*हमारा
देश भारत विविधताओं का देश है , इसकी पहचान है इसके त्यौहार | कुछ
राष्ट्रीय त्यौहार हैं तो कुछ धार्मिक त्यौहार | इनके अतिरिक्त कुछ आंचलिक त्यौहार भी कुछ क्षेत्र विशेष में मनाये जाते हैं | त्यौहार चाहे राष्ट्रीय हों , धार्मिक हों या फिर आंचलिक इन सभी त्यौहारों की एक विशेषता है कि ये सभी त्यौहार अपने आप में भारतीय शौर्य , संस्कृति एवं स्वर्णिम इतिहास की अमिट गाथा छुपाये हुए हैं | इन्हीं त्यौहारों में एक आंचलिक त्यौहार है "भुजरिया" |भुजरिया पर्व का मालवा, बुंदेलखंड और महाकौशल क्षेत्र में विशेष महत्व माना गया है | इसके लिए घरों में करीब एक सप्ताह पूर्व भुजरियां (अनाज के दाने - जौ , धान , गेहूँ आदि) बोई जाती हैं | इस दिन भुजरियों को कुओं, ताल-तलैयों आदि पर जाकर निकालकर सर्व प्रथम भगवान को भेंट किया जाता है | इसके बाद लोग एक दूसरे से भुजरिया बदलकर अपनी भूल-चूक भुलाकर गले मिलते हैं | जैसे कि सभी त्यौहारों का कुछ न कुछ इतिहास होता है उसी प्रकार इस पर्व का सम्बन्ध भी आल्हा - ऊदल की वीरता से जोड़ा जाता है | राजा परमार की पुत्री चन्द्रावली का अपहरण करने की योजना पृथ्वीराज चौहान ने बनाई | परंतु अपनी वीरता से आल्हा , ऊदल , मलखान , ताला सैय्यद आदि ने पृथ्वीराज को परास्त करके उसकी इच्छा को पूरी नहीं होने दिया | उस दिन वहाँ विजय पर्व मनाया गया | तब से आज तक यह आंचलिक त्यौहार बहुत ही धूमधाम के साथ क्षेत्र विशेष में मनाया जाता है | रक्षाबन्धन के दूसरे दिन इन भुजरियों (टोकरी में बोये गये दानों की फसल) को नदियों , तालाबों आदि में विसर्जित करके त्यौहार का समापन होता है |* *आज भी हमारे देश में ही अनेक ऐसे क्षेत्रीय त्यौहार हैं जिन्हें न तो हम जानते ही हैं और न ही जानने का प्रयास ही करते हैं , जबकि हमें इन त्यौंहारों की प्रासंगिकता एवं महत्व को जानने का प्रयास करते रहना चाहिए क्योंकि भारत ही एक ऐसा देश है जहाँ के प्रत्येक त्यौहार इतिहास की घटनाओं को स्वयं में समेटे हुए हैं | प्रत्येक त्यौहार की कोई न कोई कथा हमारे पौराणिक ग्रंथों या ऐतिहासिक ग्रंथों में अवश्य प्राप्त हो जायेगी | मैंने "आचार्य अर्जुन तिवारी" ने अब तक अनुभव किया है कि कोई भी त्यौहार निराधार नहीं है | बस आवश्यकता है इनके विषय में जानने की , क्योंकि ये त्यौहार हमारे देश के स्वर्णिम इतिहास को याद कराते हैं | आज आवश्यकता है कि हम भारतीय त्यौहारों एवं उनमें छुपे ऐतिहासिक प्रसंगों को आने वाली पीढी को अवगत कराते रहें परंतु इसके लिए आवश्यक है कि पहले हम स्वयं उनके विषय में जानने का प्रयास करें | क्योंकि जब हम स्वयं नहीं जानेंगे तो बच्चों को बतायेंगे क्या ?? आज यदि हमारे बच्चे अपने देश के स्वर्णिम इतिहास को नहीं जान पा रहे हैं तो उसका एक कारण यह भी है कि हमें स्वयं उन ऐतिहासिक तथ्यों का
ज्ञान नहीं हो पा रहा है | मैं मानता हूँ कि सभी क्षेत्र के त्यौहारों को जान पाना दुर्लभ है परंतु यदि मनुष्य अपने देश के इतिहास के विषय में जानने का इच्छुक हो तो कुछ भी असम्भव नहीं है |* *भारत की विविधता में एकता की मिसाल सम्पूर्ण विश्व में देखने को नहीं मिलती | हमें गर्व है कि हम भारतीय हैं |*