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दर्द

1 अगस्त 2015

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दर्द फ़ितरत में था ज़ख़्म मेरे अभी ये कहाँ भरे मौत ना आई मुझे ज़िंदगी बहाने बनती भी कहाँ तमाम उम्र यू ही भटकी ज़िंदगी तू भी किसी हादसे कि तरह रात कि काली चादर पर चाँद तारों कि बारात देखते ही गुज़री आँखों में किर्चों कि तरह "अरु" तेरे इमां भी ख़वाब अब लगते है आराधना राय Rai Aradhana ©
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व्यंग................ नगरी का दर्द

21 मई 2015
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पत्नी बन सवर कर जब आई पति के सामने से बाहर निकली। पति ने मज़ाक में हँस चुटकी ली। तैयार हो कर कहा चली मनचली राह से मनचला चुरा ले जायेगा। पत्नी भी मुस्कुराई और यू बोली चुरा कर कहां लेकर वो मुझे जायेगा मंहगाई में क्यों खिलायेगा पिलाएगा वापस तुम्हे दे कर खाली हाथ जाएगा पति ने आश्वस्त

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अपना हो गया

21 मई 2015
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किस कि क्या खता थी सज़ा कौन ये सह गया। बात कुछ भी ना हुई थी हंगामा ये क्यों हो गया। तेरे शहर में गुमनाम थे तुझ से यू भी अनजान थे बिन कहे ये फ़साना हो गया तेरी अदा पे दीवाना हो गया कहने को वो फ़क़त ग़ैर सा ही था उसका दिल में ठिकाना हो गया रिश्ता कुछ उस से अपना हो गया मेरे अपनों

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निभाया था

21 मई 2015
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अपनों ने जब कोई मुझ से रिश्ता ना निभाया था तो उसी ने आकर गम कुछ इस तरह बटाया था मुझे नहीं उसने मेरे ज़ख्मों को गले लगाया था कौन कहता है उस रोज़ वो कुछ भी ना लाया था वो किस तकलीफ़ में था ये बात कह ना पाया था दिल कि हज़ार खुशियाँ वो मुझे ही देने आया था मेरे मकान के दरों -दीवार कब से यू ही ढह र

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ना पाया था

22 मई 2015
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वो उसका दर था जहा मैंने सर झुकाया था ये अलग बात है वो मुझे देख ना पाया था मेरी हर बात पहाड़े सी उसे ज़बानी याद थी ये और बात है मुझे वो कभी कह ना पाया था मेरे इकरार को इनकार उसने समझ लिया था उसने मुड़ कर कभी हमें फिर देखा भी नहीं था मेरी आँखों ने जाने क्यों उसका रस्ता निहारा था ये और बात है उसे मेर

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मुमकिन ना हुआ

22 मई 2015
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मुमकिन ना हुआ ----------------------------------------------- वो मेरी बात को कभी समझा ना था वो आईना था मगर दरका हुआ सा करुँ क्या बात मैं खुद अपनी ज़ुबाँ से किसी कि आस में कब से बैठा हुआ था वो मेरा था मगर मुझ से रूठा हुआ था जाने किस बात ने उसको रोका हुआ

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किस्मत के हाथों

24 मई 2015
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किस्मत के हाथों --------------------------------------------------------------------- तुम्हारे जाने के बाद तुम्हारी तस्वीर राज़ खोल जाती है जो तुम नहीं कहते तुम्हारे ख्वाब खोल कर रख जाती है देख कर मुझे तुम चुप हो क्यों अपनी तन्हाई में यू ग़ुम हो तुम्हारे सामने बात करते अब तो ये भी ज़ुबाँ

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गीत

26 मई 2015
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गीत जानवर इंसानियत सीख जाएगा इंसान, इंसान भी नहीं बन पाएगा पत्थर भी एक दिन बोल कर जाएगा मानव तू भी पाषाण ह्रदय हो जाएगा संवेदना हीन वेदना क्या जान पाएगा कोई गीत यू ही अधूरा ही रह जाएगा अस्मां को क्या कोई यू झुका पाएगा हौसला है गर धरणी धीर कहलाएगा आराधना राय

