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वर्षा-दिनः एक आफि़स

19 अगस्त 2022

8 बार देखा गया 8

जलती-बुझती रही

दिवस के ऑफ़िस में बिज़ली।

वर्षा थी,

यों अपने घर से धूप नहीं निकली।


सुबह-सुबह आवारा बादल गोली दाग़ गया

सूरज का चपरासी डरकर

घर को भाग गया

गीले मेज़पोश वाली-

भू-मेज़ रही इकली।

वर्षा थी, यूँ अपने घर से धूप नहीं निकली।


आज न आई आशुलेखिका कोई किरण-परी

विहग-लिपिक ने

आज न खोली पंखों की छतरी

सी-सी करती पवन

पिच गई स्यात् कहीं उँगली।

वर्षा थी, यों अपने घर से धूप नहीं निकली।


ख़ाली पड़ी सड़क की फ़ाइल कोई शब्द नहीं

स्याही बहुत

किंतु कोई लेखक उपलब्ध नहीं

सिर्फ़ अकेलेपन की छाया

कुर्सी से उछली।

वर्षा थी, यों अपने घर से धूप नहीं निकली।

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रचनाएँ
डॉ. कुँवर बेचैन जी की प्रसिद्ध कविताएँ
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डॉ. कुँअर बेचैन निस्संदेह वर्तमान दौर के सर्वश्रेष्ठ कवि और शायरों में से एक हैं. प्रेम और संवेदना के बारीक धागों से बुनी गई उनकी रचनायें किसी का भी मन मोह सकतीं हैं. काव्य-पाठ की उनकी शैली भी उन्हें लोकप्रिय बनाने में अत्यंत महत्वपूर्ण रही है. दोनों ही बातें हैं जो इसे संग्रहणीय बना देतीं हैं. साहित्य शिल्पी परिवार में डॉ. कुँअर बेचैन जी का हार्दिक स्वागत और इस सुंदर रचना के लिये बधाई! सुप्रसिद्ध कवि डॉ० कुँअर बेचैन जी से उनके घर पर मुलाकात की और उनका साक्षात्कार लेने के दौरान उन्हें साहित्य शिल्पी से परिचित कराया। इस का विवरण हम अपनी पूर्वप्रकाशित रिपोर्ट में दे चुके हैं। मुलाकात के दौरान उस समय हमारे हर्ष का पारावार न रहा जब वे हमारे कार्य को देखते हुये हमें अपना रचनात्मक सहयोग देने को भी तैयार हो गये। इस सिलसिले की शुरुआत करने के लिये हमने उनकी ही आवाज़ में एक गीत रिकार्ड किया जिसे हम आज आपको सुनवाने या यूँ कहें कि दिखाने जा रहे हैं। हमें विश्वास है कि आज नववर्ष पर हमारे नये शिल्पी और सम्माननीय कवि श्री कुँअर बेचैन जी का ये गीत आपको एक सुखद प्रेमानुभूति से सराबोर कर देगा।
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पिन बहुत सारे

19 अगस्त 2022
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जिंदगी का अर्थ मरना हो गया है और जीने के लिये हैं दिन बहुत सारे । इस समय की मेज़ पर रक्खी हुई जिंदगी है 'पिन-कुशन' जैसी दोस्ती का अर्थ चुभना हो गया है और चुभने के लिए हैं पिन बहुत सारे।

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ज़िंदगी यूँ भी जली, यूँ भी जली मीलों तक

19 अगस्त 2022
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ज़िंदगी यूँ भी जली, यूँ भी जली मीलों तक चाँदनी चार क‍़दम, धूप चली मीलों तक प्यार का गाँव अजब गाँव है जिसमें अक्सर ख़त्म होती ही नहीं दुख की गली मीलों तक प्यार में कैसी थकन कहके ये घर से निकली

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दिन दिवंगत हुए (कविता)

19 अगस्त 2022
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रोज़ आँसू बहे रोज़ आहत हुए रात घायल हुई, दिन दिवंगत हुए हम जिन्हें हर घड़ी याद करते रहे रिक्त मन में नई प्यास भरते रहे रोज़ जिनके हृदय में उतरते रहे वे सभी दिन चिता की लपट पर रखे रोज़ जलते हुए आ

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गीत के जितने कफ़न हैं

19 अगस्त 2022
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जिंदगी की लाश ढकने के लिए गीत के जितने कफ़न हैं हैं बहुत छोटे । रात की प्रतिमा सुधाकर ने छुई पीर यह फिर से सितारों सी हुई आँख का आकाश ढकने के लिए प्रीत के जितने सपन हैं हैं बहुत छोटे। खो

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बिके अभावों के हाथों

19 अगस्त 2022
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मन बेचारा एकवचन लेकिन दर्द हजार गुने । चाँदी की चम्मच लेकर जन्में नहीं हमारे दिन अँधियारी रातों के घर रह आए भावुक पल-छिन चंदा से सौ बातें कीं सूरज ने जब घातें कीं किंतु एक नक्कारगेह में तूती

