21 मई 2015
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1994 मेँ हिंदी अकादमी द्वारा पुरस्कृत , मेरी सहेली नामक मैगज़ीन मे कहानियाँ लिखी नाटक और कुछ रेडिओ प्रोग्रम्मेस की स्क्रिप्ट लिखने के एक़ अन्तराल बाद दुबारा से हिंदी लेखन करने का दुःसाहस कर रही हू । अखंड -भारत की में रचनाए हिंदी की गूंज में बेला में विश्वगाथा में निरंतर प्रकाशित हो रही है
,1994 मेँ हिंदी अकादमी द्वारा पुरस्कृत , मेरी सहेली नामक मैगज़ीन मे कहानियाँ लिखी नाटक और कुछ रेडिओ प्रोग्रम्मेस की स्क्रिप्ट लिखने के एक़ अन्तराल बाद दुबारा से हिंदी लेखन करने का दुःसाहस कर रही हू । अखंड -भारत की में रचनाए हिंदी की गूंज में बेला में विश्वगाथा में निरंतर प्रकाशित हो रही है
Dमेरे मकान के दरों -दीवार कब से यू ही ढह रहे थे वो मेरा टूटा हुआ घर फिर बनाने ही तो आया था....अति सुन्दर भावाव्यक्ति !
28 मई 2015
सभी पंक्तियों में कुछ अपनी कुछ उनकी , काफी भावपूर्ण अभिव्यक्ति | बधाई |
22 मई 2015
अंतर्मन की व्यथा को इतने अच्छे शब्दों में आपने, एक माला की तरह पिरोया है .. धन्यवाद आराधना जी
21 मई 2015