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ह्रदय

26 मई 2015
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प्राचीन प्रस्तरों पर लिखी गई कोई कहानी दोहराती है जिसे आज बात कोई बतानी कहु तुम से में ये बात मूक ह्रदय के साथ छायांकन से कर भरते पत्थरों में ज़िंदगानी आराधना राय

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स्त्री

26 मई 2015
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सभ्यता के नाम --------------------------------------- मेरे आँगन में भोर कि लालिमा छाई बिटिया तू जिस दिन घर में मेरे आई मलीन मुख पर क्रांति सी ले कर आई मुझे लगा नन्ही परी मेरे घर पर आई अश्रुओं कि धार किसी भी ने ना बहाई तू पूरे घर को थी मन ही मन में सुहाई आज में दुनियाँ के रुख को देख घबराई तीरे

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ढूंढते रहे

26 मई 2015
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ढूंढते रहे =============================== तेरी चाहत लिए ना जाने कहाँ यू घूमते रहे मंज़िल कि तलाश में जाने क्या यू ढूंढ़ते रहे वादा नहीं तुझसे फिर सनम तुझे ढूंढते रहे बोझ कांधे उठा कर सदियों यू ही घूमते रहे रात दर्द की खामोशियों में तुझे क्यू ढूंढते रहे ख्वाब था फिर भी सिरहाने तुझे य

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ख़्वाब आँखों में है

27 मई 2015
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किस कि आहट को सुन कर वो चले आते है ख़्वाब से हमारी आँखों में वो बस कर जाते है कोई साज़ -ओ -सामान नहीं साथ वो लाते है दिल के आईने में बात कर के वो चले जाते है कोई शिकवा नहीं मुझसे उनको ये बता जाते है वो तस्वुर है मेरा मुझसे ही बात कर के जाते है दिल के शहर के अफ़साने को बयां कर जा

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गीत वहीं गाते हो

28 मई 2015
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तुम गीत वहीं फिर गाते हो जो उर में आन समाता है उषा कि प्याली में रचे बसे रश्मि का दीप जलाता है, अपराह्न समय भानू वीर अग्नि सा बरस कर जाते है ग्रीष्म ऋतु

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सुना मुझे

29 मई 2015
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ज़िन्दगी कोई और कहानी तू सुना मुझे भूख और प्यास कि बातें यू ना सुना मुझे मेरे हालातों ने ही बहुत मार गिराया मुझे अपनी क्या बात यू ही अब मैं बता दू तुझे मेरे रोने पर क्यों ना कभी रोना आया उसे मेरा हमदर्द था बाज़ार में ले आया वो मुझे उसने हाथों में डोर बांध ले कर आया मुझे मैं उसक

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किसके लिए

1 जून 2015
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वो जलाता रहा आँधियो में दिये ना जाने क्यों और किसके लिए एहसास अपने आप में कोई लिए वो चल रहा था जाने किसके लिए पैरों छाले और ज़ख़्म दिल में लिए वो भरता रहा बस औरों के ही किये वो मुरीद था तेरा ये ही बताने के लिए क्यों बैठा है वो यू इस ज़माने के लिए आँख में आँसू का एक बस कतरा लिए

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वो फुटपाथ

1 जून 2015
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वो फुटपाथ पर दिन भर सामान बेचती थी रात भर जिस्म का वो भी बाज़ार देखती थी इश्क़ के नाम पर वो पैगाम क्या भेजती थी वहशियत का रोज़ वो इनाम खुद झेलती थी हाथ -फैला हर रोज़ चन्द सिक्के देखती थी अपने हाथ में वो क़िस्मत का नाम देखती थी उम्र भर जाने किसकी वो क्यू राह देखती थी जीने कि चाह

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गम है यारों

1 जून 2015
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सब को कुछ ना कुछ गम है यारों कौन हुआ ना परेशान यहा यारों ज़र से ज़मीन कि ये लड़ाई है यारों कौन हुआ मेहरबान अब यहॉ यारों खून से सींचो चाहें पसीने से ही यारों फ़सल खेतों में लहरायेगी यहाँ यारों क्यू डराती है सुबह शाम मुझे यू यारों मौत है आयगी वो एक दिन ही यारों झूठ अनमोल हो गया पल

