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राजकुमार- तू अपने और मैं अपने घर का

23 फरवरी 2022

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रचनाएँ
गरीबी में डॉक्टरी
5.0
यह पुस्तक मेरी कहानियों का प्रथम संग्रह है, जहाँ मेरे द्वारा कुछ कहानियों में शहरी और ग्रामीण अंचलों में व्याप्त व्यथा-कथा का चित्रण तो कुछ में ऐतिहासिक और आधुनिक सामाजिक पृष्ठभूमि का ताना-बाना बुनते हुए चमत्कारिक भाषा-शैली के स्थान पर सीधे-सरल शब्दों के माध्यम से उन्हें जन- साधारण तक पहुँचाने का प्रयास किया गया है। इस कहानी संग्रह में 'गरीबी में डॉक्टरी' मेरी मुख्य कहानी है। लेकिन इसे यदि कहानी के स्थान पर 'संघर्ष गाथा' कहेंगे तो अधिक उचित होगा। क्योंकि इसमें एक ऐसे कंगाली में जीते बच्चे की संघर्ष गाथा है, जिसने अपने बचपन से देखते आये 'डॉक्टर बनने के सपने' को अपनी घोर विपन्नता, अधकचरी शिक्षा, रूढ़िवादी सोच, सामाजिक विडंबनाओं और तमाम सांसारिक बुराइयों को ताक में रखकर शासन-प्रशासन तंत्र के व्यूह रचना को भेद कर अपने कठोर परिश्रम, निरंतर अभ्यास, सहनशील प्रवृत्ति और सर्वथा विकट परिस्थितियों में अदम्य साहस व दृढ़ इच्छाशक्ति के बल पर साकार कर दिखाया। मेरी नज़र में वह 'दशरथ मांझी के बाद एक और मांझी है- धर्मेंद्र मांझी। कथा-लेखन के सम्बन्ध में मेरा मानना है कि किसी भी कहानी की पृष्ठभूमि जितनी धरातल से जुड़ी होकर सरल शब्दों में अभिव्यक्त होंगी, वह उतनी ही गहराई तक पाठकों के दिलों में उतरकर अपना एक अलग स्थान बनाने में सफल रहेगी। इसी सोच पर रचाई-बसाई मेरी यह कहानियाँ कहाँ तक उड़ान भरेंगी, यह मेरे पाठकों पर निर्भर करेगा, जिसे देखने के लिए मैं उत्साहित हूँ।
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शहर का मोहजाल

9 फरवरी 2022
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दीपक का एक सहपाठी नन्दू गांव से आठवीं पास करके अपने एक रिश्तेदार के साथ मुम्बई चला गया था। दो वर्ष के बाद जब वह गांव वापस आया तो उसे देखकर दीपक अचंभित रह गया। उसे विश्वास नहीं हो रहा कि क्या सचमु

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मान-सम्मान पर बट्टा

11 फरवरी 2022
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इससे पहले कि जगत बाबू के मान-सम्मान पर लगे बट्टे की आग का उठता धुआँ उनके आँख-कान से होता हुआ फेफड़ों में घुसकर साँस लेना दूभर करता, उन्होंने गाँव-समाज से सदा के लिए मुँह मोड़ते हुए अपने बोझिल कदम शहर की

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लालच का बीज

17 फरवरी 2022
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पुराने समय की बात है। एक गांव में एक बुढ़िया अकेली रहती थी। उसका एक लड़का था। वह काम की तलाश में शहर गया। कुछ समय बाद उसने अपनी घर-गृहस्थी शहर में ही बसा ली। एक बार वह बुढ़िया को भी अपने साथ शहर लाया, ले

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शहर में मदारी-जंबूरे की जुगलबंदी

18 फरवरी 2022
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एक गाँव से दूसरे गाँव की ख़ाक छानते-छानते दीनू मदारी और उसका बेटा नानू थक जाता था। वे हर दिन अपनी छप्पर के झोपड़ी से दो जून की रोटी की खातिर निकल पड़ते और देर शाम लौटते। झोपड़ी में नानू की एक छोटी बहि

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सरकारी नौकरी का भ्रमजाल

20 फरवरी 2022
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गाँव से १०वीं पास करने के बाद गर्मियों की छुट्टियों में जब महेश का मामा उसे पहली बार दिल्ली घुमाने के लिए अपने साथ लाया तो, उसे वहाँ अच्छा खाना-पीना और लत्ते-कपड़े पहनने को मिले। उसके मामा ने उसे द

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राजकुमार- तू अपने और मैं अपने घर का

23 फरवरी 2022
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कड़ाकी की सर्दी का मौसम था। घनी पहाड़ियों के बीच बसी सपेरों की बस्ती में एक कच्चे मकान में बाबा दीनानाथ अपने बेटे-बहू और इकलौते पोता और उसके एक छोटे से कुत्ते के पिल्ले के साथ दुबका पड़ा था। पिछले

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लड़ाकू मैनेजर साहब

24 फरवरी 2022
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बात आज से लगभग २५ वर्ष पहले की है। हमारे गाँव के एक परिचित व्यक्ति अपनी भांजी सपना को १२वीँ पास होने के बाद उनके घर की तंग आर्थिक स्थिति को देखते हुए अपने साथ दिल्ली ले आये। उन्होंने पहले उसे दिल्ली म

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जैसे को तैसा

26 फरवरी 2022
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बहुत पुराने समय की बात है। एक गांव में तीन भाई रहते थे। बड़े भाई का नाम सीरू, उससे छोटे का वीरू और सबसे छोटे का नाम धीरू था। सीरू बहुत धूर्त और दुष्ट प्रवृत्ति का था और वीरू उसका अनुगामी था। धीरू उनका

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राजपाट का खेल

27 फरवरी 2022
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        पुराने समय की बात है। उदयसेन नगर में एक राजा राज्य करता था। राजा बड़े धार्मिक प्रवृत्ति का था। वह राजकाज का कार्य अपने महामंत्री और मुख्यमंत्री के भरोसे छोड़कर हर दिन पूजा-पाठ में ही लगा रहता था

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गरीबी में डाॅक्टरी

28 फरवरी 2022
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गहरी नींद में डूबकर भविष्य के सुनहरे सपने तो हर कोई देख सकता है, लेकिन जो जागती आंखों में सपना पाल के उसे साकार कर दुनिया को दिखा देता है, ऐसा लाखों में कोई एक मिलता है। ऐसे ही लाखों में एक छैनी-

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