*इस सृष्टि में चौरासी लाख योनियां बताई गयी हैं जिनमें सबका सिरमौर बनी मानवयोनि | वैसे तो मनुष्य का जन्म ही एक जिज्ञासा है इसके अतिरिक्त मनुष्य का जन्म जीवनचक्र से मुक्ति पाने का उपाय जानने के लिए होता अर्थात यह कहा जा सकता है कि मनुष्य का जन्म जिज्ञासा शांत करने के लिए होता है , परंतु मनुष्य जिज्ञासु ही बना रहता है | मनुष्य को जिज्ञासु होना भी चाहिए क्योंकि यही जिज्ञासा मनुष्य के बौद्धिक , पौराणिक , आध्यात्मिक एवं सामाजिक विकास का आधार है | जिज्ञासु वही होगा जो कुछ नया जानने के लिए उत्सुक होगा | मनुष्य में जिज्ञासा का भाव ही इसे अन्य जीवधारियों से अलग करता है | प्रत्येक मनुष्य में अपने जीवन व
धर्म के प्रति जिज्ञासा होनी ही चाहिए और होती भी है | जिज्ञासा मनुष्य में ही होती है यदि इसके प्रमाण पर दृष्टि दौड़ाई जाय तो यह देखने को मिलता है कि चाहे वह अध्यात्म का क्षेत्र हो , धर्म का क्षेत्र हो या सामाजिकता का , प्रत्येक क्षेत्र में आवश्यकता होती है
ज्ञान के विस्तार की , और ज्ञान का विस्तार होता है जिज्ञासा की भावना से | विचार कीजिए कि गुरु अपने शिष्य को बहुत सारा ज्ञान देना चाहता हो ओर शिष्य के भीतर कोई जिज्ञासा ही न हो तो गुरु ज्ञान देगा किसको ?? और जब शिष्य के मन में कोई जिज्ञासा नहीं हुई तो उसको नवीन ज्ञान नहीं प्राप्त हुआ और उसका विकास वहीं पर ठप हो जाता है | जिज्ञासा का भाव होने से ही व्यक्ति में मैं कौन हूं, मेरे जीवन का उद्देश्य क्या है ? मुझे कौन सा कर्म करना है ? आदि अनेक प्रश्न उसके सामने खड़े होते हैं |* *आज जिज्ञासु का अर्थ बदल गया है | जिज्ञासायें भी आधुनिक युग की तरह आधुनिक हो गयी हैं | आज मनुष्य यह नहीं जानना चाहता कि मैं कौन हूँ ? मुझे मानव दीवन क्यों और कैसे मिला ? हमारे जीवन का लक्ष्य क्या है ? हमें सद्गति कैसे मिलेगी आदि जिज्ञासाओं से मनुष्य स्वयं को बहुत दूर करता चला जा रहा है | आज के परिवेश एवं मनुष्यों की मानसिकता एवं जिज्ञासाओं पर मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" कभी - कभी मन ही मन हंसता रहता हूँ कि :- वाह रे मनुष्य तू क्या था और क्या हो गया | आज अधिकतर मनुष्य की पहली जिज्ञासा अपने पड़ोसियों के प्रति होती है कि :- इसको धन कहाँ से मिला , यह सुखी क्यों और कैसे है ?? अपनी इसी जिज्ञासा में मनुष्य परेशान रहता है | कुछ लोग तो बात बात पर धर्म की बातें भी करने लगते हैं कि :- पुराणों में ऐसा लिखा है तो क्यों लिखा है ? उसका आधार क्या है ? यदि कोई मंत्र या कोई शब्दोच्चारण किया जाता है तो क्यों ?? यह जिज्ञासा तो उचित प्रतीत होती है , परंतु इसी जिज्ञासा में मनुष्य कभी कभी भ्रमित होने लगता है कि अमुक श्लोक सबसे पहले किसने बोला और इसका आधार क्या है ?? यह सब ऐसी जिज्ञासायें हैं जो तनिक परिश्रम करने पर आपको समाधान प्रस्तुत कर सकती हैं | परंतु आज हम स्वाध्याय से दूर होते जा रहे हैं यबी कारण है कि किसी भी जिज्ञासा पर हम निरुत्तर होकर दीन हीन हो जाते हैं | ज्ञान का विस्तार होना परम आवश्यक है | ज्ञान भी अपने कर्मों एवं कृत्यों के विषय में अधिक रखने का प्रयास करना चाहिए , शेष जिज्ञासाओं का समाधान तो स्वाध्याय से स्वत: ही हो जायेगा |* *जिस दिन हम यह जान जायेंगे कि हम कौन हैं और मानव योनि प्राप्त करने का उद्देश्य क्या है ? उस दिन के बाद कोई भी जिज्ञासा शेष नहीं रह जायेगी |*