*श्राद्धकर्म* में किन वस्तुओं / सामग्रियों की विशेष महत्ता है यह बताते हुए हमारे शास्त्र कहते हैं :---
*उच्छिष्टं शिवनिर्माल्यं वान्तं च मृतकर्पटम् !*
*श्राद्धे सप्त पवित्राणि दौहित्र: कुतपस्तिला: !!*
*-: श्राद्धकल्प :-*
*अर्थात्:- श्राद्ध* करते समय इन सात :- दूध , गंगाजल , मधु , तसर (रेशम) का कपड़ा , दौहित्र , कुतप और तिल ! इसके अतिरिक्त *श्राद्ध* में *तुलसी* का अति विशिष्ट स्थान है ! तुलसी की गन्ध मात्र से पितर संतुष्ट हो जाते हैं :--
*तुलसीगन्धमाघ्राय पितरस्तुष्टमानसा: !*
*प्रयान्ति गरुड़ारूढ़ास्तत्पदं चक्रपाणिन: !!*
*पितृपिण्डार्चनं श्राद्धै यै: कृतं तुलसीदलै: !*
*प्रीणिता: पितरस्तेन यावच्चन्द्रार्कमेदिनी !!*
*-: श्राद्धकल्प :-*
*अर्थात्:-* तुलसी की गन्ध से पितृगण प्रसन्न होकर गरुड़ पर आरूढ़ हो विष्णुलोक को चले जाते हैं ! तुलसी से पिण्डार्चन किये जाने पर पितर सोग प्रलयपर्यन्त तृप्त रहते हैं | प्राय: लोग कहते हैं कि हमने पितरों के लिए सबकुछ किया करता भी हूँ परंतु फिर भी उसका फल नहीं मिल रहा है ! पितृकार्य करने के लिए *श्राद्धकर्ता* को कैसा होना चाहिए यह बताया गया है :---
*"त्रीणि चात्र प्रशंसन्ति शौचमक्रोधमत्वराम्"*
*-: मनुस्मृति :-*
*अर्थात्:-* जो भी *श्राद्ध* करने को तत्पर हो उसमें पवित्रता , अक्रोध , एवं अचापल्य (जल्दबाजी न करना) के गुण होने चाहिए ! जब तक *श्राद्धकर्ता* के भीतर यह तीन विशेष गुण नहीं होगे तब तक *श्राद्ध* का फल मिलना थोड़ा कठिन है | सनातन धर्म में *पुष्पों का बड़ा महत्व है |* बिना पुष्प के कोई भी क्रिया सम्पन्न नहीं होती | प्राय: लोग कोई भी पुष्प लेकर *श्राद्धकर्म* करने लगते हैं यह उचित नहीं है | यद्यपि पुष्प महत्वपूर्ण है परंतु यह भी बताया गया है कि किस पूजा में कौन सा पुष्प ग्रहणीय है और कौन सा वर्जित | *पितृयाग , पिण्डदान , श्राद्ध आदि में कौन का पुष्प लेना चाहिए* इसका निर्देश भी हमें शास्त्रों में मिलता है जिसका पालन करना हमारा कर्तव्य बनता है | यहाँ हम *श्राद्ध में ग्राह्य पुष्प* बताने का प्रयास कर रहे हैं :--
*शुक्ला: सुमनस: श्रेष्ठास्तथा पद्मोत्पलानि च !*
*गन्धरूपोपपन्नानि यानि चान्यानि कृत्स्नश: !!*
*आगस्त्यं भृंगराजं च तुलसी शतपत्रिका !*
*चम्पकं तिलपुष्पं च षडेते पितृवल्लभा: !!*
*-: निर्णय सिन्धु :-*
*अर्थात्:-* यह बात ध्यान रखनी चाहिए कि *श्राद्ध* में मुख्यरूप से सफेद पुष्प ग्राह्य हैं | सफेद पुष्प में भी सुगन्धित पुष्प की विशेष महिमा है | मालती , जूही , चम्पा एवं सभी सुगन्धित सफेद पुष्पों के अतिरिक्त :- अगस्त्यपुष्प , भृंगराज , तुलसी , शतपत्रिका , चम्पा तथा तिलपुष्प - ये छ: पितरों को अतिप्रिय हैं | अपने द्रारा किये जा रहे *श्राद्धकर्म* को सफल बनाने के लिए इन पुष्पों का ही चयन करना चाहिए | *श्राद्धकर्म* बहुत ही महत्वपूर्ण कर्म है इससे जीवन की दिशा एवं दशा का निर्धारण होता है | वैसे तो लोग प्राय: अपने घर में ही *श्राद्धकर्म* करते हैं ! यह ठीक भी है परंतु कुछ विशेष स्थान हैं जहाँ *श्राद्घ* करने का विशेष फल प्राप्त होता है :-
*श्राद्धस्य पूजितो देशो गया गंगा सरस्वती !*
*कुरुक्षेत्रं प्रयागश्च नैमिषं पुष्कपाणि च !!*
*नदीतटेषु तीर्थेषु शैलेषु पुलिनेषु च !*
*विविक्तेष्वेव तुष्यन्ति दत्तेनेह पितामहा: !!*
*-: श्राद्धप्रकाश :-*
*अर्थात्:-* गया , पुष्कर , प्रयाग , कुशावर्त (हरिद्वार) , कुरुक्षेत्र , नैमिषारण्य , पुष्कर आदि तीर्थों मे *श्राद्ध* की विशेष महिमा है | यहाँ की भूमि सदैव पवित्र एवं फलदायी है | परंतु साधारण मनुष्यों का इन तीर्थों में पहुँचकर *श्राद्ध* करना सम्भव नहीं हो सकता ! *ऐसी स्थिति में मनुष्य क्या अपने पितरों का श्राद्ध न करे ?* जी नहीं ! *श्राद्ध* तो अवश्य ही करना चाहिए ! यह सत्य है कि *श्राद्ध* सबको ही करना है परंतु सभी लोग इन तीर्थों में नहीं पहुँच पायेंगे ! तो क्या करें ? इसका समाधान भी है :---
*दक्षिणाप्रवणे देशे तीर्थादौ वा गृहे$थवा !*
*भूसंस्कारादिसंयुक्ते श्राद्धं कुर्यात् प्रयत्नत: !!*
*गोमयेनोपलिप्तेषु विविक्तेषु गृहेषु च !*
*कुर्याच्छ्राद्धमथैतेषु नित्यमेव यथाविधि: !!*
*-: श्राद्धप्रकाश :-*
*अर्थात्:-* सामान्यत: घर में , गोशाला में , देवालय , नदियों के तट आदि में *श्राद्घ* का निशेष महत्व है ! परंतु यदि घर में करना हो तो सबसे पहले पूरे घर को या फिर *श्राद्धभूमि* (जहाँ श्राद्घ करना हो) को गाय के गोबर से लीपा जाय फिर भूमि संस्कार करके तब वहाों *श्राद्धकर्म* किया जाय ! *एक विशेष बात:-* यदि दक्षिण दिशा की ओर ढलान वाली भूमि हो तो वह अत्युत्तम कही गयी है | प्राय: लोगों के घर पक्के बन गये हैं जहाँ गोय के गोबर से लेपन करना सम्भव नहीं है | ऐसी स्थिति में जलपात्र में गाय के गोबर का कुछ कण / अंश डालकर पोंछा लगाकर भी *श्राद्धभूमि* को पवित्र किया जा सकता है |