नवा महीना कंप्लीट होने के बाद एक दिन सुबह से ही धीरे-धीरे दर्द शुरू हो गया । दर्द बढ़ ही नहीं रहा था बस धीरे-धीरे हो रहा था जो कि रात भर होता रहा । और सुबह 17 अक्टूबर 2003 समय 6:45 पर मेरी बिटिया पैदा हुई ।
मैं गांव में रहती थी । मेरी डिलीवरी घर पर ही दाई के संरक्षण में हुई थी । मेरी नन्हीं सी बिटिया को जब मेरी गोद में दिया गया उस अनुभव को तो मैं शब्दों में बयां नहीं कर सकती।
एकदम से गुलाबी दिख रही थी वह। छोटी-छोटी आंखों को मटका रही थी । सचमुच बहुत ही प्यारा एहसास था वो । जब मैंने उसको अपना दूध पिलाया तो थोड़ी ही देर में वह दूध पीने लगी । मेरे आश्चर्य का ठिकाना नहीं था । इतनी छोटी सी बच्ची इतनी जल्दी दूध पीना कैसे सीख गई।
मैंने खुद को देखा मेरा शरीर बहुत कमजोर हो गया था । खड़े होने पर कमर से 90॰ के एंगल पर झुक जाती थी ।
खैर धीरे धीरे वह भी रिकवर हो गया और शुरू हुआ जीवन का सबसे व्यस्त समय, सुबह से शाम बस उसी के काम।
जब मेरी बिटिया ढाई महीने की हुई तब उसका वजन 5 किलो था देखने में खूब गोल मटोल लगती थी और हम सब उसे मोटे होने के कारण सूमो कहकर बुलाते थे।
उसने मुझे बिल्कुल भी परेशान नहीं किया। जब भूख लगती थी थोड़ी सी रोती थी और टोटल टाइम सोती रहती थी ।
बिस्तर पर लेटे लेटे बस टीवी देखती रहती टुकुर टुकुर।
दोनों पैरों को ऊपर उठाकर पैर के अंगूठे को चूसती थी। हाथ पैर बहुत कम हिलाती ढुलाती थी ।छह महीने तक उसे एक रुपये तक की दवाई नहीं दिलानी पड़ी । खूब स्वस्थ थी वो ।और छह महीने बाद वह बैठना सीखी ।
और पूरे एक साल के बाद चलना सीखी थी । उसके लेट चलने के कारण मुझे चिंता होती थी कि चलना कब सीखेगी लेकिन पूरा एक साल कंप्लीट होने के बाद चलना सीख गई थी लेकिन लडखडा कर गिर जाती थी। उसमें फुर्ती नहीं थी।
अब बातें भी करने लगी थी । वह बातें करने में तुतलाती बिल्कुल भी नहीं थी। और बहुत जल्दी शब्दों को कैच करती थी।