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समय के समर्थ अश्व

19 अप्रैल 2022

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समय के समर्थ अश्व मान लो

आज बन्धु! चार पाँव ही चलो।

छोड़ दो पहाड़ियाँ, उजाड़ियाँ

तुम उठो कि गाँव-गाँव ही चलो।।

रूप फूल का कि रंग पत्र का

बढ़ चले कि धूप-छाँव ही चलो।।

समय के समर्थ अश्व मान लो

आज बन्धु! चार पाँव ही चलो।।

वह खगोल के निराश स्वप्न-सा

तीर आज आर-पार हो गया

आँधियों भरे अ-नाथ बोल तो

आज प्यार! क्यों उदार हो गया?

इस मनुष्य का ज़रा मज़ा चखो

किन्तु यार एक दाँव ही चलो।।

समय के समर्थ अश्व मान लो

आज बन्धु ! चार पाँव ही चलो।।

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रचनाएँ
वेणु लो गूँजे धरा
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वेणु लो गूँजे धरा, माखनलाल चतुर्वेदी द्वारा लिखित कविता है. तारकों-सी नृत्य ने बारात साधी है। विश्व-शिशु करता रहा प्रण-वाद जब तुमसे। क्यों विकास करे भड़कता हैं |
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वेणु लो, गूँजे धरा

19 अप्रैल 2022
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वेणु लो, गूँजे धरा मेरे सलोने श्याम एशिया की गोपियों ने वेणि बाँधी है गूँजते हों गान,गिरते हों अमित अभिमान तारकों-सी नृत्य ने बारात साधी है। युग-धरा से दृग-धरा तक खींच मधुर लकीर उठ पड़े हैं चरण

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प्यारे भारत देश

19 अप्रैल 2022
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प्यारे भारत देश गगन-गगन तेरा यश फहरा पवन-पवन तेरा बल गहरा क्षिति-जल-नभ पर डाल हिंडोले चरण-चरण संचरण सुनहरा ओ ऋषियों के त्वेष प्यारे भारत देश।। वेदों से बलिदानों तक जो होड़ लगी प्रथम प्रभात क

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समय के समर्थ अश्व

19 अप्रैल 2022
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समय के समर्थ अश्व मान लो आज बन्धु! चार पाँव ही चलो। छोड़ दो पहाड़ियाँ, उजाड़ियाँ तुम उठो कि गाँव-गाँव ही चलो।। रूप फूल का कि रंग पत्र का बढ़ चले कि धूप-छाँव ही चलो।। समय के समर्थ अश्व मान लो

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जाड़े की साँझ

19 अप्रैल 2022
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किरनों की शाला बन्द हो गई चुप-चुप अपने घर को चल पड़ी सहस्त्रों हँस-हँस उद्दण्ड खेलतीं घुल-मिल होड़ा-होड़ी रोके रंगों वाली छबियाँ? किसका बस! ये नटखट फिर से सुबह-सुबह आवेंगी पंखनियाँ स्वागत-गीत क

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संध्या के बस दो बोल सुहाने लगते हैं

19 अप्रैल 2022
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सन्ध्या के बस दो बोल सुहाने लगते हैं सूरज की सौ-सौ बात नहीं भाती मुझको बोल-बोल में बोल उठी मन की चिड़िया नभ के ऊँचे पर उड़ जाना है भला-भला! पंखों की सर-सर कि पवन की सन-सन पर चढ़ता हो या सूरज हो

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कैसी है पहिचान तुम्हारी

19 अप्रैल 2022
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कैसी है पहिचान तुम्हारी राह भूलने पर मिलते हो ! पथरा चलीं पुतलियाँ, मैंने विविध धुनों में कितना गाया दायें-बायें, ऊपर-नीचे दूर-पास तुमको कब पाया धन्य-कुसुम ! पाषाणों पर ही तुम खिलते हो तो ख

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अंजलि के फूल गिरे जाते हैं

19 अप्रैल 2022
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अंजलि के फूल गिरे जाते हैं आये आवेश फिरे जाते हैं। चरण-ध्वनि पास-दूर कहीं नहीं साधें आराधनीय रही नहीं उठने,उठ पड़ने की बात रही साँसों से गीत बे-अनुपात रही बागों में पंखनियाँ झूल रहीं कुछ अप

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दूबों के दरबार में

19 अप्रैल 2022
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क्या आकाश उतर आया है दूबों के दरबार में? नीली भूमि हरी हो आई इस किरणों के ज्वार में ! क्या देखें तरुओं को उनके फूल लाल अंगारे हैं; बन के विजन भिखारी ने वसुधा में हाथ पसारे हैं। नक्शा उतर ग

