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स्कूल में एडमिशन

7 मई 2022

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सूमो दो साल की हो गई । उसकी भोली सी सूरत बहुत अच्छी लगती और वो बहुत प्यारी प्यारी बातें करती । उसे मेकअप करने का बहुत शौक था। बिन्नी लानूमा , किम लानूमा   , लिपटिक लानूमा। अब उसका बोलने का तरीका बदल गया। लाम्मीं की जगह लानूमा।
              तैयार हो कर कहीं जाने पर कहती इच्चूम (स्कूल) जानूमा।
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      अब सूमो छब्बीस महीने की हो गई। बहुत प्यारी प्यारी बातें करती। अगर कभी में उदास हो जाती तो उसकी भोली सी मुस्कराहट देख कर उदासी दूर हो जाती। जब मैं उसकी किसी बात पर ध्यान नहीं दे पाती तो कहती एक बात सुनो मम्मी मौ ( मुंह) करो। मतलब मेरी तरफ मुंह करो।
                   होम्योपैथिक दवाई देते समय डाक्टर ने कहा था कि दवाई हाथ में नहीं लेना। ढक्कन में गोलियां निकाल कर सीधे मुंह में रखना है चबाना नहीं है। तो जब भी दवाई खिलाती तो कहती है कि हाथ में मत लिज्जो।
             A से E   तक की मीनिंग बोलना सीख गई। छोटे छोटे खिलौनों में झूठ-मूठ की चाय बनाकर सबको पिलाती और जब पूछते कि इसमें क्या डाला है तो कहती कि इसमें शक्कर नमक सब डाला है ।
         अब हम भोपाल शिफ्ट हो गए थे ।  वहां सूमो को प्ले स्कूल में एडमिशन कराया । उस समय उसका नाम सूमो तो रख नहीं सकते थे तब कुछ दिनों तक सोच विचार कर उसका नाम अंशिका रखा। और घर में उसे अंशू कहते थे ।
              शुरू शुरू में कभी अंशू कभी सूमो कहते थे। परिवार में कुछ लोग तो अभी भी उसे सूमो कहते हैं ।
        जब सूमो को स्कूल छोड़ने जाती तो बहुत खुश होती है क्योंकि वो बड़े चाव से पढ़ती थी । उसकी टीचर भी उससे खूब लाड़ करतीं थीं।
उसके पापा कुछ लाते तो कहती वाह समझदार ले आऐ।  अब एक-दो पोयम भी सीख गई थी। गाने भी गाती थी और डांस भी करती।
पहले चाय की जिद करती थी लेकिन अब कहती चाय गंदी होती है अच्छे बच्चे दूध पीते हैं ।
           डायरी के पन्ने पलटते पलटते सचमुच ऐसा लग रहा है कि उसके बचपन में पहुंच गई हूं । उस समय  अच्छा हुआ जो मेने उसके बचपन को लिखा। आज पुरानी यादों में उसका बचपन फिर से जी रही हूं। क्योंकि बहुत सी ऐसी बातें होती जो हम भूल जाते हैं । लेकिन लिखा हुआ हमेशा साथ रहता है।
     

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रचनाएँ
यादों की डायरी
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इस पुस्तक में मेने अपनी पुरानी डायरी के कुछ पन्ने साँझा किए हैं। इसमें मेने अपने मां बनने के सुखद अहसास को और अपनी बेटी के बचपन को शब्दों में सजा कर व्यक्त किया है।
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यादों की डायरी

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मां बनना एक औरत को कुदरत का दिया हुआ सबसे अनमोल तोहफा है । बच्चे को नौ महीने गर्भ में महसूस करना और जन्म के बाद बाल लीलाओं का आनंद लेना सचमुच बहुत सुंदर

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बेटी का जन्म

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नवा महीना कंप्लीट होने के बाद एक दिन सुबह से ही धीरे-धीरे दर्द शुरू हो गया । दर्द बढ़ ही नहीं रहा था बस धीरे-धीरे हो रहा था जो कि रात भर होता रहा । और सुबह 17 अ

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बातूनी सूमो

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साढ़े तीन महीने की मेरी सूमो। साढ़े तीन महीने पर छः किलो की थी । नटखट चुलबुली, चंचल ,फुर्तीली यह

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स्कूल में एडमिशन

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बस सिर्फ खेल

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सूमो तीन साल की हो गई । उसके जन्मदिन पर उसे साइकिल दिलाई। जिसे वह अभी चला नहीं पाती है । सूमो रोज स्कूल जाती है । स्कूल से आने के बाद भी अपनी कॉपी निकाल कर लिखती रहती है। उसकी टीचर भ

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खेल में रुचि

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अंशू चार साल दो महीने की हो गई । इस बार उसका जन्मदिन थोड़ा अच्छे से मनाया । अंशू की पढ़ाई को लेकर बड़ी उलझन है । अभी वह संस्कार पब्लिक स्कूल में पढ़ती है क्योंकि रूम चेंज करने के बाद उसका पहले व

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खेल में मस्त अंशू

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अंशू का छोटा भाई

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अंशू पांच साल की हो गई और काफी समझदार हो गई। खेलना ही खेलना काम है। पढ़ने लिखने से कोई मतलब नहीं। अंशू का पांचवां जन्मदिन धूमध

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स्कूल बदलने का सिलसिला

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अंशु अब छः साल की हो गई। धीरे-धीरे पढ़ने में रुचि लेने लगी । लेकिन खेलना कम नहीं हुआ था । और वह टीवी भी खूब देखने लगी थी। अपने भाई से वो खूब प्यार करती है। टीवी देख देख कर थोड़ा बहुत डांस करना स

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अंशू की पहली शील्ड

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अंशू खो खो टीम की कैप्टन बनकर नेशनल खेलने कानपुर गई थी तब वो आठवीं कक्षा में थी। उनकी टीम द्वितीय पुरस्कार जीती । अंशू में कुछ गुण&nb

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