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पथ में किरण-छुरे

19 अगस्त 2022
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नित आवारा धूप घोंपती पथ में किरण-छुरे। आज के दिन हैं बहुत बुरे । जो चाही गाली फूलों को कांटों ने बक दी पगडंडी के अधरों पर फिर गर्म रेत रख दी चारों ओर तपन के निर्मम सौ-सौ जाल पुरे। आज के द

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हर आँख द्रौपदी है

19 अगस्त 2022
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आँखों में सिर्फ़ बादल, सुनसान बिजलियाँ हैं, अंगार है अधर पर सब साँस आँधियाँ हैं रग-रग में तैरती-सी इस आग की नदी है। यह बीसवीं सदी है। इक डूबती भँवर ने सब केशगुच्छ बाँधे बारूद की दुल्हन को देकर हज

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सुरसा-सा मुँह फाड़ रही है

19 अगस्त 2022
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गलियों में चौराहों पर घर-घर में मचे तुफ़ैल-सी। बाल बिखेरे फिरती है महँगाई किसी चुड़ैल सी। सूखा पेटों के खेतों को वर्षा नयनाकाश को शीत- हडि्डयों की ठठरी को जीवन दिया विनाश को भूखी है हर साँस

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फिसल गईं स्वीकृतियां

19 अगस्त 2022
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दृष्टि हटी जब भी मन-पुस्तक के पेज से फिसल गईं स्वीकृतियाँ जीवन की मेज से। हाथों को मिली हुई लेखनी बबूल की दासी जो मेहनत के साँवरे उसूल की जितने ही प्राण रहे मेरे परहेज से। फिसल गई थीं खुशिय

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जिंदगी अपनी नहीं

19 अगस्त 2022
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दिवस खरीदे मजदूरी ने मजबूरी ने रात शाम हुई नीलाम थकन को कुंठाओं को प्रात जिंदगी अपनी नहीं रही । काली सड़कों पर पहरा है अनजाने तम का नभ में डरा डरा रहता है चंदा पूनम का नभ के उर में चुभी कील-

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और मैं लाचार पति निर्धन

19 अगस्त 2022
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काँटों में बिंधे हुए फूलों के हार-सी लेटी है प्राण-प्रिया पत्नी बीमार-सी और मैं लाचार पति, निर्धन । समय-पर्यंक आयु-चादर अति अल्पकाय, सिमटी-सी समझाती जीने का अभिप्राय, आह-वणिक करता है साँसों का

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बनेंगी साँपिन

19 अगस्त 2022
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बंद हैं मुट्ठी में चंद सुर्ख-पंक्तियाँ मुट्ठी के खुलते ही धरती पर रेंगकर-बनेंगी साँपिन। अपने ही आपमें हम इतना डूबे बदल गए अनजाने सारे मंसूबे बंद हैं मुट्ठी में थोथी आसक्तियाँ मुट्ठी के खुलते

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माँसाहारी जग-होटल में

19 अगस्त 2022
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माँसाहारी जग-होटल में शाकाहारी मन कैसे करे गुजारा? होटल जिसमें एक-दूसरे को मानव खा जाता सुरा समझकर जिसमें शोणित नर का, नर पी जाता “बैरा-झूठ”, घृणा-बावर्चिन” फेंक रहे हर दिन कोई गलत इशारा।

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जीवन उखड़ा सा नाखून

19 अगस्त 2022
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जीवन’ उखड़ा-सा नाखून समय की चोट लगी उंगली का। हर पीड़ा की फाँस लगी मन में इतनी गहरी जिसे निकाल न पाए अनगिन खुशियों के प्रहरी हर सपना निष्फल निकला ज्यों छिलका मूँगफली का। चौराहों पर बिक

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हम सब काशी के पंडे

19 अगस्त 2022
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नन्हें-नन्हें हाथों में लंबे-लंबे हथकंडे । चौड़े-चौड़े चौराहे सिमटे-सिमटे-से आँगन खोटे सिक्कों में बिकते उजले-उजले वृंदावन अपने अपने घाटों पर हम सब काशी के पंडे । प्यासे-प्यासे होठों को देकर

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प्राण लिपिक–से

19 अगस्त 2022
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दुनिया के “ऑफिस” में अब तो बैठे हैं यह प्राण लिपिक से । परित्यक्ता सी कई फाइलें अलग-अलग मेजों पर चुप हैं उनके घूंघट जैसे अंधे कोटपीस की- छिपी तुरूप हैं कई रिश्वतें “गर्ल फ्रेंड्स-सी झाँक

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मटमैले मेज़पोश

19 अगस्त 2022
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जीने का एक दिन मरने के चार। हमने लिए हैं उधार। मटमैले मेज़पोश लँगड़े ये स्टूल ग़मलों में गंधहीन काग़ज के फूल रेतीली दीवारें लोहे के द्वार। हमने लिए हैं उधार। दो गज़ की देहों को दस-इंची वस्त

