जबसे साँसों ने तुम्हारी गंध पहचानानी शुरु की है तुम्हारी खुशबू हर पल महसूस करती हूँ हवा की तरह, ख़ामोश आसमां पर बादलों से बनाती हूँ चेहरा तुम्हारा और घनविहीन नभ पर काढ़ती हूँ तुम्हारी स्मृतियों के बेलबूटे सूरज की लाल,पीली, गुलाबी और सुनहरी किरणों के धागों से, जंगली फूलों पर मँडराती सफेल तितलियों सी
जब तक हैं सूरज चाँद --अटल नाम तुम्हारा है , ओ ! माँ भारत के लाल ! अमर बलिदान तुम्हारा है !!-आनी ही थी मौत तो इक दिन -- जाने किस मोड़ पे आ जाती.- कैसे पर गर्व से फूलती , - मातृभूमि की छाती ;-दिग -दिंगत में गूंज रहा आज--यशोगान तुम्हारा है !!ओ ! माँ भार
Ye Dharati Ye Ambar Jab Se Teraa-meraa Prem Hai Tabase Lyrics of Prem : Ye Dharati Ye Ambar Jab Se Teraa-meraa Prem Hai Tabase is a beautiful hindi song from 1995 bollywood film Prem. This song is composed by Laxmikant and Pyarelal. Alka Yagnik and Nalin Dev has sung this song. Its lyrics are writte
'प्रेम' एक 1995 हिंदी फिल्म है जिसमें संजय कपूर, तबू, अरुणा ईरानी, अमरीश पुरी, दीपक तिजोरी, राजू खहर, सईद जाफरी, चंद्रकांत गोखले, दलित ताहिल, आकाश खुराना, बीना, नवनीत निशन और गोविंद नामदेव प्रमुख भूमिका निभाते हैं। हमारे पास प्रेम के एक गीत गीत हैं लक्ष्मीकांत और प्यारेलाल ने अपना संगीत बना लिया ह
"उसको जाने हुए हैं बस कुछ दिन, फिर भी अपना-सा वो लगे मुझको,वैसे बेशक ही वो हकीकत है, जाने सपना-सा क्यों लगे मुझको, उसकी बातों में बात कुछ तो है, उसकी हर बात भा गई मुझको, उसमे मासूमियत है कुछ ऐसी, पल में ही रास आ गई मुझको... "
बकौल मोहब्बत वो मुझसे पूछता है दिल के मकान के उस कमरे में क्या?अब भी कोई रहता है। थोड़ा समय लगेगा,ध्यान से सुनना बड़ी शिद्दत से बना था वो कमराकच्चा था पर उतना ही सच्चा था उसे भी मालूम था कि उसकीएक एक ईंट जोड़ने में मेरीएक एक धड़कन निकली थी इकरारनामा तो थापर उस पर उसके दस्तख़त
प्रेम क्या है????? ईश्वर का दिया वरदान मूर्त अमूर्त में होता विद्यमान कोमल, निर्मल, लचीला भाव लिपिबद्ध नहीं शब्दों से जिसमें अनन्त गहराई समायी। प्रेम सनातन है बडा नाजुक शब्द है शाश्वत, निस्वार्थ, निरन्तरता का नाम है सरल, सहज भरा मार्ग मायावी दुनियां से लेना देना नहीं अहंकार, कपट से वास्ता नहीं क्यो
हो जो फुर्सत तो आ के मिल ले कभी, हर घड़ी तुझको ही बुलाता हुं,सोचता हूँ तुझे ही मैं अक्सर, गीत तेरे ही गुनगुनाता हुं,तु तो मशरूफ़ दूर बैठी है, तेरी यादों से दिल लगाता हुं,तेरी चाहत में जो भी लिखता हुं, तेरी तस्वीर को सुनाता हुं,यादें देती हैं तेरी जब दस्तक, खुद को भी मैं तो भूल जाता हुं,बेख़बर अजनबी मे
सुना था हमने की ज़माने में आईने के टुकड़े हुआ करते थे पता तो अब चला हमे वो आईने नही दिल हुआ करते थ
