मेरे दिल की लगी मेरी ही बनी उलझन..
तुम ना समझे कभी तुम ना समझोगे सनम..
तुम्हें तो एहसास पढ़ने तक की फुर्सत नहीं
क्यों ना हो तुम सा कोई खूबसूरत भी नहीं
तुम तो अपनी ही.. दुनिया में रहते हो मगन
तुम ना समझे कभी तुम ना समझोगे सनम..
शाख पर पत्ते झड़कर..नए तो आएंगे ही..
हम भी हार हारकर किस्मत आजमाएंगे ही..
भले हर बार दिल को... मिलती रहे तड़पन
तुम ना समझे कभी.. तुम ना समझोगे सनम..
मेरी कविता के आईने में एक चेहरा छुपा है
बूझो तो सही दिल में राज जो गहरा छुपा है
यकीनन तुम्हें स्पष्ट ना हो तो तोड़ देना दर्पण
तुम ना समझे कभी..तुम ना समझोगे सनम..
।। कंचन।।