*संसार में मनुष्य ने अपने दिव्य गुणों के कारण सदैव लोगों के हृदयों में राज करता आया है | मनुष्य के इन्हीं दिव्य गुणोंं में एक दिव्य गुण है , जिसे परोपकार कहा जाता है | परोपकार एक महान दैवीय आध्यात्मिक गुण है | यह कुछ और नहीं वरन् देवत्व की अभिव्यक्ति है | साथ ही यह करुणा , प्रेम , पवित्रता एवं संवेदना की परम अभिव्यक्ति भी है | परोपकार का अर्थ शायद किसी को भी बताने की आवश्यकता नहीं है बल्कि सभी लोग इसके विषय में विस्तृत रूप से जानते हैं | दूसरों की (भले ही वह अन्जान ही क्यों न हो ) पीड़ा देखकर किसी पाषाण हृदय में कोई हलचल हो या न हो परंतु जिसके हृदय में करुणा , प्रेम व संवेदना भरी है उसका हृदय द्रवित हुए बिना नहीं रह पाता | वह तुरंत उस पीड़ित की सहायता करने के लिए दौड़ पड़ता है क्योंकि परोपकार पावन / निर्मल हृदय की एक अलौकिक आकुल पुकार है | सत्यता तो यह है कि यह आकुल पुकार उसी के हृदय में उठती है जिस पर ईश्वर की विशेष कृपा होती है | परोपकार की भावना मनुष्य को ईश्वर की ओर से एक विशेष वरदान है | स्वार्थ में लेन देन तो सभी करते हैं किये गये सेवाभाव के बदले में कुछ पाने का भाव रखने वालों की यहाँ कमी नहीं है | परंतु इसके विपरीत परोपकार की भावना ऐसी होती है जहाँ पाने की नहीं सिर्फ देने की बात होती है | परोपकार तो हृदय के प्रेमसिंधु में उठ रही वे लहरें हैं जो नररूपी नापायण व जीवरूपी शिव का अभिषेक करना चाहती हैं | ऐसे परोपकारी लोग सृष्टि के कण कण में , परमात्मा अर्थात अपने आराध्य को देखते हैं और इसी भाव से वे परोपकार में प्रवृत्त होते हैं |* *आज सारी सृष्टि में एक परिवर्तन की लहर चल रही है | युग बदले ,
समाज बदला , गाँव शहर में बदल गये , मनुष्यों की वेशभूषा एवं पहनावा बदल गया और यह कहना अतिशयोक्ति न होगी इन सबके साथ ही मनुष्य एवं उसके हृदय की भावनायें भी बदल गयीं | आज का मनुष्य संवेदनहीन होता चला जा रहा है | आज यदि कहीं राह चलते कोई घायल हो जाता है तो लोग सहायता करने के बजाय उसका वीडियो एवं फोटो खींचकर सोशलमीडिया पर डालने का काम करते हैं , जबकि जितनी देर वह अपने मोबाईल पर उस पीड़ित की फोटो लेता है उतनी देर यदि वह उस पीड़ित को उठने में सहायता कर दे तो शायद उसके प्राण बच जायं | मनुष्य की इसी संवेदनहीनता के कारण सहायता के अभाव में आज प्राणी एक एक बूँद पानी के लिए तरसकर प्राण गंवा रहा है | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" यह नहीं कह रहा हूँ कि समस्त संसार संवेदनहीन हो गया है , या किसी के हृदय में परोपकार की भावना ही शेष नहीं रह गयी है ! परंतु अधिकतर यही देखने में आ रहा है कि आज अधिकतर उच्चस्तरीय परोपकारी सिर्फ इसलिए परोपकार कर रहे हैं कि वे पीड़ित के साथ अपनी फोटो खिंचवाकर सोशलमीडिया पर डालकर वाहवाही लूट सकें | आज परोपकार के नाम पर अनेक जनहितार्थ संस्थाये खोलकर बैठे लोग सरकार से अच्छा धन ले रहे हैं परंतु ये कितना परोपकार कर रहे इसकी गौरवगाथा आये दिन
समाचार पत्रों में पढने को मिलती रहती हैं | कहने का तात्पर्य यह है कि आज दिखावे का परोपकार करने वालों की संख्या अधिक है | जो हृदय से पकोपकार करते हैं वे कभी अपनी प्रसिद्धि की कामना नहीं रखते |* *परोपकार एक पवित्र भावना है जो प्रत्येक मनुष्य के हृदय में होनी चाहिए ! यदि आज आपने किसी एक पर परोपकार किया है तो कल आपका परोपकार करने वाले दस लोग आपको मिल सकते हैं |*