*ईश्वर ने सृष्टि की सुंदर रचना की, जीवों को उत्पन्न किया | फिर नर-नारी का जोड़ा बनाकर सृष्टि को मैथुनी सृष्टि में परिवर्तित किया | सदैव से पुरुष के कंधे से कंधा मिलाकर चलने वाली नारी समय समय पर उपेक्षा का शिकार होती रही है | और इस समाज को पुरुषप्रधान समाज की संज्ञा दी जाती रही है | जबकि यह न तो सत्य
*इस धरती पर मनुष्य का प्रसन्न होना एक मानसिक दशा है | प्रसन्नता प्राप्त करने के लिए धन - ऐश्वर्य का होना आवश्यक नहीं है | प्राय: देखा जाता है कि मध्यमवर्गीय लोग धनी लोगों से कहीं अधिक प्रसन्न रहते हैं , अपने परिवार व मित्रों के बीच उनके खुशी के ठहाके सुने जा सकते हैं | प्रसन्न रहने का रहस्य यही है क
*मानव जीवन में गुरु का कितना महत्त्व है यह आज किसी से छुपा नहीं है | सनातन काल से गुरुसत्ता ने शिष्यों का परिमार्जन करके उन्हें उच्चकोटि का विद्वान बनाया है | शिष्यों ने भी गुरु परम्परा का निर्वाह करते हुए धर्मध्वजा फहराने का कार्य किया है | इतिहास में अनेकों कथायें मिलती हैं जहाँ परिवार / समाज से उ
*इस संसार में समाज के प्रमुख स्तम्भ स्त्री और पुरुष हैं | स्त्री और पुरुष का प्रथम सम्बंध पति और पत्नी का है, इनके आपसी संसर्ग से सन्तानोत्पत्ति होती है और परिवार बनता है | कई परिवार को मिलाकर समाज और उस समाज का एक मुखिया होता था जिसके कुशल नेतृत्व में वह समाज विकास करता जाता था | इस विकास
*इस संसार में समाज के प्रमुख स्तम्भ स्त्री और पुरुष हैं | स्त्री और पुरुष का प्रथम सम्बंध पति और पत्नी का है, इनके आपसी संसर्ग से सन्तानोत्पत्ति होती है और परिवार बनता है | कई परिवार को मिलाकर समाज और उस समाज का एक मुखिया होता था जिसके कुशल नेतृत्व में वह समाज विकास करता जाता था | इस विकास के
*सनातन धर्म में त्यौहारों की कमी नहीं है | नित्य नये त्यौहार यहाँ सामाजिक एवं धार्मिक समसरता बिखेरते रहते हैं | ज्यादातर व्रत स्त्रियों के द्वारा ही किये जाते हैं | कभी भाई के लिए , कभी पति के लिए तो कभी पुत्रों के लिए | इसी क्रम में आज भाद्रपद कृष्णपक्ष की षष्ठी (छठ) को भगवान श्री कृष्णचन्द्र जी के
*संसार में मनुष्य एक अलौकिक प्राणी है | मनुष्य ने वैसे तो आदिकाल से लेकर वर्तमान तक अनेकों प्रकार के अस्त्र - शस्त्रों का आविष्कार करके अपने कार्य सम्पन्न किये हैं | परंतु मनुष्य का सबसे बड़ा अस्त्र होता है उसका विवेक एवं बुद्धि | इस अस्त्र के होने पर मनुष्य कभी परास्त नहीं हो सकता परंतु आवश्यकता हो
*सनातन वैदिक धर्म ने मानव मात्र को सुचारु रूप से जीवन जीने के लिए कुछ नियम बनाये थे | यह अलग बात है कि समय के साथ आज अनेक धर्म - सम्प्रदायों का प्रचलन हो गया है , और सनातन धर्म मात्र हिन्दू धर्म को कहा जाने लगा है | सनातन धर्म जीवन के प्रत्येक मोड़ पर मनुष्यों के दिव्य संस्कारों के साथ मिलता है | जी
*इस धराधाम पर भगवान के अनेकों अवतार हुए हैं , इन अवतारों में मुख्य एवं प्रचलित श्री राम एवं श्री कृष्णावतार माना जाता है | भगवान श्री कृष्ण सोलह कलाओं से युक्त पूर्णावतार लेकर इस धराधाम पर अवतीर्ण होकर अनेकों लीलायें करते हुए भी योगेश्वर कहलाये | भगवान श्री कृष्ण के पूर्णावतार का रहस्य समझने का प्रय
*यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवतिभारत ! अभियुत्थानं अधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ! परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् ! धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे - युगे !! भगवान श्री कृष्ण एक अद्भुत , अलौकिक दिव्य जीवन चरित्र | जो सभी अवतारों में एक ऐसे अवतार थे जिन्होंने यह घोषणा की कि मैं परमात्मा हूँ
