आराम नहीं जिनकी किस्मत में
रात- दिन बस ठोकरें ही खाई
लहू पिला खेतों को पाला
कर्जों की गठरी भर कर उठाई
तिलहन , सरसों , गेहूं की खेती
किसान के घर रोटी क्या लाई
बीज़ - फसल खा गई धरती
रिक्त हुआ कोष बात समझ नाआई
प्यासी धरती भूखा किसान है
कोई ना जाने यह पीड पराई
आराधना राय "अरु"