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क्यू

3 जून 2015
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ज़ख़्म फिर से दिल के हरे क्यू हो गए वो जो कब तलक ही सूख जाने वाले थे बरसों हम उन के लिए क्यू जी लिए अगर वो हम से रूठ के जाने वाले थे मेरे क़ातिल को पता था मेरा भी मकां उस से बच कर कब निकलने वाले थे अजीब बात थी वो शख़्स

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सौदा

3 जून 2015
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एक सौदा कर लिया है इश्क़ के बाज़ार में तेरे नाम पर मरना जीना तेरे ही नाम पे तुम्हारी आदतों में मेरी आदतें भी शुमार है तेरी आवाज़ में मेरी आवाज़ का ख़ुमार है ये मिरज़ -ए -इश्क़ है नाकामियों के नाम पे हम खुद आ कर रूक गए है एक तेरे नाम पे साथ तेरे यू चल पड़ा बस क़ाफ़िला था नहीं हमसफ़र कोई कहाँ था "अरु" तन्

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देखे कोई

11 जून 2015
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मैं रास्ता नहीं कि गुज़र गया कोईउम्र कि दहलीज़ पर छोड़ गया कोईकुछ तो तेरा मेरा वास्ता होगा कोईसदियों तक इंतज़ार नहीं करता कोईरूह से रूह का फासला यू हुआ है कोई जो तेरे मेरे दरम्यान आ गया है कोईउम्मीद दिल से ही लगता है फिर कोई बात जो रह गई वो ही बताता है यू कोईसाथ ये छूटने वाला कहाँ है देखे कोईहँस के कह

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नहीं जानती

12 जून 2015
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अपने आप को क्यू नहीं जानती जंग किससे लड़े क्यू नहीं जानती दुःख भंजनी ,क्यों दुःख को ना हरे अपने दुखों को ही नहीं क्या जानती विवाह वेदी अंतिम चिता नहीं बनती गर हर सास माँ भी बनना जानती कोई बुढ़ापा गलियों नहीं सिसकता गर बहु भी कुछ बेटी बनना जानती दुहाई कानूनों को सिर्फ क्यू देती हो स्वयं को जाग

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कहानी धरती अम्बर की

15 जून 2015
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एक रोज़ जब अम्बर की धरती से मुलाक़ात हूई। मंद -मंद मुस्कान लिये धरती को देख कर बोला, थकती नहीं मुझे तकते हुए बाहें फैलाये कब से खड़ा हूँ तुम देखती नहीं हँसते हुए। दो पल वो चुप रही फिर बोली पेड़ नाचते है, फूल खिलते है क्या देखा नहीं मुझे हँसते हुए क्षितिज के पास अम्बर हंसा हल्की

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हूँ जानती

16 जून 2015
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​ किस रूप में जन्म लूँगी फिर यह नहीं जानती हिंदू -मुस्लिम -ईसाई -सिख यह नहीं जानती मेरा -तेरा करने वाले कब थमेंगे नहीं जानती इंसान हूँ ईश्वर को हर रूप में ही हूँ बस मानती कब छीटा कशी छोड़ेगा इंसान ये नहीं जानती औरों के मान को कोई ना डसेगा नहीं जानती किसी धर्म के नाम पर दंगा फिर होगा हूँ जा

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तेरे लिए

16 जून 2015
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सपनों के घर में दीप जलाये है आज लगे सब हमें क्यों पराये है रोष क्यों अपने आँखों पे सजाये है देख कितने अश्रु बह कर ही आये है तेरे लिए कौन से फूल अब खिलाये है एक रंग नहीं रंगो की बारात ले आये है

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कमी ना थी

16 जून 2015
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​ तेरे शहर में यू तो कुछ कमी ना थी तेरे बगैर पर मेरे पैरों में ज़मीं ना थी तुझे ही ढूँढने राह में ही निकली थी तझे दिल कि हालत क्यू पता ना थी इत्मिनान था हमें कुछ यू कमी ना थी रौशनी दिल में थी ये ज़मीं ज़मी ना थी मुराद माँगते क्या जब कहीं कमी ना थी ज़ख़्म दिल मे थे "अरु"

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मात

17 जून 2015
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वक़्त के साथ हालत बदल जाते है लोग एक दिन सब को भूल जाते है एक हम है बातों को बताये जाते है तेरी यादों में दिन भी लुटाये जाते हैं तुझ पे एतबार क्यों किये जाते है