*संसार में मनुष्य ने अपने दिव्य गुणों के कारण सदैव लोगों के हृदयों में राज करता आया है | मनुष्य के इन्हीं दिव्य गुणोंं में एक दिव्य गुण है , जिसे परोपकार कहा जाता है | परोपकार एक महान दैवीय आध्यात्मिक गुण है | यह कुछ और नहीं वरन् देवत्व की अभिव्यक्ति है | साथ ही यह करुणा , प्रेम , पवित्रता एवं संवेद
*इस सृष्टि में चौरासी लाख योनियां बताई गयी हैं जिनमें सबका सिरमौर बनी मानवयोनि | वैसे तो मनुष्य का जन्म ही एक जिज्ञासा है इसके अतिरिक्त मनुष्य का जन्म जीवनचक्र से मुक्ति पाने का उपाय जानने के लिए होता अर्थात यह कहा जा सकता है कि मनुष्य का जन्म जिज्ञासा शांत करने के लिए होता है , परंतु मनुष्य जिज्ञास
*सनातन संस्कृति इतनी मनोहारी है कि समय समय पर आपसी प्रेम सौहार्द्र को बढाने वाले त्यौहार ही इसकी विशिष्टता रही है | शायद ही कोई ऐसा महीना हो जिसमें कि कोई त्यौहार न हो , इन त्यौहारों के माध्यम से समाज , देश एवं परिवार के बिछड़े तथा अपनों से दूर रह रहे कुटुंबियों को एक दूसरे से मिलने का अवसर मिलता है
*राखी के बंधन का जीवन में बहुत महत्त्व है | राखी बाँधने का अर्थ क्या हुआ इस पर भी विचार कर लिया जाय कि राखी का अर्थ है रक्षण करने वाला | तो आखिर यह रक्षा कि जिम्मेदारी है किसके ऊपर /? अनेक प्रबुद्धजनों से वार्ता का सार एवं पुराणों एवं वैदिक अनुष्ठानों से अब तक प्राप्त ज्ञान के आधार पर यही कह सकते है
*मानव शरीर को गोस्वामी तुलसीदास जी ने साधना का धाम बताते हुए लिखा है :--- "साधन धाम मोक्ष कर द्वारा ! पाइ न जेहि परलोक संवारा !! अर्थात :- चौरासी लाख योनियों में मानव योनि ही एकमात्र ऐसी योनि है जिसे पाकर जीव लोक - परलोक दोनों ही सुधार सकता है | यहाँ तुलसी बाबा ने जो साधन लिखा है वह साधन आखिर क्या ह
*हमारा देश भारत विविधताओं का देश है , इसकी पहचान है इसके त्यौहार | कुछ राष्ट्रीय त्यौहार हैं तो कुछ धार्मिक त्यौहार | इनके अतिरिक्त कुछ आंचलिक त्यौहार भी कुछ क्षेत्र विशेष में मनाये जाते हैं | त्यौहार चाहे राष्ट्रीय हों , धार्मिक हों या फिर आंचलिक इन सभी त्यौहारों की एक विशेषता है कि ये सभी त्यौहार
*मानव शरीर को गोस्वामी तुलसीदास जी ने साधना का धाम बताते हुए लिखा है :--- "साधन धाम मोक्ष कर द्वारा ! पाइ न जेहि परलोक संवारा !! अर्थात :- चौरासी लाख योनियों में मानव योनि ही एकमात्र ऐसी योनि है जिसे पाकर जीव लोक - परलोक दोनों ही सुधार सकता है | यहाँ तुलसी बाबा ने जो साधन लिखा है वह साधन आखिर क्या ह
*हमारी भारतीय संस्कृति सदैव से ग्राह्य रही है | हमारे यहाँ आदिकाल से ही प्रणाम एवं अभिवादन की परम्परा का वर्णन हमारे शास्त्रों में सर्वत्र मिलता है | कोई भी मनुष्य जब प्रणाम के भाव से अपने बड़ों के समक्ष जाता है तो वह प्रणीत हो जाता है | प्रणीत का अर्थ है :- विनीत होना , नम्र होना या किसी वरिष्ठ के
*इस संसार में मनुष्य को शक्तिशाली बनाने के अनेक साधन हैं परन्तु मुख्यरूप से मनुष्य को तीन प्रकार की शक्तियों के माध्यम से शक्तिशाली माना जाता है ! वह शक्तियां है मानसिक , शारीरिक एवं आध्यात्मिक | इन तीनों में भी सर्वश्रेष्ठ है मानसिक शक्ति | प्रत्येक मनुष्य के तन के साथ - साथ मन का भी स्वस्थ होना पर
*धरती पर मनुष्य के विकास में मनुष्य का मनुष्य के प्रति प्रेम प्रमुख था | तब मनुष्य एक ही धर्म जानता था :- "मानव धर्म" | एक दूसरे के सुख - दुख समाज के सभी लोग सहभागिता करते थे | किसी गाँव या कबीले में यदि किसी एक व्यक्ति के यहाँ कोई उत्सव होता था तो वह पूरे गाँ का उत्सव बन जाता था , और यदि किसी के यह