आधुनिक समाजआधुनिक समाजनमश्कार मैं हू आपकी चहिती समायरा ।आज कल लोगों कि पास समय का बहोत अभाव है !किसी को ऑफ़िस की जल्दी है तो किसी को अपनी मोहबत से मिलने की पर इस सब में गोर करने वाली बात यह है ।इतनी जल्दबाज़ी के बाद भी भी इचाए है की समाप्त होने का नाम नहीं लेती है।इस सब
समाज बदल रहा है, इसलिए हम बदल रहे है. समाज नहीं बदलता , बदलते हमारे ख्यालात है, जिससे बदलता समाज है. समाज में हो रहे बुराइयों को हम बदलते समाज पर दोष देकर अपना पल्ला झाड़ लेते है, जबकि ये समाज बदला है तो वो हमारे ख्यालात से बदल
*ईश्वर की अनुपम कृति है मानव | अनेक गुणों का समावेश करके ईश्वर ने मनुष्य की रचना की है | इस धराधाम पर आकर इन्हीं गुणों के माध्य से मनुष्य ने अपना नाम इतिहास पुराणों में स्वर्णाक्षरों में लिखाया है | वैसे तो मनुष्य के सभी गुणों का बखान कर पाना तो सम्भव नहीं है परंतु जो गुण मनुष्य को मनुष्य बनाये रखने
*पुण्यभूमि भारत की संस्कृति एवं संस्कार सम्पूर्ण विश्व के लिए आदर्श प्रस्तुत करते आये है | ऐसी दिव्य संस्कृति एवं महान संस्कार विश्व के किसी भी देश में देखने को नहीं मिलते | हमारे संस्कार हमें यही शिक्षा देते हैं कि मनुष्य चाहे जितना उच्च पदस्थ हो परंतु उसका भाव सदैव छोटा ही बने रहने का होना चाहिए |
*संसार में मनुष्य के लिए जितना महत्त्व परिवार व सगे - सम्बन्धियों का है उससे कहीं अधिक महत्त्व एक मित्र है | बिना मित्र बनाये न तो कोई रह पाया है और न ही रह पाना सम्भव है | मित्रता का जीवन में एक अलग ही स्थान है | मित्र बना लेना तो बहुत ही आसान है परंतु मित्रता को स्थिर रखना और जीवित रखना, सदा-सदा क
*इस धराधाम पर भाँति भाँति के मनुष्य देखने को मिलते हैं कोई जन्म से राजकुमार होता है तो कोई निर्धन | कुछ लोग इसे ईश्वर का अन्याय भी कहते हैं , जबकि यह ईश्वर का अन्याय नहीं बल्कि मनुष्य के कर्मों का फल होता है | जो जैसा कर्म करता है उसका पुनर्जन्म उसी प्रकार होता है | हमारे शास्त्र बताते हैं कि मृत्
*आज तक इस सृष्टि में अनेकानेक ऋषि - महर्षि / विद्वान हुए हैं जिनके मारिगदर्शन में यह सृष्टि गतिमान हुई | आज हमारे पास जो भी संसाधन उपलब्ध हैं इन सबका श्रेय हमारे पूर्व के विद्वानों को ही जाता है | यह उन सभी विद्वानों की विद्वता ही है जो कि हमें जीवन के प्रत्येक विषय का ज्ञान उपलब्ध कराने वाले ग्रंथ
*इस पृथ्वी पर सकल सृष्टि में मनुष्य को सर्वश्रेष्ठ माना गया है | मनुष्य का जीवन उसकी श्वांसों पर निर्भर है , जब तक श्वांस चल रही है तब तक उसे जीवित माना जाता है और श्वांस बन्द होते ही वह मृतक घोषित कर दिया जाता है | क्या श्वांसे बन्द होने पर ही मनुष्य की मृत्यु होती है ????? शायद नहीं | कुछ मनुष्य ज
*मानव जीवन इतना विचित्र है कि इसे जान पाना शायद सबके लिए सम्भव नहीं है | यहाँ अधिकतर मनुष्य सिर्फ पाना चाहते हैं , परंतु देने वाले कुछेक ही हैं | वैसे तो मनुष्य को जीवन जीने के लिए प्राकृतिक - भौतिक संसाधन जितने मिल जायं कम ही हैं , परंतु मेरा "आचार्य अर्जुन तिवारी" का मानना है कि मनुष्य जीवन में मन
*परमात्मा ने बड़े विचित्र संसार की रचना की है | इस संसार का नियम ऐसा है कि कुछ बनने के लिए , कुछ पाने के लिए स्वयं को , स्वयं के अहम को मिटाना पड़ता है | विनाश से ही सृजन होता है | नित्य मनुष्य कुछ न कुछ प्राप्त करता रहता है परंतु पुरुष से महापुरुष बनने के लिए स्वयं को मिटाना पड़ता है | स्वयं को मिट
