प्रहार
वो बुरी शक्ल लिए मिलने आई थी
हाथों मैं कटोरा भीख का ले आई थी
रूखे -सूखे केश लिए कहने आई थी
आहात थी दुःख साथ ही ले आई थी
आँखों में आँसू भर वो जब कराही थी
दर्द कि आवाज़ नहीं सुनाने आई थी
धरती थी अपनी पीड़ा बताने आई थी
कौन सी त्रासदी उसे नहीं रास आई थी
वृक्ष , वन , नदी सब का दर्द ले आई थी
बात किसी