सूमो दो साल की हो गई । उसकी भोली सी सूरत बहुत अच्छी लगती और वो बहुत प्यारी प्यारी बातें करती । उसे मेकअप करने का बहुत शौक था। बिन्नी लानूमा , किम लानूमा , लिपटिक लानूमा। अब उसका बोलने का तरीका बदल गया। लाम्मीं की जगह लानूमा।
तैयार हो कर कहीं जाने पर कहती इच्चूम (स्कूल) जानूमा।
अब सूमो छब्बीस महीने की हो गई। बहुत प्यारी प्यारी बातें करती। अगर कभी में उदास हो जाती तो उसकी भोली सी मुस्कराहट देख कर उदासी दूर हो जाती। जब मैं उसकी किसी बात पर ध्यान नहीं दे पाती तो कहती एक बात सुनो मम्मी मौ ( मुंह) करो। मतलब मेरी तरफ मुंह करो।
होम्योपैथिक दवाई देते समय डाक्टर ने कहा था कि दवाई हाथ में नहीं लेना। ढक्कन में गोलियां निकाल कर सीधे मुंह में रखना है चबाना नहीं है। तो जब भी दवाई खिलाती तो कहती है कि हाथ में मत लिज्जो।
A से E तक की मीनिंग बोलना सीख गई। छोटे छोटे खिलौनों में झूठ-मूठ की चाय बनाकर सबको पिलाती और जब पूछते कि इसमें क्या डाला है तो कहती कि इसमें शक्कर नमक सब डाला है ।
अब हम भोपाल शिफ्ट हो गए थे । वहां सूमो को प्ले स्कूल में एडमिशन कराया । उस समय उसका नाम सूमो तो रख नहीं सकते थे तब कुछ दिनों तक सोच विचार कर उसका नाम अंशिका रखा। और घर में उसे अंशू कहते थे ।
शुरू शुरू में कभी अंशू कभी सूमो कहते थे। परिवार में कुछ लोग तो अभी भी उसे सूमो कहते हैं ।
जब सूमो को स्कूल छोड़ने जाती तो बहुत खुश होती है क्योंकि वो बड़े चाव से पढ़ती थी । उसकी टीचर भी उससे खूब लाड़ करतीं थीं।
उसके पापा कुछ लाते तो कहती वाह समझदार ले आऐ। अब एक-दो पोयम भी सीख गई थी। गाने भी गाती थी और डांस भी करती।
पहले चाय की जिद करती थी लेकिन अब कहती चाय गंदी होती है अच्छे बच्चे दूध पीते हैं ।
डायरी के पन्ने पलटते पलटते सचमुच ऐसा लग रहा है कि उसके बचपन में पहुंच गई हूं । उस समय अच्छा हुआ जो मेने उसके बचपन को लिखा। आज पुरानी यादों में उसका बचपन फिर से जी रही हूं। क्योंकि बहुत सी ऐसी बातें होती जो हम भूल जाते हैं । लेकिन लिखा हुआ हमेशा साथ रहता है।