सबकी बात न माना कर
खुद को भी पहचाना कर
दुनिया से लड़ना है तो
अपनी ओर निशाना कर
या तो मुझसे आकर मिल
या मुझको दीवाना कर
बारिश में औरों पर भी
अपनी छतरी ताना कर
बाहर दिल की बात न ला
दिल को भी तहखाना कर
शहरों में हलचल ही रख
मत इनको वीराना कर
19 अगस्त 2022
सबकी बात न माना कर
खुद को भी पहचाना कर
दुनिया से लड़ना है तो
अपनी ओर निशाना कर
या तो मुझसे आकर मिल
या मुझको दीवाना कर
बारिश में औरों पर भी
अपनी छतरी ताना कर
बाहर दिल की बात न ला
दिल को भी तहखाना कर
शहरों में हलचल ही रख
मत इनको वीराना कर
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डॉ. कुँवर बेचैन का जन्म 1 जुलाई 1942 को उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद जिले के उमरी गांव में हुआ। पिता नारायणदास सक्सेना और माता गंगादेवी ने उनका नाम कुंअर बहादुर रखा। बचपन से ही गीतों-गजलों की यात्रा शुरू कर देने वाले कुंवर जी ने अपने नाम के साथ 'बेचैन' तखल्लुस (उपनाम) जोड़ लिया था। लेकिन उनका बचपन बड़े संघर्षों में बीता कुंवर बेचैन जी हिंदी के प्रमुख कवि हैं. ये अपनी कविता, गजलों व गीतों के जरिये सालो से लोगों के बीच एक खाश रिश्ता बनाते आये हैं. इन्होने आधुनिक ग़ज़लों के माध्यम से आम आदमी के दैनिक जीवन का वर्णन किया है. कवि कुंवर बेचैन जी गजल लिखने वालें रचनाकारों में से एक प्रमुख गजलकार और संगीतकार हैं. लगभग 50 वर्षों से देश – विदेश के सैंकड़ों कवि सम्मेलनों में अपनी छवि बनाने वाले कवि कुंवर बेचैन जी बचपन में 2 वर्ष की आयु में ही इनके माता – पिता का साया इनके ऊपर से उठ गया था. इस घटना के बाद इनका पालन – पोषण बहिन – बहनोई के यहाँ पूरा हुआ. जब ये 9 वर्ष के हुए थे तब इनकी बहिन का भी सन 1979 ई. में निधन हो गया था. इनका प्रारम्भिक जीवन विपदाओं से भरा हुआ था. इनके जीवन में काफी उतार-चढ़ाव रहें. इन्होने शिक्षा में एम. काम., एम. ए., पीएच. डी. ग्रहण की. इनकी शिक्षा चंदोसी, मुरादाबाद उत्तर – प्रदेश में ही रहकर संपन्न हुई. | 1995 से 2001 तक एम .एम एच. पोस्टगैजुएक्ट कालेज गाजियाबाद में हिंदी विभाग में अध्यापन किया और बाद में हिंदी विभागाध्यक्ष के पद से सेवानिवृत्त हुए. वर्तमान में कुंवर बेचैन जी एक स्वतंत्र लेखक के रूप में हम सभी के बीच उपस्थित हैं. कुंवर बेचैन जी को कविता लिखने का शौक बचपन से ही था पर इनके गाँव में बिजली की सुविधा नहीं थी. इसलिए ये स्ट्रीट लाईट की धीमी रौशनी में खड़े होकर कवितायेँ लिखा करते थे.| कुंवर जी को देश-विदेश की लगभग 250 संस्थाओं ने सम्मानित किया है. उत्तर प्रदेश के हिंदी संस्थान द्वारा 50 हजार का साहित्यक भूषण पुरस्कार तथा 2 लाख का हिंदी गौरव सम्मान, मुंबई की परिवार संस्था द्वारा 51 हजार का परिवार पुरस्कार आदि प्राप्त कर चुके हैं. | D