आज जब हम गंगा दर्शन को जा रहे थे,
पैर न जाने क्यों इतना घबरा रहे थे,
महसूस हो रही थी एक अजीब सी थकान,
मन ढूंढ रहा था बस बैठने का कोई स्थान,
कुछ दूर तक हमने घुमाई निगाहें,
एक बूढा व्यक्ति थकावट से भर रहा था आहें,
शायद उसको किसी सवारी की थी तलाश,
कोई बैठेगा उसके रिक्शे पे उसको थी आस,
पुछा हमने उसके पास जाकर,
क्या लाओगे हमे गंगा घाट घुमाकर,
मानो उस बुजुर्ग को मेरा ही था इन्तजार,
और वो हो गया हमे ले जाने को तैयार,
बहुत छोटी सी रकम मांगी उसने हमे मंजिल तक ले जाने की,
और हमे भी कुछ ज्यादा ही परेशानी थी आने जाने की,
बैठ गए हम उसके रिक्शे में अपनी थकान को मिटाने के लिए,
और वो रिक्शा खींच रहा था बस थोड़े से पैसे कमाने के लिए,
कुछ दूर चलते चलते हमे हुआ ये अहसास,
की हम अनजाने में न जाने करते हैं कितने गलत काम,
हम सिर्फ अपने शरीर को साथ लेकर चल नही पा रहे थे,
और इस बुजुर्ग को हम अनजाने में जाने कितना सता रहे थे,
पसीने में तर बतर जब वो बुजुर्ग होने लगा,
मानो उसको देखकर मेरा दिल कितना रोने लगा,
पहुचकर मंजिल तक मैंने उससे तय की हुई रकम निकाली,
और उसने मुस्कुराते हुए उन पैसो पे निगाह डाली,
मानो वो कितना खुश था उसे पाकर,
मैंने भी रकम को दिया उसे थोड़ा बढाकर,
इस पूरी घटना ने मुझे इतना कुछ सीखा दिया,
मेरी साड़ी थकान को दो पल में मिटा दिया,
please share ....RASHMI SHUKLA