*इस धराधाम पर भगवान के अनेकों अवतार हुए हैं , इन अवतारों में मुख्य एवं प्रचलित श्री राम एवं श्री कृष्णावतार माना जाता है | भगवान श्री कृष्ण सोलह कलाओं से युक्त पूर्णावतार लेकर इस धराधाम पर अवतीर्ण होकर अनेकों लीलायें करते हुए भी योगेश्वर कहलाये | भगवान श्री कृष्ण के पूर्णावतार का रहस्य समझने का प्रयास किया जाय | श्रीमद्भागवत में भगवान वेदव्यास जी ने भगवान श्री कृष्ण के जन्म समय का अलौकिक वर्णन करते हुए लिखा है :-- अथ सर्वगुणोपेत: काल: परमशोभन: ! यह्य्रेवाजनजन्मर्क्षं शान्तर्क्षग्रहतारकम् !! अर्थात :-- समस्त शुभ गुणों से युक्त बहुत सुहावना समय आया | रोहिणी नक्षत्र था | आकाश के सभी नक्षत्र , ग्रह और तारे शान्त - सौम्य हो रहे थे | जैसे अन्त:करण शुद्ध होने पर उसमें भगवान का आविर्भाव होता है ठीक उसी प्रकार श्री कृष्णावतार के समय काल , दिशा , पृथ्वी , जल , अग्नि , वायु , आकाश , मन और आत्मा आदि की समष्टि शुद्धि हो चुकी थी | भगवान का जन्म भाद्रपाद मास के कृष्णपक्ष में अष्टमी तिथि को रोहिणी नक्षत्र में अर्द्धरात्रि को चन्द्रवंश में हुआ था | भाद्रपद (भद्र) अर्थात कल्याण करने वाला , जो कि बारह महींनों में छठवां अर्थात मध्यमास है | कृष्णपक्ष स्वयं कृष्ण से संबंधित है | एक पक्ष में १५ तिथियाँ होती हैं और अष्टमी मध्य में है | भगवान योगेश्वर हैं तो रात्रि में आये क्योंकि रात्रि योगियों को प्रिय है , और मध्यरात्रि में इसलिए क्योंकि निशीथ को यतियों का संधिकाल कहा गया है | ऐसी अंधेरी रात्रि में जन्म लेने का अर्थ है "घोर अंधकार में दिव्य प्रकाश" का आविर्भाव |* *आज श्रीकृष्ण जन्मोत्सव के अवसर पर उनके बताये गये सिद्घांतो का अनुसरण करके जीवन को कठिनता से उबारते हुए सरल बनाया जा सकता है | सबसे पहले तो यह देख लिया जाय कि भगवान श्रीकृष्ण पूर्ण कैसे थे ? जब
धर्म की ग्लानि होती है तब धर्म की रक्षा के लिए अवतार होते हैं , और वे आतताईयों का दमन करके धर्म की पुनर्स्थापना करते हैं | पाँच तत्वो (पृथ्वी , जल , अग्नि , वायु , और आकाश) से ही सम्पूर्ण सृष्टि का अस्तित्व है | द्वापर में ऐसे समय में भगवान को अवतार लेना पड़ा जब ये पाँचों तत्व दूषित हो चुके थे | मैं आचार्य अर्जुन तिवारी" ऐसे योगयोगेश्वर भगवान श्री कृष्ण के चरणों में बारम्बार दण्डवत प्रणाम करता हूँ जिन्होंने सर्वप्रथम मिट्टी खाकर पृथ्वीतत्व को शुद्ध किया , फिर कालियमर्दन करके जलतत्व को , कालियदह के किनारे ही दावानल का पान करके अग्नितत्व को शुद्ध किया तो तृणावर्त जो कि बवंडर के स्वरूप में आया था उसका वध करके वायु तत्व को दोषमुक्त करते हुए व्योमासुर का वध करके आकाश तत्व को भी शुद्ध कर दिया | ऐसा अलौकिक कृत्य भगवान के और किसी अवतार में देखने को शायद ही मिलता हो जहाँ परमात्मा ने एक साथ पांचों तत्वों का शुद्धिकरण किया हो | भगवान की महिमा का वर्णन करने की क्षमता कम से कम मुझमें तो नहीं है | मैं तो सिर्फ इतना ही कहूँगा कि भगवान श्रीकृष्ण का जीवनदर्शन समझ पाना हम जैसे साधारण मनुष्यों के बस की बात नहीं है |* *अखिलब्रह्माण्डनायक परात्पर ब्रह्म , लीलापुरुषोत्तम , लीलाविहारी भगवान श्याम सुंदर के पावन जन्मोत्सव पर्व "जन्माष्टमी" पर आप सभी को हार्दिक बधाईयाँ |*