जीने का एक दिन
मरने के चार।
हमने लिए हैं उधार।
मटमैले मेज़पोश
लँगड़े ये स्टूल
ग़मलों में
गंधहीन काग़ज के फूल
रेतीली दीवारें
लोहे के द्वार।
हमने लिए हैं उधार।
दो गज़ की देहों को
दस-इंची वस्त्र
इस्पाती दुश्मन को
लकड़ी के शस्त्र
झुकी हुई पीठों पर
पर्वत के भार।
हमने लिए हैं उधार।
घाव-भरे पाँवों को
पथरीले पंथ
अनपढ़ की आँखों को
एम.ए. के ग्रंथ
फूलों-से हृदयों को
कांटों के हार।
हमने लिए हैं उधार।