बन जाऊ फिर इस बार पत्थर की
जो दर्द कोई न छू पाएगी
वो वक़्त फिर वही ले आएगा
जहाँ बार बार तोड़ देती मुझे.
जाने कब ख़त्म हो ये सिलसिला
जो मेरे होठों पे मुस्कान आ जाएगी
3 अप्रैल 2018
बन जाऊ फिर इस बार पत्थर की
जो दर्द कोई न छू पाएगी
वो वक़्त फिर वही ले आएगा
जहाँ बार बार तोड़ देती मुझे.
जाने कब ख़त्म हो ये सिलसिला
जो मेरे होठों पे मुस्कान आ जाएगी