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भारी-भारी तोपे हैं

19 अगस्त 2022
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ऑफिस के दरवाजों पर कौन कह रहा चपरासी? भारी-भारी तोपें हैं । कुछ कागज के नोटों से इनके मुँह खुल जाते हैं वज़न कुर्सियों के, इनकी बातों से तुल जाते हैं रिश्वतखोरी के घर से इनके बड़े “घरोपे”

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हाइकु

19 अगस्त 2022
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जल चढ़ाया तो सूर्य ने लौटाए घने बादल । तटों के पास नौकाएं तो हैं,किन्तु पाँव कहाँ हैं? ज़मीन पर बच्चों ने लिखा'घर' रहे बेघर । रहता मौन तो ऐ झरने तुझे देखता कौन? चिड़िया उड़ी किन्त

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प्यासे होंठों से

19 अगस्त 2022
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प्यासे होंठों से जब कोई झील न बोली बाबू जी हमने अपने ही आँसू से आँख भिगो ली बाबू जी भोर नहीं काला सपना था पलकों के दरवाज़े पर हमने यों ही डर के मारे आँख न खोली बाबू जी दिल के अंदर ज़ख्म बहुत ह

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लौट आ रे

19 अगस्त 2022
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लौट आ रे ! ओ प्रवासी जल ! फिर से लौट आ ! रह गया है प्रण मन में रेत, केवल रेत जलता खो गई है हर लहर की मौन लहराती तरलता कह रहा है चीख कर मरुथल फिर से लौट आ रे! लौट आ रे ! ओ प्रवासी जल ! फ

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जिस मृग पर कस्तूरी है

19 अगस्त 2022
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मिलना और बिछुड़ना दोनों जीवन की मजबूरी है। उतने ही हम पास रहेंगे, जितनी हममें दूरी है। शाखों से फूलों की बिछुड़न फूलों से पंखुड़ियों की आँखों से आँसू की बिछुड़न होंठों से बाँसुरियों की तट से

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सोख न लेना पानी

19 अगस्त 2022
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सूरज ! सोख न लेना पानी ! तड़प तड़प कर मर जाएगी मन की मीन सयानी ! सूरज, सोख न लेना पानी ! बहती नदिया सारा जीवन साँसें जल की धारा जिस पर तैर रहा नावों-सा अंधियारा उजियारा बूंद-बूंद में गूँज

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दो दिलों के दरमियाँ

19 अगस्त 2022
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दो दिलों के दरमियाँ दीवार-सा अंतर न फेंक चहचहाती बुलबुलों पर विषबुझे खंजर न फेंक हो सके तो चल किसी की आरजू के साथ-साथ मुस्कराती ज़िंदगी पर मौत का मंतर न फेंक जो धरा से कर रही है कम गगन का फासल

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वर्ना रो पड़ोगे !

19 अगस्त 2022
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बंद होंठों में छुपा लो ये हँसी के फूल वर्ना रो पड़ोगे। हैं हवा के पास अनगिन आरियाँ कटखने तूफान की तैयारियाँ कर न देना आँधियों को रोकने की भूल वर्ना रो पड़ोगे। हर नदी पर अब प्रलय के खेल

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चल हवा

19 अगस्त 2022
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चल हवा, उस ओर मेरे साथ चल चल वहाँ तक जिस जगह मेरी प्रिया गा रही होगी नई ताजा गजल चल हवा, उस ओर मेरे साथ चल। चल जहाँ मेरा अमर विश्वास है आत्माओं में मिलन की प्यास है आज तक का तो यही इतिहास है

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दो चार बार हम जो कभी

19 अगस्त 2022
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दो चार बार हम जो कभी हँस-हँसा लिए सारे जहाँ ने हाथ में पत्थर उठा लिए रहते हमारे पास तो ये टूटते जरूर अच्छा किया जो आपने सपने चुरा लिए चाहा था एक फूल ने तड़पे उसी के पास हमने खुशी के पाँवों मे

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उँगलियाँ थाम के खुद

19 अगस्त 2022
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उँगलियाँ थाम के खुद चलना सिखाया था जिसे राह में छोड़ गया राह पे लाया था जिसे उसने पोंछे ही नहीं अश्क मेरी आँखों से मैंने खुद रोके बहुत देर हँसाया था जिसे बस उसी दिन से खफा है वो मेरा इक चेहरा

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शाख़ पर एक फूल भी है

19 अगस्त 2022
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है समय प्रतिकूल माना पर समय अनुकूल भी है। शाख पर इक फूल भी है॥     घन तिमिर में इक दिये की टिमटिमाहट भी बहुत है एक सूने द्वार पर बेजान आहट भी बहुत है     लाख भंवरें हों नदी में पर कहीं पर कू

