डॉ॰ प्रेमशंकर की मान्यता है कि 'लहर' में कवि एक चिन्तनशील कलाकार के रूप में सम्मुख आता है, जिसने अतीत की घटनाओं से प्रेरणा ग्रहण की है। प्रसाद के गीतों की विशेषता यही है कि उनमें केवल भावोच्छ्वास ही नहीं रहते, जिनमें प्रणय के विभिन्न व्यापार हों, किन
नीहार महादेवी वर्मा का पहला कविता-संग्रह है। इसका प्रथम संस्करण सन् १९३० ई० में गाँधी हिन्दी पुस्तक भण्डार, प्रयाग द्वारा प्रकाशित हुआ। इसकी भूमिका अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध' ने लिखी थी। इस संग्रह में महादेवी वर्मा की १९२३ ई० से लेकर १९२९ ई० तक के
यह पुस्तक मेरे द्वारा लिखी गयी कविता, गज़लों एवं शेरों का सग्रह है!
भक्तियोग का एक बड़ा लाभ यह है कि वह हमारे चरम लक्ष्य (ईश्वर) की प्राप्ति का सब से सरल और स्वाभाविक मार्ग है। पर साथ ही उससे एक विशेष भय की आशंका यह है कि वह अपनी निम्न या गौणी अवस्था में मनुष्य को बहुधा भयानक मतान्ध और कट्टर बना देता है।
जिनका जन्म हुआ है उनकी मृत्यु भी निश्चित है | जीवन-मृत्यु प्रकृति का शाश्वत सत्य है | जिस तरह बीता हुआ समय कभी वापस नहीं आता, उसीतरह जो दिवंगत हो जाते हैं, कभी नहीं लौटते | मात्र उनकी यादें हमारे मानस पर बरबस आती रहती है | उनकी क्रियाकलापें, उनकी बात
झरना की कविताओं में कवि के आगामी विकास का आभास प्राप्त हो जाता है और इसी कारण समीक्षक इसे छायावाद युग का एक महत्त्वपूर्ण सोपान मानते हैं। झरना की अधिकांश कविताएँ १९१४-१९१७ ई० के बीच लिखी गईं है। झरना कवि के यौवनकाल की रचना है और इसकी कविताओं से उसकी
कठनाई रास्ते का कांटा नहीं,अपितु अवसर होता है,कुछ कर दिखाने का
माखनलाल चतुर्वेदी की कविताएं छायावाद का सर्वोच्च रूप लिए हुए हैं इसलिए उनकी कविताएं प्रकृति के अधिक निकट हैं। उनकी लेखन भाषा भी हिंदी के उस काल का प्रतिबिम्ब है।
ऐतिहासिक जगत् के प्रारम्भ से लेकर वर्तमान काल तक मानव-समाज में अनेक अलौकिक घटनाओं के उल्लेख देखने को मिलते है! आज भी, जी समाज आधुनिक विज्ञान के भरपूर आलोक में रह रहे है, उनमें भी ऐसी घटनाओं की गवाही देनेवाले लोगो की कमी नहीं।
इस पुस्तक का उद्देश्य केवल पाठक को Positive माइंड और किसी से ना डरे इस उद्देश्य से लिखा गया है
यादें जीवन से जुड़ी हुई, यादों के झरोखे,
भैंस की दुख भरी कहानी हास्य व्यंग
पश्यन्ती के निबन्धों में धर्मवीर भारती की एक ऐसी बहुआयामी साहित्य-दृष्टि मिलेगी जो इतिहास की हवाओं की हर हलकी से हलकी हिलोर पर संवेदनशील मुलायम पीपल पाल की तरह कांप उठे। ग्रीक वीणा की तरह झंकार भी दे, और खुले हुए पाल की तरह तनकर तेज हवाओं को आत्मस्य
हाकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद तुम मुझको यों ही भुला न पाओगे---- हाकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद बैस ---- खेल दिवस (29 अगस्त ) एवं मेजर ध्यानचंद की जयन्ती(29 अगस्त 1905 ) की सभी मित्रों को हार्दिक बधाई एव शुभकामनायें राजपूतों के गौरव ,विश्व के
'सूरज का सातवाँ घोड़ा' धर्मवीर भारती जी का एक प्रयोगात्मक और मौलिक उपन्यास है। प्रयोगात्मक इसलिए क्योंकि इसके बहुत से गुण परम्परागत हिंदी उपन्यासों से अलग थे मसलन कहानी में कम पात्रों का होना, उपन्यास का बहुत विशाल न होना, किसी पात्र के विकास के लिए ब
इस पुस्तक में शब्द.इन द्वारा दिए गए विविध विषयोँ में किया गया लेखन संगृहीत है।