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बाबूल

21 जून 2015
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बाबूल --------------------------------------------------------- बचपन में तेरी उंगली को जब यू थाम चली थी डगर उसी दिन से ये लंबी पहचान ही चली थी तेरी बाहों में आ कर देखा ये पूरा ही संसार मैंने बाबूल तेरे आँगन कि वो ही नन्हीं सी कली थी तेरी बातों ने मेरी जुंबा को नए

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ख्याल तेरा

21 जून 2015
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बुला ले प्यार से अहसास हूँ तेरा भटक रहा हूँ वो प्यार हूँ मैं तेरा मेरे ख्वाब में रंग भर तू भी ज़रा हाथ से गुज़रा हूँ वो पल हूँ तेरा हर सुबह वो महकता है बस ज़रा वो ख्याल ही बन आ जाता है तेरा दूर वादियों की यादें है वो बस ज़रा वो साया सा "अरु" बस लगता है तेरा आराधना राय

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आशिकी

22 जून 2015
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वो गम ज़दा था नसीहत ना रास आई उसको परेशां था ज़माना ना कभी बहका पाया उसको ख्वाब देखने कि कभी भी आदत नहीं थी उसको रात किसी तस्वुर ने फ़िर से चौकाया था उसको कौन सी हक़ीक़त बयां कर रोकता वो भी उसको वो फूलों कि सेज़ पर नहीं काटो पर बैठता उसको वो आशना था आशिकी ना कभी रास आई उसको अपना दिल ल

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चली आएगी

22 जून 2015
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चली आएगी ==================== चुप चाप एक दिन चली आएगी उदास चेहरे पे हँसी भी आएगी ज़िंदगी के नए फ़लसफ़े सुनाएगी दास्ताँ अपनी भी वो सुना जाएगी आँखों के फ़साने तुझे भी सुनाएगी एक दिन चुप चाप चली वो जाएगी शाम ना कोई फ़िर आज सी आएगी वो चुप चाप आई थी चुप ही जाएगी ग़मों का सौदा

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दुनियाँ

22 जून 2015
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लोग मंदिर मस्जिद यू ही क्यू बना लेते है नफ़रत कि दुनियाँ नई सी क्यू बना लेते है कोई जीता है बाँध पेट पर भी क्यू पत्थर भूखे सड़कों पर क्यू भीख मांगा भी लेते है लाचारी से कूड़े पर भी सो कर हँस लेते है जीते जी मौत का सामना कर ही वो लेते है जुबां मीठी सी और दिल में छुरी रख लेते है

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क्यों फिर

22 जून 2015
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जाने क्यों फिर जान पर बन ये आई है कोई पहचान है या अज़नबी कोई आई है कहती है सालों से मेरा उसका रिश्ता है फिर हाय -तौबा सी क्यों उसने मचाई है किस बात का शिकवा है बताने वो आई है साँस लेते है तो उफ सी निकल ही आई है ज़िन्दगी बहाने से फिर पूछने क्यू आई है दिल के साज़ो -सामान से बहलाने आई है आराधना राय

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सौगात

25 जून 2015
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वो कौन था हम दम बन आया था वफ़ा का दावा का क्या वो कर आया गम नहीं ख़ुशी कि सौगात लाया था वो गुमी हुई सी तस्वीर ले आया था सुबह बन के वो कही से ही आया था वो मेरी ज़िंदगी "अरु" देने आया था आराधना राय

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पास तेरे हूँ

25 जून 2015
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मेरी आँखों में हो तुम दिये की लौ की तरह तेरे आँगन में लौटी हूँ मैं भी तुलसी कि तरह मुझे माथे पे ना लगाना तुम चंदन कि तरह तेरे पास नहीं हूँ में किसी भी बंधन कि तरह मेरी आखों में सजोगे हो तुम अंजन कि तरह मेरे हाथों में सजोगे हो तुम भी कंगन कि तरह मुझे हीरा ना समझना जली हूँ कोयले कि त