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बेटियाँ

19 अगस्त 2022
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बेटियाँ शीतल हवाएँ हैं जो पिता के घर बहुत दिन तक नहीं रहतीं ये तरल जल की परातें हैं लाज़ की उज़ली कनातें हैं है पिता का घर हृदय-जैसा ये हृदय की स्वच्छ बातें हैं बेटियाँ पवन-ऋचाएँ हैं बात जो

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ज़िन्दगी यूँ ही चली

19 अगस्त 2022
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ज़िन्दगी यूँ ही चली यूँ ही चली मीलो तक चन्दनी चार कदम, धूप चली मीलों तक प्यार का दाँव अजब दाँव है जिसमे अक्सर कत्ल होती ही नहीं दुख की गली मीलों तक घर से निकला तो चली साथ मे बिटिया भी हँसी खु

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कोई रस्ता है न मंज़िल

19 अगस्त 2022
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कोई रस्ता है न मंज़िल न तो घर है कोई आप कहिएगा सफ़र ये भी सफ़र है कोई 'पास-बुक' पर तो नज़र है कि कहाँ रक्खी है प्यार के ख़त का पता है न ख़बर है कोई ठोकरें दे के तुझे उसने तो समझाया बहुत एक ठो

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ढूँढे़ नया मकान

19 अगस्त 2022
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अधर-अधर को ढूँढ रही है ये भोली मुस्कान जैसे कोई महानगर में ढूँढे नया मकान नयन-गेह से निकले आँसू ऐसे डरे-डरे भीड़ भरा चौराहा जैसे कोई पार करे मन है एक, हजारों जिसमें बैठे हैं तूफान जैसे एक

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मध्मवर्गीय पत्नी से

19 अगस्त 2022
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कल समय की व्यस्तताओं से निकालूँगा समय कुछ फिर भरुँगा खुद तुम्हारी माँग में सिन्दूर मुझको माफ़ करना आज तो इस वक्त काफी देर ऑफिस को हुई है हाँ जरा सुनना वो मेरी पेंट है न वो फटी है जो अकेले पाँयचों

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अगर हम अपने दिल को

19 अगस्त 2022
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अगर हम अपने दिल को अपना इक चाकर बना लेते तो अपनी ज़िदंगी को और भी बेहतर बना लेते ये काग़ज़ पर बनी चिड़िया भले ही उड़ नहीं पाती मगर तुम कुछ तो उसके बाज़ुओं में पर बना लेते अलग रहते हुए भी सबसे

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सबकी बात न माना कर

19 अगस्त 2022
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सबकी बात न माना कर खुद को भी पहचाना कर दुनिया से लड़ना है तो अपनी ओर निशाना कर या तो मुझसे आकर मिल या मुझको दीवाना कर बारिश में औरों पर भी अपनी छतरी ताना कर बाहर दिल की बात न ला दिल क

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आदमी

19 अगस्त 2022
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तन-मन-प्रान, मिटे सबके गुमान एक जलते मकान के समान हुआ आदमी छिन गये बान, गिरी हाथ से कमान एक टूटती कृपान का बयान हुआ आदमी भोर में थकान, फिर शोर में थकान पोर-पोर में थकान पे थकान हुआ आदमी दि

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ज़िन्दगी

19 अगस्त 2022
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दुख ने तो सीख लिया आगे-आगे बढ़ना ही और सुख सीख रहे पीछे-पीछे हटना सपनों ने सीख लिया टूटने का ढंग और सीख लिया आँसुओं ने आँखों में सिमटना पलकों ने पल-पल चुभने की बात सीखी बार-बार सीख लिया नींद ने उ

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तू फूल की रस्सी न बुन

19 अगस्त 2022
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आवाज़ को / आवाज़ दे ये मौन-व्रत /अच्छा नहीं। जलते हैं घर जलते नगर जलने लगे / चिड़यों के पर, तू ख्वाब में डूबा रहा तेरी नज़र / थी बेख़बर। आँख़ों के ख़त / पर नींद का यह दस्तख़त / अच्छा नहीं

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तुम्हारे हाथ से टंक कर

19 अगस्त 2022
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तुम्हारे हाथ से टंक कर बने हीरे, बने मोती बटन मेरी कमीज़ों के । नयन का जागरण देतीं, नहाई देह की छुअनें कभी भीगी हुई अलकें कभी ये चुंबनों के फूल केसर गंध सी पलकें, सवेरे ही सपन झूले बने ये स

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जिसे बनाया वृद्ध पिता के श्रमजल ने

19 अगस्त 2022
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जिसे बनाया वृद्ध पिता के श्रमजल ने दादी की हँसुली ने, माँ की पायल ने उस सच्चे घर की कच्ची दीवारों पर मेरी टाई टँगने से कतराती है। माँ को और पिता को यह कच्चा घर भी एक बड़ी अनुभूति, मुझे केवल घटन

