शहर होने लगे
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नीम की छाँव तले दिया तुलसी का जले
सूर्ये भी थककर रुके स्वर्णिम साँझ ढले
पाखी का गुंजन उत्सव सा लगने लगे
ह्दय का स्पंदन वीणा कि झंकार लगे
स्वप्न सात रंगों के झिलमिल करने लगे
मुधु- कि मुस्कान से जब फूल झरने लगे
गाँव - मेरे शहर में आकर जब मिलने लगे
दूर- दूर के पाखी मेरे शहर में मिलने लगे
मेरा देश जब गाँव से शहर शहर होने लगे
खेत- खलिहान गाँव के वियावान होने लगे
आराधना राय "अरु"