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रास्ते

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होकर

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क्या कहिये

27 जून 2015
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जिन कि फ़ितरत ही यू पत्थर से मारने कि हो प्यार कि बातें भी उन से अब यू क्या कहिये ज़ज़्ब कर रख ले बादल जब यू कोई आब ही ना बरसने वाली उस बरसात का क्या कहिये तिश्नगी है इश्क़ कि यों बढ़ती ही ये तो जाएगी रूह प्यासी रही ज़ज़्बात कि "अरु" क्या कहिये आराधना राय

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प्रश्न

29 जून 2015
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गागर में सागर सहज ही नहीं भर पाता है समुद्र किसी अंजलि में यू कहाँ समा पाता है ज्ञान कब किसी एक का कभी हो यू पाता है मेघ क्या एक जगह जल बरसा कर जाता है निष्प्राण देह में यू कोई प्राण नहीं भर पाता है जिजीविषा का प्रश्न यू कहाँ हल हो ही पाता है आराधना राय

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दे दिए

30 जून 2015
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ज़िंदगी के दीये यू ही जला दिए राह आसान ना थी रास्तों में घर बना दिए। तेरी बात को गले यू ही लगा लिए कौन था जिसने हर बार गहरे ज़ख़्म लगा दिए करूँ क्या उन से में यू ही तौबा जिन्होंने दूसरों के घर यू ही सरेआम जला दिए जाने तुम क्यों ना सम्हल पाए अपनी तमन्नाओं के लिए दूसरों के दामन जला दिए ज़मान

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तलबगार

30 जून 2015
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ज़ुल्म सह कर जो ज़ख्म ही पाता है वो शख़्स कहाँ सितमगार यू होता है दिल में दाग़ लिए वो यू क्यों रोता है हर बात पर वो यू ख़फा क्यू होता है ज़माने के आधात को ज़ुबाँ जो देता है वो कुछ भी हो तेरा तलबगार होता है कुछ मुश्किलों का आसार तो होता है वो हर चोट पे "अरु " वो बेजुबां होत

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दिए

1 जुलाई 2015
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ज़िंदगी के दीये यू ही जला दिए राह आसान ना थी रास्तों में घर बना दिए। तेरी बात को गले यू ही लगा लिए कौन था जिसने हर बार गहरे ज़ख़्म लगा दिए करूँ क्या उन से में यू ही तौबा जिन्होंने दूसरों के घर यू ही सरेआम जला दिए जाने तुम क्यों ना सम्हल पाए अपनी तमन्नाओं के लिए दूसरों के दामन जला दिए ज़मान

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दिदार

1 जुलाई 2015
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ज़िंदगी हँस के यू बहल जाती तो अच्छा था नया पैग़ाम सुना जाती तो कुछ अच्छा था। रोज़ वादे कर के वो जाती तो कुछ अच्छा था तेरा दिदार भी कुछ कराती बहुत अच्छा था वो मुझ से रुख़्सत ना हुई होती तो अच्छा था सुनहरा सा ख़्वाब दिखा जाती तो अच्छा था सफऱ को मुक़ाम बना जाती तो ही अच्छा था तराने सुना कर

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दामन

5 जुलाई 2015
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दिल ये अहसास के बंधन को ज़िया जाता है बस तेरे इश्क़ में बदनाम हुआ ये ही जाता है चोट लगे तो यू कभी भी रोकर ये ही जाता है तेरे दामन में सिमट कर तुझ से बता जाता है दिल के दर्द का तुझ को यू ये पता बता देता है तेरी बात तुझ से कर ख़ुद हालात पे रो देता है साया गुमनाम सा "अरु " का ही पता दे देता

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प्रसाद

11 जुलाई 2015
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क्षुब्ध हूँ , क्षुधित हूँ.तृषित हूँ कातर नहीं हूँ. धीर हूँ सतत हूँ जीवन में निरन्तर प्रवाहित हूँ तम भी हूँ , शशि प्रकाशित हूँ भोर की लालिमा का प्रकाश हूँ सुर से सजी धरा का प्रसाद हूँ ज्ञान की नदी की एक धार हूँ "अरु" नश्वर हूँ पर दीप्तमान हूँ आराधना राय

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प्रहार

12 जुलाई 2015
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वो बुरी शक्ल लिए मिलने आई थी हाथों मैं कटोरा भीख का ले आई थी रूखे -सूखे केश लिए कहने आई थी आहात थी दुःख साथ ही ले आई थी आँखों में आँसू भर वो जब कराही थी दर्द कि आवाज़ नहीं सुनाने आई थी धरती थी अपनी पीड़ा बताने आई थी कौन सी त्रासदी उसे नहीं रास आई थी वृक्ष , वन , नदी सब का दर्द ले आई थी बात किसी