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रात कहाँ बीते

19 अगस्त 2022
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पेटों में अन्न नहीं भूख साहस के होठ गए सूख खेतों के कोश हुए रीते जीवन की रात कहाँ बीते? माटी के पाँव फटे तरुवर के वस्त्र छीन लिए सूखे ने फ़सलों के शस्त्र हाय भूख-डायन को आज़ कौन जीते? हड

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बीजगणित-सी शाम

19 अगस्त 2022
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अंकगणित-सी सुबह है मेरी बीजगणित-सी शाम रेखाओं में खिंची हुई है मेरी उम्र तमाम। भोर-किरण ने दिया गुणनफल दुख का, सुख का भाग जोड़ दिए आहों में आँसू घटा प्रीत का फाग प्रश्नचिह्न ही मिले सदा से

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दिन से लंबा ख़ालीपन

19 अगस्त 2022
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नींदें तो रातों से लंबी दिन से लंबा ख़ालीपन अब क्या होगा मेरे मन? मन की मीन नयन की नौका जब भी चाहे बीती-अनबीती बातों में डूबे-उतराए निष्ठुर तट ने तोड़ दिए हैं बर्तुल लहरों के कंगन। अब

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अँधेरी खाइयों के बीच

19 अगस्त 2022
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दुखों की स्याहियों के बीच अपनी ज़िंदगी ऐसी कि जैसे सोख़्ता हो। जनम से मृत्यु तक की यह सड़क लंबी भरी है धूल से ही यहाँ हर साँस की दुलहिन बिंधी है शूल से ही अँधेरी खाइयों के बीच अपनी ज़िंदगी

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पेड़ बबूलों के

19 अगस्त 2022
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संघर्षों से बतियाने में उलझा था जब मेरा मन चला गया था आकर यौवन मुझको बिना बताए ज्यों अनपढ़ी प्रेम की पाती किसी नायिका के हाथों से आँधी में उड़ जाए। चलते रहे साँस के सँग-सँग पेड़ बबूलों के

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सुबह

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सोई खिड़कियों को जगा गई नर्स-सी हवा। देकर मधुगंधिनी दवा। रोगी दरवाज़ों की बाजू में किरणों की घोंपकर सुई सूरज-चिकित्सक ने रख दी फिर धुली हुई धूप की रुई होने से बच गई चौखट विधवा। जगा गई

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शाम

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संध्या के केशों में बँध गया 'रिबन' सूरज की लाली का। हँसुली-सा इंद्रघनुष बिंदिया-सा सूर्य मेघों की माला में ज्योतित वैदूर्य्य सतरंगे वेशों में बस गया बदन -फूलभरी डाली का। कुंडल-से झू

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गोरी धूप चढ़ी

19 अगस्त 2022
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(रात) जाते-जाते दिवस, रात की पुस्तक खोल गया। रात कि जिस पर सुबह-शाम की स्वर्णिम ज़िल्द चढ़ी गगन-ज्योतिषी ने तारों की भाषा ख़ूब पढ़ी आया तिमिर, शून्य के घट में स्याही घोल गया। (सुबह) देख भो

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वर्षा-दिनः एक आफि़स

19 अगस्त 2022
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जलती-बुझती रही दिवस के ऑफ़िस में बिज़ली। वर्षा थी, यों अपने घर से धूप नहीं निकली। सुबह-सुबह आवारा बादल गोली दाग़ गया सूरज का चपरासी डरकर घर को भाग गया गीले मेज़पोश वाली- भू-मेज़ रही इकली। व

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मैले दर्पण दोष दे

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मैले दर्पण दोष दे रहे गोरे चेहरों को बुरा समय है यार पूजते सभी अन्धेरों को चापलूस क़लमों ने ओढ़ी चादर सोने की सच्ची क़लमो के घर पर आवाज़ें रोने की पीछे से आवाज़ दे रहे गूंगे-बहरों को कोरे काग

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अंतर

19 अगस्त 2022
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मीठापन जो लाया था मैं गाँव से कुछ दिन शहर रहा अब कड़वी ककड़ी है। तब तो नंगे पाँव धूप में ठंडे थे अब जूतों में रहकर भी जल जाते हैं तब आया करती थी महक पसीने से आज इत्र भी कपड़ों को छल जाते हैं म

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रिश्तों को घर दिखलाओ

19 अगस्त 2022
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माँ की साँस पिता की खाँसी सुनते थे जो पहले, अब वे कान नहीं। छोड़ चेतना को जड़ता तक आना जीवन का पत्थर में परिवर्तित पानी मन के आँगन का- यात्रा तो है; किंतु सही अभियान नहीं। सुनते थे जो पहले,

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आँगन की अल्पना सँभालिए

19 अगस्त 2022
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दरवाज़े तोड़-तोड़ कर घुस न जाएँ आंधियाँ मकान में, आँगन की अल्पना सँभालिए । आई कब आँधियाँ यहाँ बेमौसम शीतकाल में झागदार मेघ उग रहे नर्म धूप के उबाल में छत से फिर कूदे हैं अँधियारे चन्द्रमुखी

