दानिश्ता (जानबूझकर) ही वो मेरी जिंदगी में दखल देते हैं,
मेरे रुखसारों की मुस्कान को मायूसी में बदल देते हैं,
जब हम लगाना चाहते हैं उन पर इलज़ाम कोई,
वो जाने कौन सी अदल (युक्ति) से संभल लेते हैं,
क्यों मुझपे वो इख़्तियार (अधिकार) जताते हैं इतना,
मुझे दिखाने के लिए नीचा भरी महफ़िल से खामोश ही निकल लेते हैं,