एक ऐसे इंसान की कहानी जिसने अपने मेहनत के बल पर ना सिर्फ स्वयं आगे बढ़ा बल्कि अपनी पूरी बिरादरी को एक नई राह दिखाई
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"लंगोटिया यार" जगत तुर्कीया द्वारा लिखित एक पुस्तक है। यह किताब एक छोटे से गांव में रहने वाले लड़के के दोस्तों के समूह के जीवन पर एक हास्यप्रद कहानी है। "लंगोटिया यार" (Childhood friend ) (शीर्षक खेल या शारीरिक गतिविधियों के दौरान "लंगोटी" के रूप म
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यदि जिंदगी में कोई व्यक्ति असफल रह जाता है तो वह निराशा में हमेशा घिरा रह जाता है .चारों तरफ से अंधकार के अलावा कुछ दिखाई नहीं देता .ऐसे में यदि वे असफल होता है तो ये साबित नहीं होता कि वह काबिल नहीं है
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जीवन के वे अनुभव, जो नए होने के साथ-साथ, उपयोगी भी होते हैं, उन्हीं की दस्तावेज है यह पुस्तक।
मौत के बादल घने हैं दिल के कमरे डर रहे हैं। अब शिफाखाना में भी बस, मान रुपयों को मिले हैं। मुल्क ख़तरों से घिरा है आफिसर घर में घुसे हैं। इस महामारी में भी धन लूटने में सब लगेहैं। सड़कों पर जो लोग रहते, मास्क के दम ही बचे हैं। ( डॉ संजय दानी
बंद कमरों की सदा है, अपनों से ही ये मिला है। भीड़ से रिश्ता हुआ तो मर्ज़ बढते जा रहा है। मास्क से दूरी हुई है । आंसुओं का सिलसिला है। इश्क दीयों का मुहाफ़िज़, हुस्न इक जंगली हवा है। क़त्ल मेरा कर रही वो दिल, जिसे कहता ख़ुदा है।, ( डॉ संजय दानी
हर तरफ़ ग़म का तूफ़ान है, खुशियों का दीया बेजान है। शह्र में धूप आती नहीं, सूर्य गांवों का मेहमान है। आशिक़ी के मुहल्ले में अब, बेवफ़ाओं का गुणगान है। जब से बच्चे विदेशी हुवे, बाप को ख़ौफ़े-शमशान है। मौत के बाद मिलता सुकूं, जीते जी सब परेशान हैं। ( डॉ
कोरना क्यूं घटा नहीं है जनाब , मास्क मुंह में लगा नहीं है जनाब । इस वबा से निज़ात है मुश्किल, रोग की इस दवा नहीं है जनाब । मौत का ही ये दूत है यारो, पास इसके दया नहीं है जनाब । दर्दो ग़म,भूख बेबसी-आंसू, इसके दामन में क्या नहीं है जनाब्। कितने इंस
अपने पर विश्वास ही इस ज़िन्दगी का फ़लसफ़ा है, यारों ग़ैरों के भरोसे रास्ता किसको मिला है। कश्ती मेरी जानिबे मंझधार यारो जा चुकी है, अब कहां मेरा किनारों से कोई भी वास्ता है। मैं चराग़ो को जला कर बैठा हूं सदियों से लेकिन, इक अंधेरा मेरे दिल में आज भी हाँ
( कोरोना महामारी) कोरोना की हवा भी बहुत अत्याचारी है , हर मुल्क हर नगर में सितम उसका ज़ारी है । दुनिया में आई ये बीमारी ऐसी है , बस जां की मांग करता ये यारो भिखारी है । उसके सितम से बचने का बस इक तरीका है, लोगों से दूर रहने में ही होशियारी है ।
रात्रि में जब हम सोने के लिए जाते है तब हमे इस बात की गारंटी नहीं होती की हम सुबह जीवित रहेगें या नहीं फिर भी हम घड़ी में अलार्म लगाकर सोते है इसे कहते है उम्मीद