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जिस रोज़ पछवा चली

19 अगस्त 2022
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जिस रोज़ से पछवा चली आँधी खड़ी है गाँव में उखड़े कलश, है कँपकँपी इन मंदिरों के पाँव में। जड़ से हिले बरगद कई पीपल झुके, तुलसी झरी पन्ने उड़े सद्ग्रंथ के दीपक बुझे, बाती गिरी मिट्टी हुआ म

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चेतना उपेक्षित है

19 अगस्त 2022
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कैसी विडंबना है जिस दिन ठिठुर रही थी कुहरे-भरी नदी, माँ की उदास काया। लानी थी गर्म चादर; मैं मेज़पोश लाया। कैसा नशा चढ़ा है यह आज़ टाइयों पर आँखे तरेरती हैं अपनी सुराहियों पर मन से ना बाँध प

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मन रीझ न यों

19 अगस्त 2022
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मन! अपनी कुहनी नहीं टिका उन संबंधों के शूलों पर जिनकी गलबहियों से तेरे मानवपन का दम घुटता हो। मन! जो आए और छील जाए कोमल मूरत मृदु भावों की तेरी गठरी को दे बैठे बस एक दिशा बिखरावों की मन!

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लोहे ने कब कहा

19 अगस्त 2022
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लोहे ने कब कहा कि तुम गाना छोड़ो तुम खुद ही जीवन की लय को भूल गए। वह प्रहार सहकर भी गाया करता है सधी हुई लय में, झंकारों के स्वर में तुम प्रहार को सहे बिना भी चिल्लाए किया टूटने का अभिनय द

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तुम्हारे हाथ में टँककर

19 अगस्त 2022
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तुम्हारे हाथ में टँककर बने हीरे, बने मोती बटन, मेरी कमीज़ों के। नयन को जागरण देतीं नहायी देह की छुअनें कभी भीगी हुईं अलकें कभी ये चुंबनों के फूल केसर-गंध-सी पलकें सवेरे ही सपन झूले बने ये साव

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चिट्ठी है किसी दुखी मन की

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बर्तन की यह उठका-पटकी यह बात-बात पर झल्लाना चिट्ठी है किसी दुखी मन की। यह थकी देह पर कर्मभार इसको खाँसी, उसको बुखार जितना वेतन, उतना उधार नन्हें-मुन्नों को गुस्से में हर बार, मारकार पछताना च

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शोकपत्र के ऊपर

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ऊपर-ऊपर मुस्कानें हैं भीतर-भीतर ग़म जैसे शोकपत्र के ऊपर शादी का अलबम। समय-मछेरे के हाथों का थैला है जीवन जिसमें जिंदा मछली जैसा उछल रहा है मन भीतर-भीतर कई मरण हैं ऊपर कई जनम जैसे शोकपत्

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हम सुपारी-से

19 अगस्त 2022
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दिन सरौता हम सुपारी-से। ज़िंदगी-है तश्तरी का पान काल-घर जाता हुआ मेहमान चार कंधों की सवारी-से। जन्म-अंकुर में बदलता बीज़ मृत्यु है कोई ख़रीदी चीज़ साँस वाली रेजगारी-से। बचपना-ज्यों

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सर्दियाँ (१)

19 अगस्त 2022
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छत हुई बातून वातायन मुखर हैं सर्दियाँ हैं। एक तुतला शोर सड़कें कूटता है हर गली का मौन क्रमशः टूटता है बालकों के खेल घर से बेख़बर हैं सर्दियाँ हैं। दोपहर भी श्वेत स्वेटर बुन रही है बहू बु

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सर्दियाँ (३)

19 अगस्त 2022
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मुँह में धुँआ, आँख में पानी लेकर अपनी रामकहानी बैठा है टूटी खटिया पर ओढ़े हुए लिए लिहाफ़ दिसंबर। मेरी कुटिया के सम्मुख ही ऊँचे घर में बड़ी धूप है गली हमारी बर्फ़ हुई क्यों आँगन सारा अंधकूप है?

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घर

19 अगस्त 2022
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घर कि जैसे बाँसुरी का स्वर दूर रह कर भी सुनाई दे। बंद आँखों से दिखाई दे। दो तटों के बीच जैसे जल छलछलाते हैं विरह के पल याद जैसे नववधू, प्रिय के- हाथ में कोमल कलाई दे। कक्ष, आंगन, द्वा

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माँ

19 अगस्त 2022
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माँ! तुम्हारे सज़ल आँचल ने धूप से हमको बचाया है। चाँदनी का घर बनाया है। तुम अमृत की धार प्यासों को ज्योति-रेखा सूरदासों को संधि को आशीष की कविता अस्मिता, मन के समासों को माँ! तुम्हारे तरल

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पिता

19 अगस्त 2022
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ओ पिता, तुम गीत हो घर के और अनगिन काम दफ़्तर के। छाँव में हम रह सकें यूँ ही धूप में तुम रोज़ जलते हो तुम हमें विश्वास देने को दूर, कितनी दूर चलते हो ओ पिता, तुम दीप हो घर के और सूरज-चाँद