*चौरासी लाख योनियों में मनुष्य यदि सर्वश्रेष्ठ बना है तो उसका कारण है कि प्रारम्भ से ही अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए विकास करता रहा है | मानव जीवन में मुख्य है कर्तव्यों का सकारात्मकता से पालन करना | यदि कर्तव्य पालन में अपनी भावनाओं , इच्छाओं का दमन भी करना पड़े तो नि:संकोच कर देना चाहिए , ऐसा क
*धरती पर पुण्यभूमि भारत में जन्म लेने के बाद मनुष्य ने उत्तरोत्तर - निरन्तर विकास करते हुए एक आदर्श प्रस्तुत किया है | आदिकाल से हमारी संस्कृति हमारे संस्कार ही हमारी पहचान रहे हैं | बालक के जन्म लेके के पहले से लेकर मृत्यु होने के एक वर्ष बाद तक संस्कारों की एक लम्बी श्रृंखला यहाँ रही है | इन्हीं स
*मानव जीवन इतना विचित्र है कि इसमें मनुष्य को अनेक अनुभव होते रहते हैं | मनुष्य की मन:स्थिति ऐसी होती है कि वह क्षण भर दु:खी और दूसरे क्षण सुखी हो जाता है | विचित्र बात यह है कि मनुष्य दु:खी हो जाता है तो सारा दोष दूसरों को या फिर परमात्मा को दे देता है और सुखी होने पर सारा श्रेय स्वयं ले लेता है |
*सनातन धर्म के ग्रंथ सदैव हमारे मार्गदर्शक रहे हैं | इन्हीं ग्रंथों में महाराज मनु द्वारा रचित "मनुस्मृति" में धर्म की विस्तृत व्याख्या करते हुए धर्म के दस लक्षण बताये हैं | यद्यपि ये दसों लक्षण महत्वपूर्ण है परंतु उसमें से एक विशेष लक्षण है क्षमा | क्षमा मांग लेने या क्षमा कर देने से मानव के जीवन क
*प्राचीनकाल से ही सनातन धर्म के साधु - संतों , ऋषियों - महर्षियों ने समाज के उत्थान के लिए सदैव प्रयास किया है | इस क्रम में कइयों ने तो स्वयं के प्राणों की आहुति भी दे दी | कुछ लोग समझते हैं कि घर छोड़ कर जंगल में रहने वाला ही साधप हो सकता है | किसी संत या साधु की चर्चा आते ही आँखों के आगे एक गेरुव
*मानव जीवन एक संघर्ष है | इसमें उतार चढाव लगे रहते हैं | जीवन में सफलता का मूलमंत्र है :- साहस | जिसके पास साहस है वह कभी असफल नहीं होता है | साहस के ही बल पर संसार में मनुष्य ने असम्भव को भी सम्भव कर दिखाया है | कहते हैं कि ईश्वर भी उसी की सहायता करता है जिसके पास साहस होता है | इतिहास में उन्हीं क
*मनुष्य का स्वभाव है कि जिस काम को वह एक बार कर लेता है उसी काम को वह पुन: करना चाहता है | जो विचार एक बार उसके मन में आ जाता है वही विचार वह अपने मन में बार - बार लाता रहता है | अपने अनुभवों की आवृत्ति से उसे तृप्ति मिलती है | इस प्रकार जब कोई भाव चित्त में ठहर जाता है और मनुष्य द्वारा उसे बार - ब
*मानव जीवन बहुत रंग बिरंगा है ! इस जीवन में मनुष्य तरह तरह के व्यवहार इस संसार में करता रहता है | इन्हीं में एक है छल करना या धोखा देना | मनुष्य किसी को धोखे में रखकर बहुत प्रसन्न होता रहता है | जबकि धोखा देने या छल करने वालों का क्या परिणाम होता है इसे लगभग सभी जानते हैं | मनुष्य यह सोंचकर प्रसन्न
!! भगवत्कृपा हि केवलम् !! मनुष्य इस सृष्टि का मुकुटमणि है | मनुष्य के लिए यदि अद्भुत , अलौकिक , अद्विती़य , अविस्मरणीय प्राणी कहा जाय तो ये उपमायें भी छोटी ही प्रतीत होती हैं | मनुष्य ने एक ओर जहाँ अपने श्रेष्ठ कार्यों से स्वयं को स्थापित किया है वहीं कुछ नकारात्मक कार्य मनुष्य के लिए घातक भी स
!! भगवत्कृपा हि केवलम् !! इस सृष्टि का निर्माण परमात्मा ने बहुत ही सूझ बूझ के साथ किया है | इस सम्पूर्ण सृष्टि का कण - कण परमात्मा द्वारा प्रतिपादित नियम का पालन करते हुए अपने - अपने क्रिया - कलापों को गतिमान बनाये हुए हैं | बिना नियम के सृष्टि चलायमान नहीं हो सकती है | सूर्य , चन्द्र , वायु आद