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पहचान

30 जुलाई 2015
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मेरी तुझ से पहचान ये यू ही नहीं थी तुझ से मुलाक़ात कभी हुई ही नहीं थी तुझ से जन्मों कि बात यू तो नहीं थी दिल कि ही ये कोई यू ही बात रही थी तुझ से मिलना यू ही इत्तेफ़ाक़ रहा था एक हम ही नहीं बैठे तेरे इंतज़ार में "अरु" आराधना राय

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इंतज़ार में

30 जुलाई 2015
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तेरे इंतज़ार में चुप- चाप हम रोयेंगे अश्को से दामन तेरा हम भी ​भिगोयेंगे तेरी बातो से मिल जायेगा क़रार मुझे यु ही दिल अपना प्यार में यु भिगोयेंगे उसके ज़ज़्बात भी अपने से ही अब लगे "अरु" वो मुझे अपना हम कदम सा ही लगे आराधना राय

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राज़

30 जुलाई 2015
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राज़ ---------------------------------------------------- चले जो बच के साहिलों से उसमें भी तो कुछ है लहरों से बच कर कश्ती चली उसमे भी कुछ है आषाढ़ कि बारिश यू ही लगे सावन कि झंकार है उसकी बात नहीं कोई यू ही बेबात उसमें कुछ है मंज़िले अपना जब रास्ता खुद ही कहीं यू ढूँढती

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दर्द

1 अगस्त 2015
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दर्द फ़ितरत में था ज़ख़्म मेरे अभी ये कहाँ भरे मौत ना आई मुझे ज़िंदगी बहाने बनती भी कहाँ तमाम उम्र यू ही भटकी ज़िंदगी तू भी किसी हादसे कि तरह रात कि काली चादर पर चाँद तारों कि बारात देखते ही गुज़री आँखों में किर्चों कि तरह "अरु" तेरे इमां भी ख़वाब अब लगते है आराधना राय Rai Aradhana ©

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सखी ,मित्र

2 अगस्त 2015
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सखी ,मित्र ------------------------------------- सुधियों के आँगन में मुस्कुराता गीत सा कोई यू ही गुनगुनाता है उर में जो वह बसा कब से हुआ है मेरे संग ही तो वह प्रतिपल रहा है सखी तुम्हारी स्मृति सा वह यू तो है प्रेम तुम्हारा उसमें ही अब साकार है स्वपन का कोई वो नया वह आकाश

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बदनाम करते है

3 अगस्त 2015
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---------------------------------------------------------------------- आज कल लोग बिना बात ही यू बदनाम करते है उसूलन हम भी उन्हें ही तो जा कर सलाम करते है ये और बात है लोग इश्क़ कि बात यू ही करते है बिना बात के वो ही बस हर बार सवालात करते है है बहुत मुश्किल उनको ही यू भी ये अब समझाना जो किसी के द

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सज़ा

3 अगस्त 2015
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दिल के अहसास समझता नहीं हर कोई दे कर कहाँ खुश होता है यहाँ यू भी कोई उसकी खुशियाँ मज़ा किरकिरा करती गई इसलिए उसे सज़ा भी देता है अब हर कोई

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अपना घर

3 अगस्त 2015
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प्रेम से बरसों अपने लहू से यू मैंने इसे यू क्यों सींचा था। भूमि पर एक पौधा खुशहालियों का भी मैंने लगाया था इस धरा पर अपना घर अपनी ज़मी पर ही तो बनाया था बारिश कि फुहारों में इसको रोज़ ही नहलाया धुलाया सा था अपने घर को मैंने अब तक तूफां से लड़ -लड़ कर बचाया था जाने किस शोर का आतंक था मैंने अपना

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(कहानी) विश्वास

5 अगस्त 2015
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विश्वास उसके पैर मानो जम से गए थे ,शरीर में ताकत न होने पर भी ,वो हॉस्पिटल के कमरे से निकल कॉरिडोर में निकल आई ,उसने सोचा भी ना था की जिस रिश्ते से जीवन भ

