!! भगवत्कृपा हि केवलम् !! मानव जीवन में दो चीजे मनुष्य को प्रभावित करती हैं पहला स्वार्थ और दूसरा परमार्थ | जहाँ स्वार्थ का मतलब हुआ स्व + अर्थ अर्थात स्वयं का हित , वहीं परमार्थ का मतलब हुआ परम + अर्थ अर्थात परमअर्थ | परमअर्थ के विषय में हमारे मनीषी बताते हैं कि जो आत्मा के हितार्थ , आत्मा के
!! भगवत्कृपा हि के वलम् !! *यह संसार विचित्रताओं से भरा पड़ा है | यहाँ भाँति - भाँति के विचित्र जीव देखने को मिलते हैं | कुछ जीव तो ऐसे - ऐसे कभी देखने को मिल जाते हैं कि अपनी आँखों पर भी विश्वास नहीं होता | और मनुष्य विचार करने लगता है कि :- परमात्मा की सृष्टि भी अजब - गजब है | हमारे वैज्ञानि
!! भगवत्कृपा हि केवलम् !! *हमारे मनीषियों ने मनुष्य के षडरिपुओं का वर्णन किया है | जिसमें से एक अहंकार भी है | अहंकार मनुष्य के विनाश का कारण बनता देखा गया है | इतिहास गवाह है कि अहंकारी चाहे जितने विशाल साम्राज्य का अधिपति रहा हो , चाहे वह वेद - वेदान्तों में पारंगत कियों न रहा हो उसका विनाश अ
!! भगवत्कृपा हि केवलम् !! इस सृष्टि का निर्माण परमात्मा ने बहुत ही सूझ बूझ के साथ किया है | इस सम्पूर्ण सृष्टि का कण - कण परमात्मा द्वारा प्रतिपादित नियम का पालन करते हुए अपने - अपने क्रिया - कलापों को गतिमान बनाये हुए हैं | बिना नियम के सृष्टि चलायमान नहीं हो सकती है | सूर्य , चन्द्र , वायु आद
!! भगवत्कृपा हि केवलम् !! *इस सकल ब्रह्माण्ड में चौरासी लाख योनियों का वर्णन मिलता है | इन चौरासी लाख योनियों के चार प्रकार बताये गये हैं :- जरायुज, स्वेदज, अण्डज और उद्भिज | जिसमें मनुष्य शरीर एक श्रेष्ठतम् और सर्वोत्तम आकृति है | चौरासी लाख आकृतियों में मनुष्य रूप आकृति के समान अन्य कोई आकृ
!! भगवत्कृपा हि केवलम् !! *यह सकल सृष्टि ऊर्जाओं का समन्वय स्रोत है | इनहीं ऊर्जा के स्रोतों में मुख्य है ऊर्जा का स्रोत है सूर्य | सूर्य में असीम ऊर्जा है इसी ऊर्जा से संसार के सभी कार्य सम्पादित होते हैं | हम सभी नित्य ही सूर्य का साक्षात्कार करते हैं परंतु उसके क्रिया कलाप पर शायद कभी ध्यान
!! भगवत्कृपा हि केवलम् !! *इस संसार में भाँति भाँति प्रकार के मनुष्य समाज में रहते हैं जिनकी प्रवृत्तियां भी भिन्न ही होती हैं ! कुछ लोग सद्प्रवृत्तियों के होते हैं जो सदैव प्रेम , सौहार्द्र , एवं लोककल्याण में प्रयासरत होते हैं , तो कुछ दुष्प्रवृत्ति के होते हैं जो सदैव विध्वंसक , ईर्ष्या - द्
!! भगवत्कृपा हि केवलम् !! *इस संसार में जन्म लेकर प्रत्येक मनुष्य संसार में उपलब्ध सभी संसाधनों को प्राप्त करने की इच्छा मन में पाले रहता है | और जब वे संसाधन नहीं प्राप्त हो पाते तो मनुष्य को असंतोष होता है | किसी भी विषय पर असंतोष हो जाना मनुष्य के लिए घातक है | इसके विपरीत हर परिस्थिति में स
!! भगवत्कृपा हि केवलम् !!*मनुष्य के जीवन में यदि देखा जाय तो संसार में सब कुछ महत्त्वपूर्ण है ! परंतु इन सभी सबसे अति महत्तवपूर्ण शिक्षा | बिना शिक्षा प्राप्त किये मनुष्य को स्वयं , समाज एवं विशेषकर मनुष्यता का बोध नहीं हो सकता | एक शिक्षित मनुष्य ही अपने भले बुरे के बारे में सही ढंग से सोच सकता
!! भगवत्कृपा हि केवलम् !! इस समस्त संसार में किसी भी देश का भविष्य युवाओं का कहा जाता है | भारत देश में वैदिक काल से लेकर कुछ दिन पूर्व तक युवाओं ने अपने कार्यों से देश को गौरवान्वित किया है | जहाँ त्रेतायुग में युवा श्री राम ने पिता के वचन का पालन करने के लिए पहले विश्वामित्र जी के साथ वनयात्र
