कुछ बात होंठ पर टीके रहेकुछ घबराहट थी सो सिले रहेहोंठो पे रखे ये धीर-अधीरबस स्वर-सुधा को तरस रहे/ भ्रमजाल-जाल ये यौवन का ये कू-कू कोयल सी बोली अगर यही मुहूर्त है मिलने का तो क्यूँ ना हर दि
प्रतीकात्मकता हम प्रतिवर्ष सितंबर माह में हिंदी दिवस, हिंदी सप्ताह या फिर हिंदी पखवाड़ा मनाते हैं. साल भर की हिंदी के प्रति जिम्मेदारी एक दिन , एक सप्ताह या फिर एक पखवाड़े में निपटा देते हैं. फिर साल भर हिंदी की तरफ देखने की जरूरत ही नहीं है. हिंदी के इस पर्व में बतियाने, भाषणबाजी करने या फिर कुछ प