साढ़े तीन महीने की मेरी सूमो।
साढ़े तीन महीने पर छः किलो की थी । नटखट चुलबुली, चंचल ,फुर्तीली यह सब शब्द तो उसके डिक्शनरी में थे ही नहीं ।
शांतिप्रिय, बड़ी गंभीर, बिना हाथ पैर हिलाए ढुलाए बस लेटे लेटे टीवी देखना । जब भूख लगती तो थोड़ा रो देती थी ।
सुबह छः सात बजे जगती थी । मैं उसको दूध पिला देती थी । वह फिर सो जाती थी। फिर ग्यारह बारह बजे जगती थी। तब तक मेरा घर का काम हो जाता था । फिर मैं उसको सरसों के तेल से मालिश करती थी। नहलाकर ,पाउडर लगाकर कपड़े पहना कर तैयार कर देती थी। काजल का एक टीका गाल पर लगा देती थी। दूध पिला देती थी। थोड़ी बहुत देर खेलने के बाद सो जाती थी।
छः महीने पर उसे दस पंद्रह दिनों तक दस्त लगे थे और वह पिचक गई थी । और अब वो नाम की सूमो रह गई थी ।
जब बोलना सीखी तो उसकी बातें बड़ी ही अच्छी लगतीं थीं । मेरे दूध को दूदू भैंस के दूध को चाय कहती थी । बिस्कुट को कुट्टू कहती थी और जब उसके पापा और चाचा उसको परेशान करते तो कहती है ये काका नायनें।
और बोलती थी कि छिपनीं (छिपकली) काकाऐ खाजा ।
उसके सामने कोई खाने की चीज रख दो तो बस रट लगा लेती ' खाती ' 'खांए'।
समय का तो मुझे पता ही नहीं चलता था और अब तो बोलने लगी थी तो उसकी बातों को सुनते रहते उसी के काम में पूरा समय निकल जाता।
भूख लगने पर कहती कोटि सबीजी खाम्मीं।
दूध पीम्मीं । केना खाम्मीं ।
मैं पूछती केला कौन खायेगा तो कहती
केना हम्में खाम्मीं। केना सूमो खाम्मीं।
पापा केना लेने गए।
नहाने को कहती गंगा करेंम्मीं। नहाने के बाद के काओमाओ (काजल) लाओ, कंघी लाओ ,नए कपड़े लाओ ,पाउडर लाओ ,मुझे रानी बेटी बनाओ इसी तरह की उसकी बातें पूरे दिन पटर पटर चलती रहतीं थीं ।
सूमो मिट्टी खाना सीख गई थी वह बहुत मिट्टी खाती थी। खूब डांटती भी थी लेकिन नहीं मानती थी वो । होम्योपैथिक दवाई भी खिलाई लेकिन फिर भी उसने मिट्टी खाना नहीं छोड़ा था।