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ना बिकना आया

10 अगस्त 2015
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ना बिकना आया --------------------------------------------लोग बिक जाते है बस पल -दो पल में ही हमें ना इस तरह बाज़ार में बिकना आया राह चलतों से बात क्या हम अपनी यू करें जिन्हें नज़रिया भी ना बदलना कभी आया अपने ख्वाबों को उम्मीदों के सर ही करते हैरोज़ सिक्कों कि तरह हमें ना बदलना आया वो खुश रहे उन्होंन

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देश बनेगा

13 अगस्त 2015
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मेरे देश की मिट्ठी है वही सौंधी सी ह्रदय को मदमस्त सी करती जाएमन की व्यथित हो शोर मचायेगाजब ह्रदय की डोर को तोड़ा जायेगा देश बनेगा ये सावन आँखों में पानी भर जायेगा मेरा देश कबीर की वाणी याद करेगा रहीम को फिर से कोई राम भी कहेगाकृष्ण को उस दिन रास खान मिलेगा न मंदिर की ना म

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मन की भूमि

25 अगस्त 2015
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मन की भूमि------------------------------उपज रहा मन की भूमि पेविप्लव अंकुर का ही धानकिस पे बाड़ लगा रोकोगेजान मचा हुआ हो भूचालभूखा पेट राम ना क्या जानेकोडी और छदाम क्या जानेरवि और रंजन की बात यहाँअश्रू बहे या तन का लहू बहेमान ले जो तुझ से हृदय कहेनारी की लज़्ज़ा की बात कहूँमाँ के उधड़े तन को देख करकौन स

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तलबगार

20 अक्टूबर 2015
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ताक़त-ए-बेदाद-ए-इंतिज़ार नहीं हैहम सा  कोई तेरा  तलबगार नहीं हैहयात-ए-दहर कि वफा पहले दिखाइए दिल मेरा उन अब तलक बेज़ार नहीं है  क़त्ल का उसने मेरे इंतज़ाम  ऐसा किया वो जानता था दिल मेरा उस्तुवार नहीं है        मेरा दिल दिल ना था क्यों बेदर्द सा हुआ    अब लोगों कि बातों पे मुझे एतबार नहीं है      माना क

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७५ वी साल गिरह दुष्यंत कुमार कि

27 अक्टूबर 2015
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दुष्यंत कुमार के जन्म दिवस परदुष्यंत कुमार त्यागी (१९३३-१९७५) एक हिन्दी कवि और ग़ज़लकार थे।दुष्यंत कुमार उत्तर प्रदेश के बिजनौर के रहने वाले थे। जिस समय दुष्यंत कुमार ने साहित्य की दुनिया में अपने कदम रखे उस समय भोपाल के दो प्रगतिशील शायरों ताज भोपाली तथा क़ैफ़ भोपाली का ग़ज़लों की दुनिया पर राज था।

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बदल जाएगी

5 नवम्बर 2015
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कविताआज नहीं तो कल बदल दी जाएगीतस्वीर दुनियाँ कि बदल दी जाएगीहालत एक से होते नहीं हर एक केतूफानों बन बिजलियाँ ही टकराएगीमाना हालत के मारे हम सह रहे हैज़दोजहद से राह नई निकल ही आएगीजब कही स्याद थक कर चला जाएगाआकाश में चिड़ियाँ उड़ कर चली जाएगीआज आँखों से सावन बरसा कर जाएगीपीर कि टिस "अरु" दिल में उतर ही

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शहर होने लगे

6 नवम्बर 2015
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शहर होने लगे-----------------------------------------नीम की छाँव तले दिया तुलसी का जलेसूर्ये भी थककर रुके स्वर्णिम साँझ ढलेपाखी का गुंजन उत्सव सा लगने लगेह्दय का स्पंदन वीणा कि झंकार लगेस्वप्न सात रंगों के झिलमिल करने लगेमुधु- कि मुस्कान से जब फूल झरने लगेगाँव - मेरे शहर में आकर जब मिलने लगेदूर- दूर