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पत्नी

19 अगस्त 2022
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तू मेरे घर में बहनेवाली एक नदी मैं नाव जिसे रहना हर दिन बाहर के रेगिस्तानों में। नन्हीं बेसुध लहरों को तू अपने आँचल में पाल रही उनको तट तक लाने को ही तू अपना नीर उछाल रही तू हर मौसम को सहनेवाल

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पुत्र, तुम उज्ज्वल भविष्यत् फल

19 अगस्त 2022
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पुत्र। तुम उज्जवल, भविष्यत् फल। अम तुम्हारे आज हैं, लेकिन तुम हमारे आज के शुभ कल। पुत्र, तुम उज्ज्वल भविष्यत् फल। तुम हमारे मौन स्वर की भी मधुमयी, मधु छंदमय भाषा तुम हमारी हृदय-डाली के फूल क

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बंधु

19 अगस्त 2022
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बंधु। हम-तुम प्रिय महकते फूल गेह-तरु की नेह-डाली के। हम पिता की आँख के सपने और माँ की आँख के मोती प्रिय बहन के मन-निलय में भी रोशनी हम बिन नहीं होती बंधु। हम-तुम प्रिय महकते फूल एक पू

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मछली का यह कथन

19 अगस्त 2022
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'बाहर काँटे दिए जगत ने भीतर दिए विधाता ने अपना भाग्य कसकते काँटे काँटों साथ तड़पना भी।' मछली का यह कथन, कथन है अपना भी। 'जल में चल जल की प्राचीरें हैं सब अपनी भाग्य-लकीरें बाहर तनिक निकाली

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पंछियों को फिर कहाँ पर ठौर है

19 अगस्त 2022
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नीड़ के तिनके अगर चुभने लगें पंछियों को फिर कहाँ पर ठौर है। जो न होतीं पेट की मज़बूरियाँ कौन सहता सहजनों से दूरियाँ छोड़ते क्यों नैन के पागल हिरन रेत पर जलती हुई कस्तूरियाँ नैन में पलकें अ

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चीज़ें बोलती हैं।

19 अगस्त 2022
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अगर तुम एक पल भी ध्यान देकर सुन सको तो, तुम्हें मालूम यह होगा कि चीजें बोलती हैं। तुम्हारे कक्ष की तस्वीर तुमसे कह रही है बहुत दिन हो गए तुमने मुझे देखा नहीं है तुम्हारे द्वार पर यूँ ही पड़े

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करो हमको न शर्मिंदा

19 अगस्त 2022
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करो हमको न शर्मिंदा बढ़ो आगे कहीं बाबा हमारे पास आँसू के सिवा कुछ भी नहीं बाबा कटोरा ही नहीं है हाथ में बस इतना अंतर है मगर बैठे जहाँ हो तुम खड़े हम भी वहीं बाबा तुम्हारी ही तरह हम भी रहे हैं

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बंद होंठों में छुपा लो

19 अगस्त 2022
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बंद होंठों में छुपा लो ये हँसी के फूल वर्ना रो पड़ोगे। हैं हवा के पास अनगिन आरियाँ कटखने तूफान की तैयारियाँ कर न देना आँधियों को रोकने की भूल वर्ना रो पड़ोगे। हर नदी पर अब प्रलय के खेल

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अधर-अधर को ढूँढ रही है

19 अगस्त 2022
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अधर-अधर को ढूँढ रही है,ये भोली मुस्कान जैसे कोई महानगर में ढूँढे नया मकान नयन-गेह से निकले आँसू ऐसे डरे-डरे भीड़ भरा चौराहा जैसे, कोई पार करे मन है एक, हजारों जिसमें बैठे हैं तूफान जैसे एक कक्ष

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क्षितिज की अलगनी पर

19 अगस्त 2022
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सुबह सुबह सूरज के पास बैठी है जिंदगी उदास जाने क्यों? जीवन के सागर में तैर रहे मछली-से दिन मछुए की बंसी के काँटे-सा अनजानी संध्या का छिन अंबर के कागज के पास बैठी हैं स्याहियाँ उदास जाने क्

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ओ वासंती पवन हमारे घर आना

19 अगस्त 2022
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बहुत दिनों के बाद खिड़कियाँ खोली हैं ओ वासंती पवन हमारे घर आना! जड़े हुए थे ताले सारे कमरों में धूल भरे थे आले सारे कमरों में उलझन और तनावों के रेशों वाले पुरे हुए थे जले सारे कमरों में बहुत द

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और बात है

19 अगस्त 2022
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पूरी धरा भी साथ दे तो और बात है पर तू ज़रा भी साथ दे तो और बात है चलने को एक पाँव से भी चल रहे हैं लोग पर दूसरा भी साथ दे तो और बात है