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कल-कल स्वर में बोल उठी है

19 अप्रैल 2022
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नयी-नयी कोपलें, नयी कलियों से करती जोरा-जोरी चुप बोलना, खोलना पंखुड़ि, गंध बह उठा चोरी-चोरी। उस सुदूर झरने पर जाकर हरने के दल पानी पीते निशि की प्रेम-कहानी पीते, शशि की नव-अगवानी पीते। उस अलमस

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ये प्रकाश ने फैलाये हैं पैर, देख कर ख़ाली में

19 अप्रैल 2022
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ये प्रकाश ने फैलाये हैं पैर, देख कर ख़ाली में अन्धकार का अमित कोष भर आया फैली व्याली में ख़ाली में उनका निवास है, हँसते हैं, मुसकाता हूँ मैं ख़ाली में कितने खुलते हो, आँखें भर-भर लाता हूँ मैं इत

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दूधिया चाँदनी साँवली हो गई

19 अप्रैल 2022
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साँस के प्रश्न-चिन्हों, लिखी स्वर-कथा क्या व्यथा में घुली, बावली हो गई! तारकों से मिली, चन्द्र को चूमती दूधिया चाँदनी साँवली हो गई! खेल खेली खुली, मंजरी से मिली यों कली बेकली की छटा हो गई वृक्

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और संदेशा तुम्हारा बह उठा है

19 अप्रैल 2022
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मधुर ! बादल, और बादल, और बादल आ रहे हैं और संदेशा तुम्हारा बह उठा है, ला रहे हैं।। गरज में पुस्र्षार्थ उठता, बरस में कस्र्णा उतरती उग उठी हरीतिमा क्षण-क्षण नया श्रृङ्गर करती बूँद-बूँद मचल उठी है

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गाली में गरिमा घोल-घोल-गीत

19 अप्रैल 2022
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गाली में गरिमा घोल-घोल क्यों बढ़ा लिया यह नेह-तोल कितने मीठे, कितने प्यारे अर्पण के अनजाने विरोध कैसे नारद के भक्ति-सूत्र आ गये कुंज-वन शोध-शोध! हिल उठे झूलने भरे झोल गाली में गरिमा घोल-घोल।

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मधु-संदेशे भर-भर लाती-इस तरह ढक्कन लगाया रात ने

19 अप्रैल 2022
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इस तरह ढक्कन लगाया रात ने इस तरफ़ या उस तरफ़ कोई न झाँके। बुझ गया सूर्य बुझ गया चाँद, तरु ओट लिये गगन भागता है तारों की मोट लिये! आगे-पीछे,ऊपर-नीचे अग-जग में तुम हुए अकेले छोड़ चली पहचान, प

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ये वृक्षों में उगे परिन्दे-मूर्त्ति रहेगी भू पर

19 अप्रैल 2022
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ये वृक्षों में उगे परिन्दे पंखुड़ि-पंखुड़ि पंख लिये अग जग में अपनी सुगन्धित का दूर-पास विस्तार किये। झाँक रहे हैं नभ में किसको फिर अनगिनती पाँखों से जो न झाँक पाया संसृति-पथ कोटि-कोटि निज आँख

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जीवन, यह मौलिक महमानी

19 अप्रैल 2022
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जीवन, यह मौलिक महमानी! खट्टा, मीठा, कटुक, केसला कितने रस, कैसी गुण-खानी हर अनुभूति अतृप्ति-दान में बन जाती है आँधी-पानी कितना दे देते हो दानी।। जीवन, यह मौलिक महमानी।। जीवन की बैठक में, कित

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उठ महान

19 अप्रैल 2022
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उठ महान ! तूने अपना स्वर यों क्यों बेंच दिया? प्रज्ञा दिग्वसना, कि प्राण् का पट क्यों खेंच दिया? वे गाये, अनगाये स्वर सब वे आये, बन आये वर सब जीत-जीत कर, हार गये से प्रलय बुद्धिबल के वे घर सब

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फुंकरण कर, रे समय के साँप

19 अप्रैल 2022
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फुंकरण कर, रे समय के साँप कुंडली मत मार, अपने-आप। सूर्य की किरणों झरी सी यह मेरी सी, यह सुनहली धूल; लोग कहते हैं फुलाती है धरा के फूल! इस सुनहली दृष्टि से हर बार कर चुका-मैं झुक सकूँ-इनकार!

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कितनी मौलिक जीवन की द्युति

19 अप्रैल 2022
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नित आँख-मिचौनी खेल रहा, जग अमर तरुण है वृद्ध नहीं इच्छाएँ क्षण-कुण्ठिता नहीं, लीलाएँ क्षण-आबद्ध नहीं । सब ओर गुरुत्वाकर्षण है, यह है पृथिवी का चिर-स्वभाव उर पर ऊगे से विमल भाव, नन्हें बच्चों से अ

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