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आवाज़

17 नवम्बर 2015
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आवाज़--------------------------------------------उन के दरों -दीवार की बातें करेंदिल से दिल मिलाने की बातें करें---------------------------------------------कल तलक रहे बिल्कुल बे- आवाज़आज उन के दीदार की बातें करें---------------------------------------------------ज़मी चुप है,आसमां बड़ा खामोशसख्त होते हाल

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जाती बहार में

10 दिसम्बर 2015
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मौसम के रंग -राग गए जाती बहार मेंफूलों के लब से हास गए जाती बहार मेंगुम हो गए सभी जैसे सर्द रात के मेंठंडक बनी रही दिलों में जाती बहार मेंसोए हुए थे पेड़ सभी जगाने के बादजैसे कफस में सो गए कही जाती बहार मेंउम्मीद अपनी अपनी थी सर्दी के देश मेंकैसे कहे कौन रो कर ना उठे जाती बहार  मेंनादाँ है कुछ ना बोल

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आसमान

21 दिसम्बर 2015
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आसमान तेरी किस्मत का कोना ना रहा बहारों इस जहाँ में नज़ारा ना रहा रोक लेते गर रुक जाता तेरा काफिलागिर कर आफ़ताब भी सितारा ना रहा बीती बातों के लिए बिता दी ज़िन्दगी बहते साहिल का कोई किनारा ना रहा कतरा- कतरा जोड़ कर जीते रहे हम भी इस जहान में कोई अब हमारा ना रहा कब तक सितम ढाती रहेगी बिज़लियाँइस आसमा

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किस्मत

12 मार्च 2016
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आराम नहीं जिनकी किस्मत मेंरात- दिन बस ठोकरें ही खाईलहू पिला खेतों को पालाकर्जों की गठरी भर कर उठाईतिलहन , सरसों , गेहूं की खेतीकिसान के घर रोटी क्या लाई बीज़ - फसल खा गई धरतीरिक्त हुआ कोष बात समझ नाआईप्यासी धरती भूखा किसान हैकोई ना जाने यह पीड पराईआराधना राय "अरु"

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अधुरा गीत

12 मार्च 2016
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गीत अधुरा रह गयामौन अनकहा रह गयाप्रीत की बतिया  कहीमन  तृष्णा  कह गयाबसंत रीता  रह  गयाहर रंग फीका रह गयासाँझ विरहन भाई नहींमौसम अधुरा रह गयासाँझ की बेला का दीयासिसकता हुआ रह गयाचूड़ियाँ टूटी सुहाग कीहिय का गहना खो गयासरहद पे सिंदूर पुछ गयादेश के नाम पीया तू गयाआँसुओं से स्वपन लिखापीड़ा में उमड़ के कह

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खुद से भी न कहा

3 अप्रैल 2018
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जो बाते कभी खुद से भी न कहा वो जाने कैसे कही तुझसे कह के किसी और से वो बात न करना मुझ को नाराज.

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जाने क्या होगा

3 अप्रैल 2018
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आने वाले पल में जाने क्या होगा.तू मिल जायेगा मुझे या मुझ से दूर होगा.मिलन होगा अपना या न मिल पाना होगा.आने वाले पल में जाने क्या होगा.

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रात

3 अप्रैल 2018
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आँखों में ही ये रात गुज़र जायेगी.जाने कब नींद हमें आएगी.वक़्त गुज़र नहीं रहा गुज़ारे से.न जाने ये सुबह कब आएगी.

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मुस्कान

3 अप्रैल 2018
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बन जाऊ फिर इस बार पत्थर कीजो दर्द कोई न छू पाएगी वो वक़्त फिर वही ले आएगा जहाँ बार बार तोड़ देती मुझे.जाने कब ख़त्म हो ये सिलसिलाजो मेरे होठों पे मुस्कान आ जाएगी

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मुलाकात

3 अप्रैल 2018
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कुछ रिश्ते बेनाम होते है फिर भी न जाने क्यों हमारी जान होते हैबिना बोले समझ लेते आपकी हर बातचाहे कभी न हो उनसे मुलाकात.

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अपना तुझे बना लूंगी

3 अप्रैल 2018
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अपनी जुल्फों की छाओ में चेहरा तेरा छुपा लूँगीजो बन जाये मेरा दुनिआ से चुरा लूंगीबन जायेगा तू सात जन्मों के लिए मेरा कुछ इस तरह अपना तुझे बना लूंगी

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