पता चला है।पता चल गया अम्बानी अमीर कैसे हो रहा है?स्कूल फीस मांग रहा, माँ बाप का डाटा जिओ खा रहा।लाईन में दुनियाँ आ गई, ऑनलाइन सब काम हो रहा।मौसम बेतुके हो गए, बेरोज़गारी का जामा ओढ़ कर। पढ़े लिखे विद्वान, कलम तख्ती छोड़कर आई फोन में खो गए।अभी पूंजीपतियों की रेल सरपट दौड़ी नही, आशियाना उजाड़ने का फरमान आ
बह्र- १२२ १२२ १२२ १२२ काफ़िया- आने रदीफ़- लगा है“गज़ल”यहाँ भी वही शोर आने लगा हैजिसे छोड़ आई सताने लगा है किधर जा पड़ूँ बंद कमरे बताओ तराने वहीं कान गाने लगा है॥ सुलाने नयन को न देती निगाहें खुला है फ़लक आ डराने लगा है॥बहाने बनाती बहुत मन मनातीअदा वह दिशा को नचाने लगा है॥ खड़ी