विवेकी राय को श्रद्धांजलि
सोनामाटी के मनबोध मास्टर !
क्या लोकऋण चुका दिए ?
दिवंगत युग की स्मृतियों के स्वेदपत्र
नयी कोयल की जीवन परिधि में
गूँगा जहाज जैसे जीवन का अज्ञात गणित है
कालातीत होकर अभी समर शेष है
वन तुलसी की गंध अवशेष है
देहरी के पार अब जुलूस रूका है
गंवई गंध गुलाब से गुजरते हुए
पुरूषपुराण क्यों बबूल के पक्ष में झुका है
चित्रकूट के घाट पर आम रास्ता नहीं है
लोक जीवन की तुझ जैसी कोई और दास्ताँ नहीं है
भाषा के अहरे पर फुटेहरी जैसी सिंकी हुई
कई विधाओ की ज्योनार तुम्हारे सिवान में मिल जाती है
चली फगुनहट बौरे आम तबियत खिल जाती है
अंचल को ही अपना जगत तपोवन सो कियो
टुकरा मिले बहुरिया घाट घाट का पानी पियो
रात के सन्नाटे बेकार दिनों के उजास
रचना में लोकभाषा की पनही पहनकर चलते हैं
तत्सम तद्भव मिलकर भदेस से कुछ कहते हैं
समझ का प्रयोग कर भी फिर बैतलवा डाल पर रहते हैं
नमामि ग्रामम के लोग भी बेटे बिक्री करते हैं
ऊसर के रेह में सौन्दर्य तलाशते हुए
पगडण्डी की भाषा को सड़क से बचाते हुए
कोई नया गाँवनामा रच रहे थे
उम्र की दहलीज पर थके ह्रदय से
पुत्रशोक में टूटे हुए आदमी से हटकर
जीवन और प्राण के अंतराल में
अक्षुण यशो राशि पर आरूढ़
रचना पथ के अविराम पथिक
नवोदित लेख को की करते नेकी
श्रद्धांजलि है तुझे राय विवेकी ।
अनिल कुमार शर्मा
२५/११/२०१६