर्खात:-* नित्य , नैमित्तिक और काम्य - भेद से *श्राद्ध* तीन प्रकार के होते हैं !
*नित्यं नैमित्तिकं काम्यं वृद्धिश्राद्धमथापरम् !*.
*पार्वणं चेति विज्ञेयं श्राद्ध पञ्चविधं बुधै: !!*
*-: यमस्मृति :-*
*अर्थात् :-* यम स्मृति में पाँच प्रकार के *श्राद्ध* का वर्णन मिलता है :- नित्य , नैमित्तिक , काम्य , वृद्धि और पार्वण !
प्रतिदिन किये जाने वाले *श्राद्ध को नित्य श्राद्ध कहते हैं !*
*अहन्यनि यच्छ्राद्धं तन्नित्यमिति कीर्तितम् !*
*वैश्वदेन विहीनं तदशक्तावुदकेन तु !!*
*-: भविष्यपुराण :-*
*अर्थात्:- नित्यश्राद्ध* में विश्वेदेव नहीं होते तथा अशक्तावस्था में केवल जलप्रदान से भी इस *श्राद्ध* की पूर्ति हो जाती है !
*एकोद्दिष्टश्राद्ध को नैमित्तिक श्राद्ध* कहते हैं इसमें भी विश्वेदेव नहीं होते |
किसी कामना की पूर्ति के लिए किये जाने वाले *श्राद्ध* को *काम्यश्राद्ध* कहा जाता है |
वृद्धिकाल में पुत्रजन्म तथा विवाहादि में जो *श्राद्ध* किया जाता है उसे *वृद्धिश्राद्ध (नान्दीश्राद्ध)* कहते हैं |
पितृपक्ष , अमावस्या अथवा पर्व की तिथि आदि पर जो सदैव (विश्वेदेव सहित) *श्राद्ध* किया जाता है उसे *पार्वणश्राद्ध* कहते हैं |
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*नित्यं नैमित्तिकं काम्यं वृद्धिश्राद्धं सपिण्डनम् !*
*पार्वणं चेति विज्ञेयं गोष्ठीं शुद्ध्यर्थमष्टमम् !!*
*कर्मागं नवमं प्रोक्तं दैविकं दशमस्मृतम् !*
*यात्रास्वेकादशं प्रोक्तं पुष्ट्यर्थं द्वादशस्मृतम् !!*
*-: विश्वामित्र स्मृति :-*
*अर्थात्:-* विश्वामित्र स्मृति , भविष्य पुराण आदि में :- नित्य , नैमित्तिक , काम्य , वृद्धि , पार्वण , सपिण्डन , गोष्ठी , शुद्ध्यर्थ , कर्मांग , दैविक , यात्रार्थ तथा पुष्ट्यर्थ आदि *बारह प्रकार के श्राद्ध* बताये हैं ! प्राय: *सभी श्राद्धों का अन्तर्भाव उपर्युक्त पाँच श्राद्धों में होता है !*
*सपिण्डन श्राद्ध:--* जिस श्राद्ध में प्रेतपिंडों को पितृपिंडों में मिलाया जाता है उसे *सपिंडन श्राद्ध* कहते हैं !
*गोष्ठी श्राद्ध:--* समूह में जो *श्राद्ध* किया जाता है उसे *गोष्ठी श्राद्ध* कहते हैं !
*शुद्ध्यर्थ श्राद्ध :--* शुद्धि के निमित्त जिस *श्राद्ध में* ब्राह्मणों को भोजन कराया जाता है , उसे *शुद्ध्यर्थ श्राद्ध* कहते हैं !
*कर्मांग श्राद्ध :--* गर्भाधान , सीमन्तोन्नयन , तथा पुंसवन आदि संस्कारों में जो *श्राद्ध* किया जाता है , उसे *कर्माँग श्राद्ध* कहते हैं |
*दैविक श्राद्ध :--* सप्तमी आदि तिथियो में विशिष्ट हविष्य के द्वारा देवताओं के लिए जो *श्राद्ध* किया जाता है , उसे *दैविक श्राद्ध* कहा गया है |
*यात्रार्थ श्राद्घ:--* तीर्थ के उद्देश्य से देशान्तर जाने के समय घृतद्वारा जो *श्राद्ध* किया जाता है , उसे *यात्रार्थ श्राद्ध* कहते हैं |
*पुष्ट्यर्थ श्राद्ध:--* शारीरिक अथवा आर्थिक उन्नति के लिए जो *श्राद्ध* किया है , उसे *पुष्ट्यर्थ श्राद्ध* कहते हैं |
उपर्युक्त सभी प्रकार के *श्राद्ध* श्रौत एवं स्मार्त भेद से दो प्रकार के होते हैं !
*श्रौत श्राद्ध :--* पिण्डपितृयाग को *श्रोत श्राद्ध* कहते हैं ! *अमावस्यां पिण्डपितृयाग:* अर्थात् पिण्डपितृयाग अमावस्या के ही दिन होता है | इस याग को करने का अधिकार अग्निहोत्री के अतिरिक्त किसी दूसरे को नहीं है |
*स्मार्त श्राद्घ:--* एकोद्दिष्ट , पार्वण तथा तीर्थश्राद्ध से लेकर मरण तक के श्राद्ध को *स्मार्त श्राद्ध* कहा जाता है |
हमारे शास्त्रों में *श्राद्ध के ९६ अवसर* बताये गये हैं ! जब *श्राद्ध* किया जा सकता है | ये अवसर हैं :--
*अमायुगामनुक्रान्तिधृतिपातिमहालया: !*
*अष्टका$न्वष्टका पूर्वेद्यु: श्राद्धैर्नवतिश्च षट् !!*
*-: धर्म सिन्धु :-*
अर्थात्:- बारह महीनों की *बारह अमावस्यायें* , सतयुग त्रेता आदि युगों के प्रारंभ की *चारों युगादि तिथियाँ* , मनुओं के आरंभ की *चौदह मन्वादि तिथियां* *बारह* संक्रांति , *बारह वैधृति योग , *बारह* व्यतीपात योग , *पन्द्रह* महालय श्राद्ध (पितृपक्ष) *पांच* अष्टका , *पाँच* अन्वष्टका , तथा *पांच* पूर्वेद्यु: ! *यह ९६ श्राद्ध के अवसर हैं |
इस प्रकार *श्राद्ध के भेद* हमारे धर्मशास्त्रों में बताये गये हैं |
*क्रमश:--*