28 मई 2015
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1994 मेँ हिंदी अकादमी द्वारा पुरस्कृत , मेरी सहेली नामक मैगज़ीन मे कहानियाँ लिखी नाटक और कुछ रेडिओ प्रोग्रम्मेस की स्क्रिप्ट लिखने के एक़ अन्तराल बाद दुबारा से हिंदी लेखन करने का दुःसाहस कर रही हू । अखंड -भारत की में रचनाए हिंदी की गूंज में बेला में विश्वगाथा में निरंतर प्रकाशित हो रही है
,1994 मेँ हिंदी अकादमी द्वारा पुरस्कृत , मेरी सहेली नामक मैगज़ीन मे कहानियाँ लिखी नाटक और कुछ रेडिओ प्रोग्रम्मेस की स्क्रिप्ट लिखने के एक़ अन्तराल बाद दुबारा से हिंदी लेखन करने का दुःसाहस कर रही हू । अखंड -भारत की में रचनाए हिंदी की गूंज में बेला में विश्वगाथा में निरंतर प्रकाशित हो रही है
Dजाने वाले थोड़ा रुक जा ये दिन यू ही रीता सा जाता है जाने वाले थोड़ा रुक जा, ये दिन यू ही रीता सा जाता है...अति सुन्दर भावाव्यक्ति...सुन्दर रचना ! ये दिन यू ही रीता सा जाता है
28 मई 2015
अति सुन्दर गीत, जैसे - शब्दों को एक धागे में पिरोकर गीतों का रूप दे दिया गया हो |
28 मई 2015
आराधना जी, अति सुन्दर रचना...बहुत बधाई !
28 मई 2015