कभी कभी पराए रिश्ते
खून के रिश्तों पर भारी पड़ जाते हैं,
इंसानी रिश्तों का बंधन निःस्वार्थ होता है
जिसका आधार सिर्फ प्यार और समर्पण
होता है,
इसमें कोई लेन देन नहीं
कोई गिला शिकवा नहीं
एक अनजाने अटूट बंधन का एहसास
जो सिर्फ दिलों से जुड़ा होता है ।
खून के रिश्ते तो स्वार्थ और अहंकार
में कभी कभी दूर और मजबूर हो
जाते हैं,
पर प्रेम के रिश्ते तो सिर्फ समर्पण
और विश्वास की डोर से बंधे होते हैं ,
जो सदैव निःस्वार्थ और भावनाओं
से जुड़े होते हैं ।।