जो पुल बनाया था इंसानियत का सदियों से,
आज उसमें दरारें आ गई हैं,
जाति मजहब धर्म मंदिर मस्जिद के भार से
रेखाएं आ गई हैं,
जो जोड़ दर परत दर लगा था ईंट गारों का,
नफरत की सियासत से गिरने को आई हैं,
जो धागे बुने थे पूर्वजों ने प्रेम परस्पर का,
उन मालाओं की मोतियां बिखरने को आतुर हैं,
इंसानियत का पुल जो बड़े शिद्दत से बना था,
एक एक ईंट बिखरने को आई हैं ।।