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भरी हुई है प्रीत से

19 अगस्त 2022
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भरी हुई है प्रीत से सभी के मन की झोलियाँ भले ही अपने सामने नए-नए सवाल हों मगर हर सवाल का जवाब हम जवाब तुम भले ही हम में तुम में कुछ रूप-रंग में भेद हो है खुशबुओं में फ़र्क क्या गुलाब हम गुलाब

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उतनी दूर पिया तू मेरे गाँव से

19 अगस्त 2022
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जितनी दूर नयन से सपना जितनी दूर अधर से हँसना बिछुए जितनी दूर कुँआरे पाँव से उतनी दूर पिया तू मेरे गाँव से हर पुरवा का झोंका तेरा घुँघरू हर बादल की रिमझिम तेरी भावना हर सावन की बूंद तुम्हारी ही

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चल ततइया !

19 अगस्त 2022
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चल ततइया ! काट तन मोटी व्यवस्था का जो धकेले जा रही है देश का पइया ! चल ततइया ! छोड़ मीठा गुड़ तू वहाँ तक उड़ है जहाँ पर क़ैद पेटों में रुपइया ! चल ततइया !! डंक कर पैना चल बढ़ा सेना

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कुछ काले कोट

19 अगस्त 2022
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कुछ काले कोट कचहरी के। ये उतरें रोज अखाड़े में सिर से भी ऊँचे भाड़े में पूरे हैं नंगे झाड़े में ये कंठ लंगोट कचहरी के। बैठे रहते मौनी साधे गद्दी पै कानूनी पाधे पूरे में से उनके आधे- है

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गुलाब हम,गुलाब तुम

19 अगस्त 2022
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भले हीं हममे, तुममे कुछ ये रूप रंग का भेद हो है खुशबुओं में फर्क क्या, गुलाब हम, गुलाब तुम भले ही शब्द हो अलग, अलग-अलग हों पंक्तियाँ अलग-अलग क्रियाएँ हों,अलग-अलग विभक्तियाँ मगर हृदय से पूछिए, त

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दोनों ही पक्ष आए हैं

19 अगस्त 2022
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दोनों ही पक्ष आए हैं तैयारियों के साथ हम गर्दनों के साथ हैं वो आरियों के साथ बोया न कुछ भी, फ़सल मगर ढूँढते हैं लोग कैसा मज़ाक चल रहा है क्यारियों के साथ कोई बताए किस तरह उसको चुराऊँ में पानी

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अंतर

19 अगस्त 2022
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मीठापन जो लाया था मैं गाँव से कुछ दिन शहर रहा अब कड़वी ककड़ी है। तब तो नंगे पाँव धूप में ठंडे थे अब जूतों में रहकर भी जल जाते हैं तब आया करती थी महक पसीने से आज इत्र भी कपड़ों को छल जाते हैं म

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अंतर

19 अगस्त 2022
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मीठापन जो लाया था मैं गाँव से कुछ दिन शहर रहा अब कड़वी ककड़ी है। तब तो नंगे पाँव धूप में ठंडे थे अब जूतों में रहकर भी जल जाते हैं तब आया करती थी महक पसीने से आज इत्र भी कपड़ों को छल जाते हैं म

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समय की सीढ़ियाँ चढ़ते हुए

19 अगस्त 2022
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समय की सीढ़ियाँ चढ़ते हुएजो साल आया है । खुशी का हाथ में लेकर नया रूमाल आया है। इसी रूमाल में रक्खा हुआ इक प्यार का खत है इसी खत में नई शुभकामनाओं की इबारत है हृदय के गेह में इक नेह-दीपक बाल आया

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चढ़ो अटारी धीरे धीरे

19 अगस्त 2022
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चढ़ो अटारी धीरे-धीरे रखना दीप संभालकर एक शिकन भी रह ना जाये उजियारे के गाल पर। पहन घाघरा, चूड़ी, बिछुए छन-छन घुँघरू पाँव के करके झिलमिल दीप प्रकाशित अपन तन के गाँव के चढ़ो अटारी धीरे-धीरे रखन

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ओढ़े हुए लिहाफ़ दिसम्बर

19 अगस्त 2022
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ओढ़े हुए लिहाफ़ दिसम्बर मुँह में धुआँ आँख में पानी लेकर अपनी राम कहानी बैठा है टूटी खटिया पर ओढ़े हुए लिहाफ़ दिसम्बर । मेरी कुटिया के सम्मुख ही ऊँचे घर में बड़ी धूप है गली हमारी वर्फ़ हुई क्यो

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नदी बोली समन्दर से

19 अगस्त 2022
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नदी बोली समन्दर से, मैं तेरे पास आई हूँ। मुझे भी गा मेरे शायर, मैं तेरी ही-ही रुबाई हूँ॥ मुझे ऊँचाइयों का वह अकेलापन नहीं भाया; लहर होते हुये भी तो मेरा मन न लहराया; मुझे बाँधे रही ठंडे बरफ की र

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