खुश रहे वो ,इसलिए ये दर्द भी सहना पड़ा,मन न था ,फिर भी मुझे ,उसे अलविदा कहना पड़ा,थी नहीं हसरत कभी जीना पड़े उसके बिना,उसके लिए हर वक़्त ही मरते हुए जीना पड़ा, एक उसके बिन अकेला इस कदर मैं हो गया,हर जख्म तनहा अकेले खुद मुझे सीना पड़ा,उसकी ख्वाहिस थी की मैं जिन्दा रहू,मेरा नाम हो,बस इसलिए ही जिन्दगी का ये
ग़ौर से देखो गुलशन में बयाबान का साया है ,ज़ाहिर-सी बात है आज फ़ज़ा ने जताया है। इक दिन मदहोश हवाऐं कानों में कहती गुज़र गयीं, उम्मीद-ओ-ख़्वाब का दिया हमने ही बुझाया है। आपने अपना खाता नम्बर विश्वास में किसी को बताया है,
चरागों में तुझको ढूंढा, खुशबुओं में तुझको पाया,पता तेरा मालूम न था, तभी तो यह लुत्फ पाया।पिछली गली में साया कोई अंधेरे में गुनगुनाता था,तेरे लिए जो खरीदी थी पाजेब, मैं उसको दे आया।पगली ही थी, चीथरों में लिपटी दुआएं बांट रही थी,मेरी कोट में पड़ा गुलाब मैं उसके पल्लू में बांध आया।भुट्टे बेचती बुढ़िया न
कहने वाले कह रहे हैं, सुनना कोई चाहता नहीं,‘मैं’ का मिजाज है ऐसा, परे कुछ दिखता नहीं...अपने विचार क्या, तर्क क्या, ‘मैं’ ही मिथ्या है,वजूद के कमरे से मगर कोई निकलता ही नहीं...सत्य, यथार्थ की मिल्कियत विरासत में नहीं मिलती,पराक्रम के पौरुष को मगर रणभूमि भाता ही नहीं...ईश्वर को, जीवन को समझने की जिद ल
हम चलते है , हम गिरते है,पर फिर भी आगे बढ़ते है।जो दर्द मिला सफर मेंवो घर बैठा इंसान क्या जाने।हम आते है , हम जाते है,हम सबसे हाथ मिलाते है।जो प्यार इस दुनिया मेंवो घर बैठा इंसान क्या जाने।हम हिंदी बोले, वो कोकण बोले,फिर भी अर्ध रात्रि में मीठे नगमे गाते है।जो अहसास मिला इस जंगल मेंवो घर बैठा इंसान
ना मैं उसका रहा और ना मैं तुम्हारा रहा,तेरे इश्क़ में ऐ सखी सारी उम्र कुंवारा रहा कभी मेरे दिन तो कभी मेरी रातें,दे दी सब तुम्हे न कुछ हमारा रहा
किशोर अवस्था का अंतिम दौर और युवा अवस्था की दहलीज पर कदम रखते ही मन शांत और कुछ जानने की
हो आँखों में भले आँसू, लबों को मुस्कुराना है,यहाँ सदियों से जीवन का,यही बेरंग फ़साना है,है मन में सिसकियाँ गहरी,दिलों में दर्द का आलम,मगर हालात के मारे को महफ़िल भी सजाना है,नहीं मंजिल है नजरों में, बहुत ही दूर जाना है,थके क़दमों को साहस को,हर इक पल ही मनाना है,खुद ही गिरना-सम्भलना है,खुद ही को कोसना अ
उसको, चाहिये भी क्या था, मुझसे,क्या था ऐसा, जो नहीं था, पास उसके,मुझमें था भी क्या कि दे सकूं उसको,पा कर, मिल भी जाता क्या ऐसा कुछ,ना दे सकूं ऐसी जिद भी कहां थी मेरी,फिर यह लेन-देन की आरजू थी भी कहां,यह तो फितूर है कि रिश्तों के दरमियां,होते हैं बाहम, कारोबारी तोलमोल के दस्तूर,वह चाहता भी कहां था कि