!! भगवत्कृपा हि केवलम् !! *इस धराधाम पर जबसे मनुष्य की सृष्टि हुई तब से लेकर आज तक मनुष्य अनवरत संघर्षशील ही रहा है | अपनी इसी संघर्षशीलता के बल पर मनुष्य ने असम्भव को भी सम्भव बनाकर दिखाया है | इस संसार में विद्यमान शायद कोई भी ऐसा संसाधन नहीं बचा है जिसका उपयोग मनुष्य ने न किया हो | हिंसक जान
!! भगवत्कृपा हि केवलम् !! इस सृष्टि में परमपिता परमात्मा ने मनुष्य को जो भी बल, बुद्धि एवं विवेक दिया है, उसके हृदय में दया, करुणा, सहृदयता, सहानुभूति अथवा संवेदना की भावनायें भरी हैं, वे इसलिये नहीं कि वह उन्हें अपने अन्दर ही बन्द रखकर व्यर्थ चला जाने दे | उसने जो भी गुण और विशेषता मनुष्यों को
!! भगवत्कृपा हि केवलम् !! इस धराधाम पर विधाता ने अद्भुत मैथुनी सृष्टि की है | नर एवं नारी का जोड़ा उत्पन्न करके दोनों को एक दूसरे का पूरक बनाया | बिना एक दूसरे के सहयोग के सृष्टि का सम्पादन नहीं हो सकता | नर एवं नारी की महत्ता को दर्शाते हुए भगवान शिव ने भी अर्द्धनारीशवर का स्वरूप धारण किया है
योग एक कला है | योग किसी खास धर्म , समुदाय, आस्था पद्धिति के मुताबिक नहीं चलता है | आमतौर पर योग को स्वास्थ्य और फिटनेस के लिए व्यायाम या थेरेपी के रूप में समझा जाता है | जो भी नियमित रूप से योगाभ्यास करता है वह इसका लाभ प्राप्त कर सकता है | उसका धर्म, जाति और संस्कृत
आज कल सोशल मीडिया लोगो की जिंदगी का अहम हिस्सा बन चुका है| इसके बहुत सारे फीचर है, जिसके द्वारा आप अपने विचार, सूचना, तस्वीरे, वीडियो आदि एक दूसरे के साथ शेयर कर सकते है| सोशल मीडिया के समाज पर सकारात्मक और नकारत्मक दोनो ही प्रभाव देखने को मिलते है| सोशल मीडिया एक विशाल न
भाषा-व्यक्तित्व का आईना डा. वेद प्रकाश भारद्वाज भाषा एक आईने की तरह होती है। हम जैसी भाषा बोलते हैं या लिखते हैं वैसा ही हमारा व्यक्तित्व होता है जो भाषा के आईने से सबके सामने आ जाता है। इस दृष्टि से यदि हम आज के युवाओं और बच्चों की भाष
भयानक साय है ,जिनके न चेहरे हैं , न नाम हैं | जला दिया लोगों को ,ज़िंदा लोगों को, या खुदा!ज़िंदा दिलों की नाज़ुक सी डोर थी, मज़हब की ज़ोर ने इसे भी तोर दिया| सब भाग रहे थे, सब चीख रहे थे, लोग दर्दनाक मारे गए मुर्दा के बीच में भी
शायरों, कवियों की कल्पना में होता था काँटों वाला बिस्तर, चंगों ने बना दिया है अब भाले-सी कीलों वाला रूह कंपाने वाला बिस्तर। अँग्रेज़ीदां लोगों ने इसे ANTI HOMELESS IRON SPIKES कहा है,ग़रीबों ने अमीरों की दुत्कार को ज़माना-दर-ज़माना सहजता से सहा है। महानगर मुम्बई में एक निजी बैंक के बाहर ख़ाली पड़े
सुदूर पर्वत परबर्फ़ पिघलेगीप्राचीनकाल से बहतीनिर्मल नदिया में बहेगीअच्छे दिन कीबाट जोहतेकिसान के लिएसौग़ात बन जायेगीप्यासे जानवरों कागला तर करेगीभोले पंछियों कीजलक्रीड़ा मेंविस्तार करेगीलू के थपेड़ों की तासीरख़ुशनुमा करेगीएक बूढ़ा प्यासा अकड़ी
सोचता हूँ गढ़ दूँ मैं भी अपनी मिट्टी की मूर्ति, ताकि होती रहे मेरे अहंकारी-सुख की क्षतिपूर्ति। मिट्टी-पानी का अनुपात अभी तय नहीं हो पाया है, कभी मिट्टी कम तो कभी पर्याप्त पानी न मिल पाया है। जिस दिन मिट्टी-पानी का अनुपात तय हो जायेगा, एक सुगढ़ निष्प्राण शरीर उभर आयेगा। कोई क़द्र-दां ख़रीदार भी होगा रखे