जब कभी योग की बात मन में आती है तो सामान्यतः यह सोच बनती है कि यह तो तपस्वी या गम्भीर व्यक्तित्व के लोगों का क्षेत्र है या हमारा ध्यान आसनों की ओर जाता है परन्तु ऐसा सर्वथा सत्य नहीं है I यों तो योग का शाब्दिक अर्थ है मिलना या जोड़ना, धार्मिक परिपेक्ष्य में आत्मा का परमात्मा से मिलन है परन्तु यदि हम वैज्ञानिक दृष्टि से देखें तो योग एक माध्यम है जो मानसिक व शारीरिक क्रियाओं के बीच एक सुखद सामंजस्य बनाता है I हमारे शरीर में कुछ ऐसी क्रियाएं होती हैं जो हमारी इच्छानुसार होती हैं, परंतु कुछ ऐसी क्रियाएं भी होती हैं जिनपर हमारा नियंत्रण नहीं होता, जैसे श्वसन क्रिया एवं ह्रदय गति पर हमारा कोई नियंत्रण नहीं होता है; ऐसी ही कई और क्रियाएं भी हैं जिनके निर्देश कूट संकेत के रूप में हमारे मस्तिष्क तथा स्व-स्नायु तंत्र की कोशिकाओं में दर्ज रहते हैं I परन्तु, यदि हम अपनी नियंत्रण परिधि के बाहर की शारीरिक एवं मानसिक क्रियाओं पर नियंत्रण प्राप्त कर लें तो इसे ही योग प्राप्ति कहेंगे I यह तभी संभव है जब आत्मा का नियंत्रण मस्तिष्क पर हो I दुनिया के सबसे तेज़ कम्प्यूटर की तुलना में मानव मस्तिष्क की क्षमताएं कहीं अधिक हैं लेकिन हम उनका उपयोग नहीं कर पाते हैं I हमारे देश के महान ऋषियों-मुनियों ने निश्चित ही उनका उपयोग किया होगा तभी एक स्थान पर बैठकर सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड के बारे में उन्होंने जो कुछ पांडुलिपियों में लिख दिया उसकी पुष्टि आज अमेरिका द्वारा भेजे गए अंतरिक्षयान वाईजर से मिली मंगल ग्रह व ब्रहस्पति ग्रह की तस्वीरों से हुई है I
यह नियंत्रण अनुशासित कर्म के द्वारा ही प्राप्त किया जा सकता है I कर्म शरीर करता है जिस पर मस्तिष्क का नियंत्रण होता है I अतः इन दोनों को इस योग्य बनाना कि ये आत्मशक्ति के नियंत्रण में रहे I श्रीमद्भागवतगीता में भगवां श्रीकृष्ण ने कहा है:─
पांच घोड़ों वाले रथ में, रथ शरीर है, उस पर बैठा व्यक्ति आत्मा है I सारथी चित्त (मन) है तथा घोड़े इन्द्रियां हैं I इन्द्रियों का नियंत्रण चित्त के पास होता है अतः अगर मन चंचल हो गया हो तो इन्द्रियां भी स्थिर नहीं रहेंगी और चित्त आत्मा को कहीं भी ले जा सकता है अतः रथ के सभी अवयवों को इस योग्य बनाना आवश्यक है ताकि वह आत्मा के नियंत्रण में रहे I महर्षि पतंजलि के अनुसार, चित्त की वृत्तियों का निरोध ही योग है I इसके लिए उन्होंने अष्टांग योग को श्रेष्ठ मार्ग बताया I इस मार्ग में आठ अवस्थाएं हैं- यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि I
इन अवस्थाओं तक पहुँचने पर मस्तिष्क तथा शरीर का सामंजस्य स्थापित हो जाता है जिसके फलस्वरूप मनुष्य का व्यक्तित्व निखर आता है I सभी अवस्थाओं में समाधी की अवस्था सर्वोच्च शिखर स्थिति है जहाँ व्यक्ति स्वयं को भूल जाता है तथा उसका सम्पूर्ण ध्यान केवल अपने उद्देश्य पर होता है, यही योग की सर्वोच्च स्थिति है I
─डॉ. नीलम शुक्ला
असिस्टेंट प्रोफेसर डी.वी.एस. कॉलेज, कानपुर