नीड़ के तिनके
अगर चुभने लगें
पंछियों को फिर कहाँ पर ठौर है।
जो न होतीं पेट की मज़बूरियाँ
कौन सहता सहजनों से दूरियाँ
छोड़ते क्यों नैन के पागल हिरन
रेत पर जलती हुई कस्तूरियाँ
नैन में पलकें
अगर चुभने लगें
पुतलियों को फिर कहाँ पर ठौर है।
पंख घायल थे मगर उड़ना पड़ा
दूर के आकाश से जुड़ना पड़ा
एक मीठी बूँद पीने के लिए
जिस तरफ़ जाना न था मुड़ना पड़ा
फूल भी यदि
शूल-से चुभने लगें
तितलियों को फिर कहाँ पर ठौर है।